23 August 2022

WISDOM ----

   धर्म  क्या  है  ?  इस  प्रश्न  पर  संसार  में  बहुत  लड़ाई -झगड़े  हैं  l  झगड़ा  वहीँ  होता  है  जहाँ  स्वार्थ  है  ,  जितना  बड़ा  स्वार्थ  उतना  ही  बड़ा  झगडा , दंगा  !  पुराणों  में  अनेक  कथायें  हैं  जिनमें  धर्म  को  विभिन्न  तरीकों  से  समझाया  गया  है  l  महाभारत  में  एक  कथा  है ----- वनवास काल  में  एक  बार  पांडवों  को  प्यास  लगी  l  धर्मराज  युधिष्ठिर  ने  नकुल  को  जल  लाने  भेजा  l  नकुल  ज्यों  ही  सरोवर  का  पानी  पीने  लगे  ,  त्यों  ही  उन्हें  एक  आवाज  सुनाई  दी ---- इस  सरोवर  पर  मेरा  अधिकार  है  ,  पहले  मेरे  प्रश्नों  का  उत्तर  दो  ,  तब  पानी  पीना  l  नकुल  ने  इस  आवाज  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया   और  पानी  पीने  की  चेष्टा  करने  लगे  , पर  जल  का  स्पर्श  करते  ही  प्राणहीन  होकर  गिर  पड़े  l  नकुल  के  बहुत  देर  तक  न  लौटने  पर  युधिष्ठिर  ने  सहदेव  को  भेजा  l  उनके  साथ  भी  वैसा  ही  हुआ  l  फिर  अर्जुन  और  उनके  बाद  भीम  आए   वे  सभी  जल  का  स्पर्श  करते  ही  प्राणहीन  होकर  गिर  पड़े  l  अंत  में  युधिष्ठिर  आए   l  पानी  लेने  के  लिए  जैसे  ही  वे  आगे  बढ़े  ,  उन्हें  भी  वही  आवाज  सुनाई  पड़ी  l   युधिष्ठिर  ने  कहा ---- " मैं  किसी  के  अधिकार  की  वस्तु  नहीं  लेता  ,  तुम  जो  प्रश्न  पूछना  चाहते  हो  पूछ  लो  l "  यक्ष  ने  अनेक  प्रश्न  पूछे  ,  युधिष्ठिर  ने  सभी  प्रश्नों  का  उचित  उत्तर  दिया  l  उनके  उत्तरों  से  संतुष्ट  होकर  यक्ष  ने  कहा --- " राजन  !  तुमने  मेरे  प्रश्नों  के  ठीक  उत्तर  दिए  हैं  ,  इसलिए  अपने  भाइयों  में  से   जिस  एक  को  चाहो  ,  वह  जीवित  हो  सकता  है  l  "  युधिष्ठिर  ने  नकुल  को  जीवित  कर  देने  के  लिए  कहा  l  इस  पर  यक्ष  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ  ,  उन्होंने  कहा  --- " युधिष्ठिर  !  तुम  राज्यहीन  होकर  वन  में  भटक  रहे  हो  ,  तुम्हे  अंत  में  शत्रुओं  से  भयंकर  युद्ध  करना  है  ,  ऐसी  दशा  में  अपने  परम  पराक्रमी  भाई  भीम  या  अर्जुन  को  छोड़कर   नकुल  के  लिए  क्यों  व्यग्र  हो  ? "  धर्मराज  युधिष्ठिर  ने  कहा ---- " कुंती  और  माद्री  दोनों  मेरी  माता  हैं  l  कुंती  का  पुत्र  मैं  जीवित  हूँ  l  अत:  मैं  चाहता  हूँ  कि  मेरी  दूसरी  माता  माद्री  का  भी  वंश  नष्ट  न  हो  l  उनका  भी  एक  पुत्र  जीवित  रहे  l  "  यक्ष  युधिष्ठिर  की  धर्म निष्ठां  से  बहुत  प्रसन्न  हुए   और  चारों  पांडवों  को  जीवित  कर  दिया  l   यही  धर्म  है ,  जो  धर्म  की  रक्षा  करता  है  ,  धर्म  स्वयं  उसकी  रक्षा  करता  है  l  

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