श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- प्रत्येक व्यक्ति में सतोगुण , रजोगुण और तमोगुण होता है , जब एक गुण बढ़ता है तब शेष दो गौण हो जाते हैं l ---- जैसे जब व्यक्ति क्रोध करता है तो उसका मन का सुख -शांति सब चले जाते हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- मनुष्य का मन भिखारी की तरह है , सदा कुछ मांगता ही रहता है l जितना कुछ पाने की लालसा , लोभ बढ़ता है -- उतना ही मनुष्य उसे -भिन्न - भिन्न तरीकों से पाने का प्रयत्न करता है l इनसे भी जब मन की सारी कामनाएं पूर्ण नहीं हो पातीं तो वह बहुत अशांत और तनावग्रस्त हो जाता है l आचार्य श्री कहते हैं ---यदि व्यक्ति में लोभ , लालसा , महत्वाकांक्षा नियंत्रण से बाहर हो जाये तो व्यक्ति पूर्णतया विक्षिप्त हो जायेगा l पुराण में महाराज ययाति की कथा है , उन्होंने सौ वर्ष का जीवन जी लिया तब यमराज उन्हें लेने आ गए l ययाति उनके आगे गिडगिडाने लगे कि कि अभी मेरी लालसाएं पूरी नहीं हुई हैं , कृपया उन्हें पूरा करने के लिए एक मौका और दें l यमदूत बोले ---यदि तुम्हारा कोई पुत्र तुम्हे अपनी आयु दे दे , तो तुम उसकी आयु का भोग कर लेना l ' सबने तो मना कर दिया , एक पुत्र को दया आ गई , उसने अपनी आयु दान दे दी l वह स्वयं बूढ़ा हो गया और ययाति भोग -विलास में मगन हो गए l यह अवधि समाप्त होने पर फिर यमदूत आए , ययाति फिर उनसे दीनता पूर्वक विनती करने लगे , पुन: किसी ने अपनी आयु दे दी l ऐसा हजार वर्षों तक होता रहा किन्तु ययाति का मन नहीं भरा और अंत में वे विक्षिप्त जैसे हो गए l इस कथा से यही शिक्षा है --- हम अपनी इच्छाओं , कामना , लोभ , लालसा पर नियंत्रण रखें क्योंकि ये कभी तृप्त नहीं होतीं l
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