आज संसार में एक से बढ़कर एक अमीर हैं , अथाह सम्पदा है उनके पास l दान भी बहुत करते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि जब संसार में इतने दान -पुण्य के कार्य होते हैं तो इतनी अशांति क्यों क्यों है ? कहीं युद्ध , कहीं आतंक , कहीं भुखमरी , बेरोजगारी ---- नकारात्मकता का अनुपात अधिक है l हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है कि नीति और अनीति की कमाई में अंतर होता है l नीति की कमाई का छोटा सा दान भी सुख -शांति लाता है और अनीति की कमाई चाहे जितनी बड़ी मात्रा में दान की जाये , उसका परिणाम अनीति , अशांति ही होता है l पूंजीपति कैसे पनपता है ? यह बरसों से स्पष्ट है l एक कथा है ---- एक संत थे , धार्मिक उपदेश देते थे l वे कोई भेंट , उपहार नहीं लेते थे और अपना निर्वाह टोपियाँ सीकर , बेचकर करते थे क्योंकि उन्होंने शास्त्रों में पढ़ा था कि ज्ञान दान बिना किसी लाभ के करना चाहिए तभी उसकी महत्ता है l एक सेठ जी को प्रवचन सुनकर दान करने की प्रेरणा मिली और उन्होंने धर्म खाते में कुछ रूपये डालने शुरू किए l जब पांच सौ रूपये हो गए तब वे संत के पास गए और पूछा कि धर्म खाते के पांच सौ रूपये हो गए , इनका क्या करूँ ? संत ने सहज भाव से कहा --- ' जिसे तुम दीन -हीन समझते हो उसे दान कर दो l ' सेठ जी ने देखा कि एक दुबला -पतला , भूख से पीड़ित अँधा व्यक्ति जा रहा है l उन्होंने उसे सौ रूपये देकर कहा ---" सूरदास जी ! इन रुपयों से आप भोजन , वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं ले लेना l " अँधा आशीर्वाद देते हुए चला गया l सेठ जी को न जाने क्या सूझा वे उसके पीछे -पीछे चले l उन्होंने देखा कि उस अंधे ने उन रुपयों से खूब मांस खाया , शराब पी और जुए के अड्डे पर जाकर दाव पर बचे हुए रूपये लगा दिए l नशा चढ़ गया , वह सब रूपये हार गया तब जुए के अड्डे वालों ने उसे धक्के मारकर निकाल दिया l यह सब देख कर सेठ जी को बहुत ग्लानि हुई कि कैसे उसने बुरी आदतों में धन गँवा दिया l वह उन्ही संत के पास गए और सब किस्सा कह सुनाया l संत मन ही मन मुस्कराए और उसे अपना बचाया हुआ एक रुपया देकर कहा --- ' इसे किसी आवश्यकता वाले को दे देना और कल अपनी बात का उत्तर ले जाना l " सेठ जी ने आगे जाकर एक दीन -दरिद्र व्यक्ति को एक रुपया दे दिया और छिपकर उसके पीछे हो लिए l उन्होंने देखा कि कुछ दूर जाकर उस व्यक्ति ने अपनी झोली से एक चिड़िया को निकाल कर उड़ा दिया और कुछ पैसों के चने ख़रीदे , उन्हें खाकर , तृप्त होकर बहुत खुश हुआ और आगे चल दिया l सेठ जी ने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया ? तब वह गरीब व्यक्ति बोला --- " मैं कई दिनों से भूखा था l कुछ न पाकर यह चिड़िया पकड़ लाया था कि भूनकर खा लूँगा l अब आपने एक रुपया दे दिया तो प्राणी की हत्या क्यों करूँ l आज इतना अन्न मिल गया , बहुत संतोष हुआ l ' सेठ जी ने यह घटना भी संत को बता दी और दोनों घटनाओं का अंतर पूछा l संत बोले ---- ' वत्स ! महत्ता देने भर की नहीं है l हमने जो धन दान में दिया , वह किन साधनों द्वारा प्राप्त किया है ? इसकी भी भावना उसके साथ जुड़ जाती है l तुम्हारा अनीति पूर्वक बिना परिश्रम के कमाया हुआ धन प्राप्त कर उसने सौ रूपये भी अनीति के कार्यों में लगाए लेकिन मेरा एक रुपया परिश्रम से कमाया हुआ था , अत: जिसके पास गया , उसके द्वारा सद्बुद्धि पूर्वक व्यय किया गया l " अब सेठ को समझ आया कि लोगों का शोषण कर के , अनीति पूर्वक कमाया हुआ धन वैसा ही नकारात्मक प्रभाव दिखाता है इसलिए अब उसने ईमानदारी के साथ व्यापार करना शुरू किया l
No comments:
Post a Comment