हमारे आचार्य और ऋषियों का कहना है कि -- धन मानव जीवन के लिए आवश्यक है किन्तु धर्म से रहित धन व्यर्थ है , हानिकारक है , रोग -शोक को आमंत्रित करता है l ' इस कथन की सत्यता को आज संसार में देखा जा सकता है l भ्रष्टाचार , बेईमानी , शोषण करना , दूसरों का हक छीनना , अनैतिक साधनों से धन कमाना ये सब आसुरी प्रवृत्ति के लक्षण हैं l जब देवत्व की तुलना में असुरता बलशाली हो जाती है तब उसका परिणाम युद्ध , दंगे , तनाव , बीमारी , महामारी , आत्महत्या , अकाल मृत्यु आदि नकारात्मक घटनाओं में वृद्धि के रूप में देखने को मिलता है l पुराणों में एक कथा है ----- एक बार ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा ने उनसे कुछ आभूषण की मांग की l ऋषि ने कहा उनके कई शिष्य राजा हैं ,वे उनसे धन मांग कर लाएंगे लेकिन वही धन लाएंगे जो धर्म पूर्वक कमाया गया हो और जिससे राजकोष की हानि न हो l उस समय ईमानदारी बहुत थी , वे अनेक राजाओं के पास गए , उनके राजकोष में जो धन था वह तो धर्म पूर्वक अर्जित था , लेकिन ऋषि अगस्त्य उसमे से धन लेते तो राजकोष में घाटा आ जाता l अत: उन्होंने धन लेने से इनकार कर दिया और वापस लौटने लगे l रास्ते में उन्हें इल्वन नमक एक असुर मिला l उसने महर्षि का अभिप्राय जाना तो प्रार्थना की कि मेरे पास विपुल सम्पदा है , आप जितनी चाहे ले जा सकते हैं l ऋषि , इल्वन के महल में पहुंचे और हिसाब जांचना शुरू किया तो देखा वहां सम्पदा तो अपार थी लेकिन सब कुछ अनीति से , शोषण से , दूसरों को कष्ट देकर उपार्जित थी l ऋषि ने उसे लेने से मना कर दिया और खाली हाथ लौट आए और लोपामुद्रा से बोले --- " भद्रे ! धर्म से कमाई करने और उदारतापूर्वक उचित खर्च करने वालों के पास कुछ बचता नहीं l अनीति से कमाने वालों के पास ही विपुल धन पाया जाता है , लेकिन उसके लेने से हमारे ऋषि जीवन में बाधा पड़ेगी और अशांति होगी l " लोपामुद्रा ने इस सत्य को समझा और सादगी के साथ सुख पूर्वक जीवन जीने में ही गर्व का अनुभव किया l
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