12 December 2021

WISDOM ------- श्रीमद् भगवद्गीता जब हमारे मन के तारों में , हृदय के स्पंदन में धड़कने लगे , तभी इसकी सार्थकता है , यही गीता जयंती का मूल उद्देश्य है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी शर्मा

  श्रीमद् भगवद्गीता   कालजयी  एवं  शाश्वत  ग्रन्थ  है   l   गीता  के  निष्काम  कर्म  में  जीवन  जीने  की  सर्वोत्कृष्ट   कला  सन्निहित   है  l   गीता  के   विभूतियोग  में   भगवान  ने  अर्जुन  को   विभूति  को  पहचानने  का  संकेत  दिया   l   ऐसा  संकेत  जिससे   ईश्वरीयता  को  पहचानना  संभव  है   l   भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  कहा ---- " अगर  तुम्हे  सीधे  ईश्वर   समझ  नहीं  आ  रहा  है  ,  तो  उसे  ऐश्वर्य  में  पहचानों,  क्योंकि  यह  सब  जगह   स्थान स्थान  पर  बिखरा   हुआ  है  l   इसे  देखना , पहचानना  और  अनुभव  करना  आसान  है   l  जहाँ  कोई  फूल  पूरा  खिला  हो ,  जहाँ   भी लगे   यहाँ   तो ऐश्वर्य   अपने  शिखर  पर  है  ,  जहाँ  कांति , विभूति  असाधारण  है  ,  वहां - वहां   तुम मेरी  उपस्थिति  का  अनुभव  करो   l        एक  प्रसंग  है ----- बादशाह   अकबर   जब  भी  तानसेन  का  संगीत  सुनते   तो  उन्हें  लगता  कि   तानसेन  संगीत  की  चरम  सीमा   हैं   l   एक  रात  जब  वे  तानसेन   को  विदा  करने  लगे  तो  उन्होंने  अपने  दिल  की  बात  तानसेन  से  कही   l   यह  सुनकर  तानसेन  ने  कहा ---- "  आप  मेरे  बारे  में  इतना  अच्छा   सोचते  हैं  यह  मेरे  लिए  सौभाग्य  है  ,  लेकिन  मेरे  गुरु  मुझसे  बहुत  आगे  हैं   l   मैं  तो  उनके  आगे  कुछ  भी  नहीं   l  "  अकबर  ने  कहा  ---- " किसी  भी  तरह  तुम   अपने गुरु  को  दरबार  में  लाओ  , मैं  अपना  सारा  शाही  खजाना  लुटाने  को  तैयार  हूँ   l  "  इस  पर  तानसेन  ने  कहा  ---- " यही  तो  मुश्किल  है  l  उनके  आने  की  कोई  कीमत  नहीं  l  उनका  मन  हो  तो  झोपड़ी   में  चले  जाते  हैं   और  मन  न  हो   तो  राजदरबार  भी  व्यर्थ  है  l  वह  किसी  के  कहने  से   अपने  वाद्य  को  छूते   भी  नहीं   l   वे  तभी  गाते  हैं  जब  उनका  मन  हो   l  "  यह  सुनकर  अकबर  मायूस  हुआ  और  कहा  ---- ' कोई  तो  उपाय  होगा  ? "  तानसेन  ने  कहा  ------- " वे  ब्रह्म मुहूर्त  में   जब  प्रभु  की  स्तुति  करते  , तभी  अपने  साज  को  हाथ  लगाते   हैं   l  "  यह  सुनकर  अकबर  तानसेन  के  साथ  चल  पड़े  यमुना  के  तट  पर   l   ब्रह्ममुहूर्त  के  समय   तानसेन  के  गुरु  हरिदास  महाराज   ने  गाना   शुरू  किया  तो   अकबर  की  आँखों   से   आँसू   बहने  लगे   l   उस  दिन   उन्हें  अनुभव  हुआ   संगीत  के  शिखर  का ,  ईश्वरीयता  का   l   लौटते  समय  अकबर ने  तानसेन   से कहा  --- " तुम्हारे  गुरु  से  वाकई    तुम्हारा  कोई  मुकाबला  नहीं  l  ''  इस  पर  तानसेन  बोले  ----बादशाह   सलामत  !  मुकाबला  हो  भी  नहीं  सकता  l  मेरे  और उनके   बीच फारकं  साफ़  है   l   मैं  कुछ  पाने   के  लिए    बजाता  हूँ ,  जबकि   उन्होंने  कुछ  पा  लिया  है   इसलिए  बजाते  हैं  l  "        यही  है  विभूति   l 

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