लघु कथा ---- कोयल और चींटी उद्यान में एक साथ रहकर आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहीं थीं l कोयल आम के वृक्ष पर बैठकर मधुर गीत गाती रहती थी , और चींटी वृक्ष की जड़ के पास एक छोटे छिद्र में रहकर दिन -रात अपनी भोजन व्यवस्था में जुटी रहती थी l बसंत का मौसम था , चींटी ने देखा कोयल दिन भर अठखेलियाँ करती है , गाना गाती रहती है , उसने कोयल को समझाया कि सब दिन एक समान नहीं रहते , कब कौन सी विपत्ति आ जाये , कोई नहीं जानता इसलिए भविष्य का ध्यान रखना चाहिए l परन्तु कोयल ने उसकी एक न सुनी l थोड़े दिन बाद ही पतझड़ आया , पत्ते गिरने लगे , फूल मुरझाने लगे अब कोयाल की सहायता करने वाला कोई न था l अब वह सहायता के लिए चींटी के पास गई और बड़ी नम्रता से सहयोग के लिए याचना की l चींटी बोली ---- " जब तुम झूम -झूमकर गाती थीं , अठखेलियाँ करती थीं , तब शायद तुम भूल गईं थीं कि प्रत्येक बसंत के बाद पतझड़ आता है l मैंने पतझड़ का ध्यान रखा, श्रम का महत्त्व समझा और अब मैं तुम्हारी मदद करने की स्थिति में हूँ l "
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