धर्म क्या है ? इस प्रश्न पर संसार में बहुत लड़ाई -झगड़े हैं l झगड़ा वहीँ होता है जहाँ स्वार्थ है , जितना बड़ा स्वार्थ उतना ही बड़ा झगडा , दंगा ! पुराणों में अनेक कथायें हैं जिनमें धर्म को विभिन्न तरीकों से समझाया गया है l महाभारत में एक कथा है ----- वनवास काल में एक बार पांडवों को प्यास लगी l धर्मराज युधिष्ठिर ने नकुल को जल लाने भेजा l नकुल ज्यों ही सरोवर का पानी पीने लगे , त्यों ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी ---- इस सरोवर पर मेरा अधिकार है , पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो , तब पानी पीना l नकुल ने इस आवाज पर कोई ध्यान नहीं दिया और पानी पीने की चेष्टा करने लगे , पर जल का स्पर्श करते ही प्राणहीन होकर गिर पड़े l नकुल के बहुत देर तक न लौटने पर युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा l उनके साथ भी वैसा ही हुआ l फिर अर्जुन और उनके बाद भीम आए वे सभी जल का स्पर्श करते ही प्राणहीन होकर गिर पड़े l अंत में युधिष्ठिर आए l पानी लेने के लिए जैसे ही वे आगे बढ़े , उन्हें भी वही आवाज सुनाई पड़ी l युधिष्ठिर ने कहा ---- " मैं किसी के अधिकार की वस्तु नहीं लेता , तुम जो प्रश्न पूछना चाहते हो पूछ लो l " यक्ष ने अनेक प्रश्न पूछे , युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का उचित उत्तर दिया l उनके उत्तरों से संतुष्ट होकर यक्ष ने कहा --- " राजन ! तुमने मेरे प्रश्नों के ठीक उत्तर दिए हैं , इसलिए अपने भाइयों में से जिस एक को चाहो , वह जीवित हो सकता है l " युधिष्ठिर ने नकुल को जीवित कर देने के लिए कहा l इस पर यक्ष को बहुत आश्चर्य हुआ , उन्होंने कहा --- " युधिष्ठिर ! तुम राज्यहीन होकर वन में भटक रहे हो , तुम्हे अंत में शत्रुओं से भयंकर युद्ध करना है , ऐसी दशा में अपने परम पराक्रमी भाई भीम या अर्जुन को छोड़कर नकुल के लिए क्यों व्यग्र हो ? " धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा ---- " कुंती और माद्री दोनों मेरी माता हैं l कुंती का पुत्र मैं जीवित हूँ l अत: मैं चाहता हूँ कि मेरी दूसरी माता माद्री का भी वंश नष्ट न हो l उनका भी एक पुत्र जीवित रहे l " यक्ष युधिष्ठिर की धर्म निष्ठां से बहुत प्रसन्न हुए और चारों पांडवों को जीवित कर दिया l यही धर्म है , जो धर्म की रक्षा करता है , धर्म स्वयं उसकी रक्षा करता है l
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