21 August 2022

WISDOM -----

   हमारे  महाकाव्य   हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   लेकिन  मनुष्य  अपनी  मानसिक  विकृतियों  में  इस  तरह  फँसा  हुआ  है   कि  वह  कुछ  सीखना  ही  नहीं  चाहता    इसलिए  गलतियाँ  बार -बार  दोहराई  जाती  हैं   और    कर्म  का  फल  तो  ईश्वरीय  व्यवस्था  है  l   रावण  परम  शिव भक्त  था  ,  वेद  , शास्त्रों  का  ज्ञाता   महा विद्वान्  था    l   वह  कुशल राजनीतिज्ञ  और  अस्त्र -शस्त्र का  ज्ञाता , देवी का  भक्त  था  ,  अनेक  गुणों  से  संपन्न  था  l  ऋषि  पुत्र  था   लेकिन  स्वयं  को  राक्षस राज  रावण  कहने  में  गर्व  महसूस  करता  था   l  अपनी  प्रवृति  के  अनुरूप  उसने  ऋषियों  पर  बहुत  अत्याचार  किए ,  शनि  और  राहू  तक  को  कैद  कर  लिया   l  उसके  प्रतिनिधि  राक्षस   सब  तरफ  बहुत  आतंक  मचाते  थे   l    अनेक  पाप कर्मों  के  बावजूद  उसकी सोने  की  लंका  कायम  थी  , उसका  विशाल  साम्राज्य  था   l    उसका  पतन  कब  से  शुरू  हुआ   ?  जब  उसने  सीताजी  का  हरण  किया   l  नारी  पर  अत्याचार  प्रकृति  बर्दाश्त  नहीं  करती   l  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  ,  रावण  के  पूरे  वंश  का  अंत  हो  गया   l  इसी  तरह  महाभारत  में  में  दुर्योधन   ने  पांडवों  पर  बहुत  अत्याचार  किए ,  अनेक  षड्यंत्र  रचे  l  इसके  बावजूद  स्थिति  सामान्य  ही  रही   लेकिन  जब  उसने  भरी  सभा  में  द्रोपदी  को  अपमानित  किया   , उसी  पल  से  महाभारत  की  शुरुआत  हो  गई   और  उसने  स्वयं  ही  अपने  हाथ  से  कौरव  वंश  के  अंत  का  दुर्भाग्य  लिख   लिया   l  आज  भी  संसार  में  नारी  पर  बहुत  अत्याचार  होते  हैं  ,  मानसिक  विकृति  इस  हद  तक  है  कि  बच्चियां  भी  सुरक्षित  नहीं  हैं  l  परिवार  हो , समाज  हो  या   सभ्यताएं  ,   अपने  अंत  की  कहानी  स्वयं  ही  लिखते  हैं   l   

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