24 August 2022

WISDOM -----

 मनुष्य  हो  या  देवता   कामना , वासना और  तृष्णा  के  आक्रमण  से  कोई  नहीं  बचा  है  ,  लेकिन  भगवान  अपने  भक्त  की  सदैव  रक्षा  करते  हैं  , वे  परीक्षा  भी  लेते  हैं  और  उसमें   पास  भी  करते  हैं   l  पुराण  में  एक  कथा  है  ----- एक  बार  देवर्षि  नारद  को  अपने  वैराग्य  और  भजन  का  अहंकार  हो  गया  l  अहंकार  उठते  ही  मनुष्य  आत्म प्रदर्शन  के  लिए  लालायित  हो  उठता  है   l  नारद जी  के  साथ  भी  यही  हुआ  l  भगवान  को  अपने  भक्त  का  अहंकार  मिटाना  था  , कामनाओं  के  जंजाल  से  छुटाना  था  ,  सो  उन्होंने  माया  रची  ---- किसी  राजकुमारी  का  स्वयंवर  था  l  पिता  की  इकलौती  बेटी  थी  l  राजा  ने  घोषणा  कर  रखी  थी  कि   राजकुमारी  के  विवाह  के  समय  आधा  राज्य  वर  को   दिया  जायेगा  l  अहंकार  के  कारण  नारद जी  की  महत्वाकांक्षा  बढ़  रही  थी  l  राजकुमारी  का  रूप  और  विशाल  धन -वैभव  देखा  तो  उनका  मन  ललचाया   कि  अब  संसार  का  आनंद  भी  देखना  चाहिए ,  भक्ति  बहुत  हो  गई  l  लेकिन  राजकुमारी  को  पाने  के  लिए  वैसा  रूप  भी  चाहिए  ,  वे  तो  राजकुमारों  जैसे  नहीं  थे  l  बहुत  सोच विचार कर   वे  विष्णुलोक  पहुंचे   और  भगवान  से  अपनी  मनोकामना  कही   कि  भगवान   मुझे  अपने  जैसा  सुन्दर  रूप  दें   जिससे   राजकुमारी  मेरे  गले  में  वरमाला  डाले   l  भगवान  सन्न  रह  गए  l   काम  के  वशीभूत  हुए  नारद जी  को  वे  नाराज  भी  नहीं  कर  सकते    भगवान  तो  सर्वव्यापी  हैं  , वे  मनुष्य  हो ,बन्दर  हो  , हर  प्राणी  में  हैं  ,  भगवान  ने  उन्हें  ' तथास्तु '  कहकर  बन्दर  का  रूप  दे  दिया  l  नारद जी  तो  अहंकार  के  मद  में  थे ,  सीधे  स्वयंवर  में  पहुंचे  l  स्वयंवर  में  आए  सभी  राजा  उन्हें  देखकर  मुस्करा  रहे  थे  l  राजकुमारी  भी  उन्हें  देखकर  मुस्कराती  हुई  आगे  बढ़  गई  और  एक  सुन्दर  राजकुमार  के  गले  में  माला  डाल  दी  l  अब  तो  नारद जी  की  निराशा  और  खीज  का  ठिकाना  न  था  l  कामना  ने  रौद्र  रूप  ले  लिया  l  उन्हें  आश्चर्य  भी  था  कि  जब  भगवान  ने  उन्हें  इतना  सुन्दर  रूप  दिया   तो  राजकुमारी  ने  उनके  गले  में  माला  क्यों  नहीं  डाली   ?  उन्होंने  जब  पानी  में  अपनी  सूरत  देखी   तो  उनके  होश  उड़  गए  l  उन्हें  भगवान  पर  बहुत  ही  क्रोध  आया  कि  मैंने  क्या  माँगा  था  और  क्या  दे  दिया  l   क्रोध  में  भरे  हुए  वे  विष्णुलोक  पहुंचे   और  भगवान  पर  बहुत  बरसे  l  जब  थककर  शांत  हुए   तब  तक  भगवान  ने  अपनी  माया  समेट  ली   और  कहा -- अपनी  असफलता  को  मेरी  अनुकम्पा  समझो  , भला  मैं  तुम्हे  अनर्थ  में  कैसे  डुबा  सकता  था  l  नारद जी  पर  से  जब  कामना , महत्वाकांक्षा  का  नशा  उतरा   तब  उन्होंने    इसके  साथ  जुड़े  विनाश  को  समझा   कि  एक  भूल  से  वे  भक्ति  के  चरम  से  गिरकर  धरती  पर  आ  जाते  l  भगवान  ने  भक्त  की  रक्षा  की  l  अब  तो  नारद जी  भक्ति  का  प्रचार  करते  यही  कहते   कि  भजन  भले  ही  कम  करना   पर  लोभ , मोह , अहंकार  और  माया जाल  से  बचकर  रहना  l  

No comments:

Post a Comment