पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' जितनी शक्ति मनुष्य के भीतर है , उतनी किसी के पास नहीं है किन्तु मनुष्य भोग -विलास में जीवन बिता कर इस अमूल्य संपत्ति को नष्ट कर रहा है l ' एक कथा है ----- एक तपस्वी वन में रहकर घोर तप कर रहे थे l यह देख इंद्र घबराए कि इतना कठोर तप करने वाला इन्द्रासन का हकदार बन सकता है l इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएँ भेजीं , डराने के लिए राक्षस भेजे , पर तपस्वी ज्यों के त्यों रहे , वे जरा भी डगमगाए नहीं l अब इंद्र ने दूसरी चाल चली l उन्होंने एक परी को बहुत से पकवान , मिष्ठान लेकर भेजा l तपस्वी ने पहले तो उपेक्षा दिखाई , लेकिन फिर उनकी जीभ चटोरी हो गई l वन में ऐसा स्वादिष्ट भोजन उन्हें पहली बार मिला l अब वे रोज उस परी की प्रतीक्षा करने लगे l एक दिन वन परी अपने घर छप्पन भोग पकवान खिलाने का निमंत्रण देने आई l तपस्वी उसके घर पहुंचे और भोजन कर बहुत प्रसन्न हुए l परी ने कहा ---- ' आप मेरे घर ही निवास करें , इससे भी बढ़कर भोजन कराया करुँगी l " तपस्वी सहमत हो गए l रोज -रोज पकवान खाते थे l अब वे परी पर मुग्ध हो गए , उसके साथ गंधर्व विवाह करने को सहमत हो गए l तप भ्रष्ट हुआ , देवराज इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले ---- " अन्य रस छोड़े जा सकते हैं , पर स्वाद बड़े -बड़ों की साधना चट कर जाता है l "
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