' बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय l जो दिल खोजा आपना , मुझसा बुरा न होय l अर्थात यदि बुराई की खोज की जाये तो सबसे पहले हमें स्वयं में ही बहुत बुराई मिल जाएगी l सबसे पहले हमें अपने अंदर झाँक कर देखना चाहिए कि कहीं हम में ही कोई दोष तो नहीं छिपा है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " हमारी सबसे बड़ी ग़लती यह होती है कि हम स्वयं को गलत नहीं ठहरा पाते , स्वयं को सदैव सही मानते है l यह हमारा अहं है जो हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि हमसे तो कोई भूल हो ही नहीं सकती l वास्तव में अपने अंदर के दोषों के कारण ही हम दूसरों में दोष देखते हैं l आत्मा के आवरण में छाई कालिख ही हमें बाहर नजर आती है l यदि यह कालिख साफ कर दी जाये तो बाहर भी सब साफ - साफ दीखने लगेगा l "-------- एक बार एक युवा दंपती ने अपने नए घर में प्रवेश किया l घर को व्यस्थित करने के बाद वे अपनी बालकनी में बैठे l उनके सामने वाले घर में कपड़े सूख रहे थे , उन्हें देख पत्नी बोली --- " कितने गंदे कपड़े धोए हैं , इन्हे कपड़े धोने का तरीका भी नहीं आता l " पति ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया l कई दिन तक जब भी बालकनी में बैठते तो पत्नी पड़ोसी के कपड़े धोने की बुराई करती l एक दिन रविवार को जब वे दोनों बालकनी में बैठे तो पड़ोसी के कपडे बहुत चमकदार दिखे तो पत्नी व्यंग्य करते हुए बोली --- " लगता है अब इन्हे कपड़े धोने का तरीका आ गया है l " पति ने शांत भाव से जवाब दिया ---- " आज सुबह जल्दी उठकर मैंने बालकनी के शीशे साफ कर दिए हैं l उनके कपड़े गंदे नहीं थे , हमारे खिड़की के काँच ही गंदे थे " यह सुनकर पत्नी बहुत शर्मिंदा हुई और उसने निश्चय किया कि किसी को कुछ कहने से पहले स्वयं को परखना आवश्यक है l
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