मनुष्य हो या देवता कामना , वासना और तृष्णा के आक्रमण से कोई नहीं बचा है , लेकिन भगवान अपने भक्त की सदैव रक्षा करते हैं , वे परीक्षा भी लेते हैं और उसमें पास भी करते हैं l पुराण में एक कथा है ----- एक बार देवर्षि नारद को अपने वैराग्य और भजन का अहंकार हो गया l अहंकार उठते ही मनुष्य आत्म प्रदर्शन के लिए लालायित हो उठता है l नारद जी के साथ भी यही हुआ l भगवान को अपने भक्त का अहंकार मिटाना था , कामनाओं के जंजाल से छुटाना था , सो उन्होंने माया रची ---- किसी राजकुमारी का स्वयंवर था l पिता की इकलौती बेटी थी l राजा ने घोषणा कर रखी थी कि राजकुमारी के विवाह के समय आधा राज्य वर को दिया जायेगा l अहंकार के कारण नारद जी की महत्वाकांक्षा बढ़ रही थी l राजकुमारी का रूप और विशाल धन -वैभव देखा तो उनका मन ललचाया कि अब संसार का आनंद भी देखना चाहिए , भक्ति बहुत हो गई l लेकिन राजकुमारी को पाने के लिए वैसा रूप भी चाहिए , वे तो राजकुमारों जैसे नहीं थे l बहुत सोच विचार कर वे विष्णुलोक पहुंचे और भगवान से अपनी मनोकामना कही कि भगवान मुझे अपने जैसा सुन्दर रूप दें जिससे राजकुमारी मेरे गले में वरमाला डाले l भगवान सन्न रह गए l काम के वशीभूत हुए नारद जी को वे नाराज भी नहीं कर सकते भगवान तो सर्वव्यापी हैं , वे मनुष्य हो ,बन्दर हो , हर प्राणी में हैं , भगवान ने उन्हें ' तथास्तु ' कहकर बन्दर का रूप दे दिया l नारद जी तो अहंकार के मद में थे , सीधे स्वयंवर में पहुंचे l स्वयंवर में आए सभी राजा उन्हें देखकर मुस्करा रहे थे l राजकुमारी भी उन्हें देखकर मुस्कराती हुई आगे बढ़ गई और एक सुन्दर राजकुमार के गले में माला डाल दी l अब तो नारद जी की निराशा और खीज का ठिकाना न था l कामना ने रौद्र रूप ले लिया l उन्हें आश्चर्य भी था कि जब भगवान ने उन्हें इतना सुन्दर रूप दिया तो राजकुमारी ने उनके गले में माला क्यों नहीं डाली ? उन्होंने जब पानी में अपनी सूरत देखी तो उनके होश उड़ गए l उन्हें भगवान पर बहुत ही क्रोध आया कि मैंने क्या माँगा था और क्या दे दिया l क्रोध में भरे हुए वे विष्णुलोक पहुंचे और भगवान पर बहुत बरसे l जब थककर शांत हुए तब तक भगवान ने अपनी माया समेट ली और कहा -- अपनी असफलता को मेरी अनुकम्पा समझो , भला मैं तुम्हे अनर्थ में कैसे डुबा सकता था l नारद जी पर से जब कामना , महत्वाकांक्षा का नशा उतरा तब उन्होंने इसके साथ जुड़े विनाश को समझा कि एक भूल से वे भक्ति के चरम से गिरकर धरती पर आ जाते l भगवान ने भक्त की रक्षा की l अब तो नारद जी भक्ति का प्रचार करते यही कहते कि भजन भले ही कम करना पर लोभ , मोह , अहंकार और माया जाल से बचकर रहना l
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