श्रीमद् भगवद्गीता कालजयी एवं शाश्वत ग्रन्थ है l गीता के निष्काम कर्म में जीवन जीने की सर्वोत्कृष्ट कला सन्निहित है l गीता के विभूतियोग में भगवान ने अर्जुन को विभूति को पहचानने का संकेत दिया l ऐसा संकेत जिससे ईश्वरीयता को पहचानना संभव है l भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा ---- " अगर तुम्हे सीधे ईश्वर समझ नहीं आ रहा है , तो उसे ऐश्वर्य में पहचानों, क्योंकि यह सब जगह स्थान स्थान पर बिखरा हुआ है l इसे देखना , पहचानना और अनुभव करना आसान है l जहाँ कोई फूल पूरा खिला हो , जहाँ भी लगे यहाँ तो ऐश्वर्य अपने शिखर पर है , जहाँ कांति , विभूति असाधारण है , वहां - वहां तुम मेरी उपस्थिति का अनुभव करो l एक प्रसंग है ----- बादशाह अकबर जब भी तानसेन का संगीत सुनते तो उन्हें लगता कि तानसेन संगीत की चरम सीमा हैं l एक रात जब वे तानसेन को विदा करने लगे तो उन्होंने अपने दिल की बात तानसेन से कही l यह सुनकर तानसेन ने कहा ---- " आप मेरे बारे में इतना अच्छा सोचते हैं यह मेरे लिए सौभाग्य है , लेकिन मेरे गुरु मुझसे बहुत आगे हैं l मैं तो उनके आगे कुछ भी नहीं l " अकबर ने कहा ---- " किसी भी तरह तुम अपने गुरु को दरबार में लाओ , मैं अपना सारा शाही खजाना लुटाने को तैयार हूँ l " इस पर तानसेन ने कहा ---- " यही तो मुश्किल है l उनके आने की कोई कीमत नहीं l उनका मन हो तो झोपड़ी में चले जाते हैं और मन न हो तो राजदरबार भी व्यर्थ है l वह किसी के कहने से अपने वाद्य को छूते भी नहीं l वे तभी गाते हैं जब उनका मन हो l " यह सुनकर अकबर मायूस हुआ और कहा ---- ' कोई तो उपाय होगा ? " तानसेन ने कहा ------- " वे ब्रह्म मुहूर्त में जब प्रभु की स्तुति करते , तभी अपने साज को हाथ लगाते हैं l " यह सुनकर अकबर तानसेन के साथ चल पड़े यमुना के तट पर l ब्रह्ममुहूर्त के समय तानसेन के गुरु हरिदास महाराज ने गाना शुरू किया तो अकबर की आँखों से आँसू बहने लगे l उस दिन उन्हें अनुभव हुआ संगीत के शिखर का , ईश्वरीयता का l लौटते समय अकबर ने तानसेन से कहा --- " तुम्हारे गुरु से वाकई तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं l '' इस पर तानसेन बोले ----बादशाह सलामत ! मुकाबला हो भी नहीं सकता l मेरे और उनके बीच फारकं साफ़ है l मैं कुछ पाने के लिए बजाता हूँ , जबकि उन्होंने कुछ पा लिया है इसलिए बजाते हैं l " यही है विभूति l
No comments:
Post a Comment