ऋग्वेद में लिखा है ---- 'अन्तरिक्ष और आकाश से भी परे वह परमात्मा अनंत धैर्य वाला है l वह सबसे अधिक शक्तिशाली और सर्वव्यापक होकर भी निर्दोष की रक्षा और पापी को दण्ड देता है l '---------- बात उन दिनों की है जब चीन में ब्रिटेन का शासन था l शंघाई के एक गुरूद्वारे में आत्मासिंह नमक इक ग्रंथी रहता था l वह बहुत सौम्य और चरित्रवान था और ईश्वरीय विधान पर उसकी अटूट आस्था थी l उसके पास बाबासिंह नमक एक व्यक्ति अक्सर आता था और उसकी पत्नी से भी मिलता , बात करता था l लोगों को उसकी नियत पर शक था इसलिए कई लोगों ने उनके विरुद्ध आत्मासिंह के कान भरे , कानाफूसी की l आत्मासिंह का कहना था --- " मुझे अपनी धर्मपत्नी पर पूर्ण विश्वास है , इसलिए मुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं l जो जैसा करेगा , वो वैसा भरेगा l " दैवयोग से कुछ दिन बाद बाबासिंह की किसी ने हत्या कर दी l पुलिस ने कुछ जांच -पड़ताल कर के आत्मासिंह को गिरफ्तार किया , मुकदमा चला l आत्मासिंह अपने निर्दोष होने का कोई पुख्ता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सका इसलिए कानून ने उसे फांसी की सजा दे दी l फाँसी के लिए शंघाई से जल्लाद न मिलने पर हांगकांग से जल्लाद बुलाए गए l नियत समय पर फाँसी प्रारम्भ हुई l गले में फांसी का फंदा डालकर जैसे ही नीचे का तख्ता हटाया गया , एक जोर से धड़ाम की आवाज हुई , रस्सा बीच में से टूट गया और आत्मासिंह फर्श पर गिरे , उन्हें कोई चोट नहीं आई l पदाधिकारी आश्चर्य चकित रह गए l मामला ब्रिटिश काउन्सिल जनरल सर जान ब्रेनन के पास पहुंचा l विशेषज्ञ बुलाकर जांच कराई गई लेकिन कोई कारण नहीं मिला कि रस्सा कैसे टूटा l दूसरा रस्सा मंगाया गया , उसमे आत्मासिंह के वजन से चार गुना अधिक वजन के पत्थर रखकर रस्से की परीक्षा कर ली गई l दुबारा फाँसी की व्यवस्था की गई l इस बार बड़े -बड़े उच्च पदाधिकारी भी उपस्थित थे l जैसे ही दुबारा फंदा डालकर लटकाया गया , फिर से धड़ाम की आवाज हुई , रस्सा टूट गया और आत्मासिंह को कोई चोट नहीं आई l चीन में ब्रिटिश राजदूत सर ह्यू नाचबुल ह्युगेशन ने कहा --- " आत्मासिंह निर्दोष है , उसे फाँसी नहीं दी जा सकती l परमात्मा स्वयं उसके रक्षक है l " आत्मासिंह को मुक्त कर दिया गया l
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