" मनुष्य ईश्वर की संतान है l असीम सत्ता पर गहरी आस्था और विश्वास से हमें ऊर्जा मिलती है l " ईश्वर विश्वास ही आत्मविश्वास है और आत्मविश्वास के कमी , भय और परिस्थितियों से तालमेल न कर सकने के कारण ही आज मनुष्य विपन्न परिस्थिति में है l धनी हो या निर्धन असंतोष और तनाव से घिरा हुआ है l स्वामी विवेकानंद ने अपने शिष्य को एक कथा सुनाई ------ एक तत्वज्ञानी अपनी पत्नी से कह रहे थे कि संध्या आने वाली है l काम समेट लो l एक सिंह कुटी के पीछे यह सुन रहा था , उसने समझा कि संध्या कोई बड़ी शक्ति है जिससे डर कर यह निर्भय रहने वाला ज्ञानी भी अपना समान समेटने को विवश हुए हैं l सिंह चिंता में डूब गया , उसे संध्या का डर सताने लगा l पास के घाट का धोबी दिन छिपने पर अपने कपड़े समेट कर गधे पर लाने की तैयारी करने लगा l देखा तो गधा गायब है , उसे ढूँढने ने देर हो गई l रात घिर आई और पानी बरसने लगा l धोबी को एक झाड़ी में खड़खड़ाहट सुनाई दी , उसने समझा गधा है l तो लाठी से उसे पीटने लगा ---धूर्त यहाँ छिपकर बैठा है l सिंह की पीठ पर लाठियां पड़ीं तो उसने समझा यही संध्या है , सो डर से थर -थर कांपने लगा l अँधेरे में धोबी उसे घसीट लाया और कपडे लादकर घर चल दिया l रास्ते में दूसरा सिंह मिला , उसने अपने साथी की दुर्गति देखी तो पूछा ---यह क्या हुआ ? तुम इस प्रकार लदे क्यों फिर रहे हो l ' सिंह ने कहा --- संध्या के चंगुल में फँस गए हैं l यह बुरी तरह पीटती है और इतना वजन लादती है l सिंह को कष्ट देने वाली संध्या नहीं उसकी भ्रान्ति थी जिसके कारण धोबी को कोई बड़ा देव -दानव समझ लिया और भार एवम प्रहार बिना सिर हिलाए स्वीकार कर लिया l अपना स्वरुप भूल जाने के कारण मनुष्य की भी ऐसी ही दुर्गति है l
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