रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग हमें यह सिखाते हैं कि किसी भी अत्याचारी , अधर्मी , अन्यायी से मुकाबला केवल इनसानी ताकत से नहीं हो सकता , उन पर विजय पाने के लिए ईश्वरीय कृपा अनिवार्य है l राम और रावण का युद्ध होना निश्चित हुआ l रावण अति बलवान और परम शिव भक्त था l श्रीराम स्वयं भगवान किन्तु मनुष्य रूप में थे इसलिए उन्होंने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि रावण पर कैसे विजय प्राप्त करें , इस हेतु वे सलाह दें l तब ब्रह्मा जी ने कहा --- " हे श्रीराम !लंका के इस युद्ध में आपको विजय श्री का वरदान आदिशक्ति देवी चंडी से प्राप्त करना होगा l एकमात्र वहीँ हैं जो आपको विजय पताका फहराने का आशीर्वाद दे सकती हैं l इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए चंडी पूजन करें और पूजन के पश्चात चंडी यज्ञ का आयोजन करें l ध्यान रहे इस हवं में एक सौ आठ नील कमलों की आवश्यकता पड़ेगी l " ब्रह्मा जी की सलाह अनुसार यज्ञ की तैयारी शुरू हुई , लक्ष्मण जी ने देवताओं के सहयोग से दुर्लभ एक सौ आठ नील कमलों की व्यवस्था की l मायावी रावण को इस गुप्त रहस्य का पता चल गया और उसने एक नीलकमल गायब कर दिया l हवन का विशिष्ट क्षण समाप्त होने को था और इतने कम समय में एक नीलकमल की व्यवस्था हो पाना कठिन था , सभी बहुत चिंतित थे l भगवान राम को उसी क्षण याद आया कि उनके नेत्र को ' कमलनयन ' ' नवकंजलोचन ' की संज्ञा दी जाती है अत: उन्होंने नीलकमल के स्थान अपना एक नेत्र देवी को अर्पित करने का निश्चय किया l जैसे ही वे तीर से अपना नेत्र निकालने को उद्यत हुए देवी चंडी प्रकट हुईं और भगवान श्रीराम को ' विजय श्री ' का आशीर्वाद दिया l यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि भगवान राम सन्मार्ग पर थे , धर्म की राह पर थे इसलिए देवी ने उन्हें 'विजय श्री ' का आशीर्वाद दिया l रावण भी देवी का भक्त था उसने भी विजय की कामना के लिए चंडी पाठ आरम्भ किया , उसके सामने भी देवी प्रकट हुईं लेकिन रावण क्योंकिं अधर्म की राह पर था , आततायी था इसलिए देवी ने उसे ' कल्याण हो ' का आशीर्वाद दिया l रावण का कल्याण , भगवान श्रीराम के हाथों मरने में ही था l उसने भगवान से कहा --- मेरे जीते जी आप मेरे धाम लंका में नहीं आ सके लेकिन मैं आपके पृथ्वी रहते आपके हाथों से मुक्त होकर आपके धाम विष्णु लोक जा रहा हूँ l
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