हमारे महाकाव्य हमें बहुत कुछ सिखाते हैं लेकिन मनुष्य अपनी मानसिक विकृतियों में इस तरह फँसा हुआ है कि वह कुछ सीखना ही नहीं चाहता इसलिए गलतियाँ बार -बार दोहराई जाती हैं और कर्म का फल तो ईश्वरीय व्यवस्था है l रावण परम शिव भक्त था , वेद , शास्त्रों का ज्ञाता महा विद्वान् था l वह कुशल राजनीतिज्ञ और अस्त्र -शस्त्र का ज्ञाता , देवी का भक्त था , अनेक गुणों से संपन्न था l ऋषि पुत्र था लेकिन स्वयं को राक्षस राज रावण कहने में गर्व महसूस करता था l अपनी प्रवृति के अनुरूप उसने ऋषियों पर बहुत अत्याचार किए , शनि और राहू तक को कैद कर लिया l उसके प्रतिनिधि राक्षस सब तरफ बहुत आतंक मचाते थे l अनेक पाप कर्मों के बावजूद उसकी सोने की लंका कायम थी , उसका विशाल साम्राज्य था l उसका पतन कब से शुरू हुआ ? जब उसने सीताजी का हरण किया l नारी पर अत्याचार प्रकृति बर्दाश्त नहीं करती l एक लाख पूत और सवा लाख नाती , रावण के पूरे वंश का अंत हो गया l इसी तरह महाभारत में में दुर्योधन ने पांडवों पर बहुत अत्याचार किए , अनेक षड्यंत्र रचे l इसके बावजूद स्थिति सामान्य ही रही लेकिन जब उसने भरी सभा में द्रोपदी को अपमानित किया , उसी पल से महाभारत की शुरुआत हो गई और उसने स्वयं ही अपने हाथ से कौरव वंश के अंत का दुर्भाग्य लिख लिया l आज भी संसार में नारी पर बहुत अत्याचार होते हैं , मानसिक विकृति इस हद तक है कि बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं l परिवार हो , समाज हो या सभ्यताएं , अपने अंत की कहानी स्वयं ही लिखते हैं l
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