एक नवयुवक एक सिद्ध महात्मा के आश्रम में आया करता था l महात्मा उसकी सेवा से प्रसन्न होकर बोले ---- " बेटा ! आत्म कल्याण ही मनुष्य जीवन का सच्चा लक्ष्य है और इसे ही पूरा करना चाहिए l " यह सुनकर युवक ने कहा --- " महाराज ! वैराग्य धारण करने पर मेरे माता -पिता कैसे जीवित रहेंगे ? मेरी युवा पत्नी मुझसे अत्यंत प्रेम करती है l वह मेरे वियोग में मर जाएगी l " महात्मा बोले ---- " कोई नहीं मरेगा बेटा ! यह सब दिखावटी प्रेम है l तू नहीं मानता तो परीक्षा ले ले l " युवक राजी हो गया तो महात्मा जी ने उसे देर तक सांस रोकना सिखाया l युवक ने घर जाकर वही किया l घर वाले उसे मरा समझकर हो -हल्ला करने लगे , रोने लगे l पड़ोस के बहुत से लोग इकट्ठे हो गए , तभी महात्मा जी वहा पहुंचे और बोले --- " हम इस लड़के को जीवित कर देंगे , पर तुम लोगों को कुछ त्याग करना पड़ेगा l " घर -परिवार के लोग बोले --- " हम तैयार हैं , आप इसे जीवित कर दें l " महात्मा बोले --- " एक कटोरा दूध लाओ l " दूध आने पर महात्मा जी ने उसमें एक चुटकी भस्म डाली , एक मन्त्र पढ़ा और बोले --- " जो कोई इस दूध को पी लेगा वह मर जायेगा और यह युवक जीवित हो जायेगा l " अब समस्या यह हुई कि दूध कौन पिएगा l माता -पिता बोले कहीं वह जीवित न हुआ तो एक और जान व्यर्थ में जाएगी l पत्नी बोली --- " इस बार जीवित हो जाएंगे तो क्या , कभी तो मरेंगे l " अब महात्मा बोले ---- " अच्छा , मैं ही इस दूध को पी लेता हूँ l " सभी लोग प्रसन्न होकर बोले ---" महाराज ! आप धन्य हैं l साधु -संतों का जीवन परोपकार के लिए है l " महात्मा ने दूध पी लिया और युवक को बोले --- " उठ बेटा ! ज्ञान हो गया कि कौन तेरे लिए प्राण देता है l " युवक उठ बैठा , उसे महात्मा जी की एक -एक बात अब समझ में आ गई कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है , सब स्वार्थ के रिश्ते -नाते हैं ! इसलिए संसार में रहकर केवल अपना कर्तव्य पालन करो l किसी से कोई मोह , कोई उम्मीद नहीं रखो l सांसारिक रिश्तों के प्रति अपना कर्तव्य करते हुए अपना एक रिश्ता भगवान से रखो , केवल मात्र ईश्वर ही हैं जो हर पल और हर परिस्थिति में हमारा साथ देते हैं l
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