अनमोल मोती ------ तुर्की के एक अमीर के पुत्र खुसरो को सत्यान्वेषण की ऐसी धुन लगी कि वह सब जायदाद , ऐश्वर्य सब छोड़कर फकीर बन गया l उसे किसी सत्पुरुष की तलाश थी , जो उसका आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर सके l संयोगवश उसकी भेंट हजरत निजामुद्दीन औलिया से हुई l दोनों ने एक दूसरे को पाकर संतोष व्यक्त किया l औलिया को लगा कि अब एक सत्पात्र शिष्य मिल गया l फिर भी परीक्षा लेनी जरुरी थी l औलिया ने कहा ----- " तुम विद्वान् हो l इतनी भाषाएँ -- अरबी , फारसी , संस्कृत व अन्य हिन्दुस्तानी भाषाएँ भी तुम्हे आती हैं l तुम्हे राजदरबार जाना चाहिए l " खुसरो ने कहा ------ " मैं सब छोड़कर आपके दरबार में आया हूँ l मुझे किसी शाही दरबार की जरुरत नहीं l " हजरत औलिया ने उत्तर से प्रसन्न होकर उसे शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया l आध्यात्मिक क्षेत्र की प्रगति गुरु के मार्गदर्शन में चलती रही l हिंदुस्तान की तब की स्थिति को देखते हुए हजरत साहब ने खुसरो से कहा ----- " मैं तुम्हे अपने लिए , देश के लिए कुरबान करना चाहता हूँ l तुम हिन्दू - मुस्लिम के बीच फैली नफरत की आग को बुझाओ l पूरे हिंदुस्तान का दौरा करो l वह फिजा बनाओ कि पूरा राष्ट्र एक रह सके l " अमीर खुसरो गुरु का आदेश मानकर देश के कोने -कोने में गए , संस्कृति और मान्यताओं से जुड़े अपने गीत सुनाए l तत्कालीन राष्ट्रीय एकता में खुसरो का बड़ा हाथ रहा है l आज भी भारत ही नहीं नहीं , पूरे विश्व को अनेक अमीर खुसरो की जरुरत है l
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