8 November 2022

WISDOM ---

   आज  संसार  में  एक  से  बढ़कर  एक  अमीर  हैं , अथाह  सम्पदा  है  उनके  पास   l  दान  भी  बहुत  करते  हैं   लेकिन  प्रश्न  यह  है  कि  जब  संसार  में  इतने  दान -पुण्य  के  कार्य  होते  हैं   तो  इतनी  अशांति  क्यों क्यों  है  ?  कहीं  युद्ध , कहीं  आतंक , कहीं  भुखमरी , बेरोजगारी  ---- नकारात्मकता  का  अनुपात  अधिक  है  l  हमारे  धर्म ग्रंथों  में  लिखा  है  कि  नीति  और  अनीति  की  कमाई  में  अंतर  होता  है  l  नीति  की  कमाई  का  छोटा  सा  दान  भी  सुख -शांति  लाता  है   और  अनीति  की  कमाई  चाहे  जितनी  बड़ी  मात्रा  में  दान  की  जाये   , उसका  परिणाम  अनीति  , अशांति  ही  होता  है  l  पूंजीपति  कैसे  पनपता  है   ?  यह  बरसों  से  स्पष्ट  है  l     एक  कथा  है  ---- एक  संत  थे  , धार्मिक  उपदेश  देते  थे  l  वे  कोई  भेंट , उपहार  नहीं  लेते  थे  और  अपना   निर्वाह  टोपियाँ  सीकर , बेचकर  करते  थे   क्योंकि  उन्होंने   शास्त्रों  में  पढ़ा  था  कि  ज्ञान दान  बिना  किसी  लाभ  के  करना  चाहिए   तभी  उसकी  महत्ता  है  l   एक  सेठ जी   को  प्रवचन  सुनकर  दान  करने  की  प्रेरणा  मिली   और  उन्होंने  धर्म खाते  में  कुछ  रूपये  डालने  शुरू  किए  l   जब   पांच सौ  रूपये  हो  गए  तब  वे  संत  के  पास  गए   और  पूछा  कि  धर्म खाते  के  पांच सौ  रूपये  हो  गए  , इनका  क्या  करूँ  ?   संत  ने  सहज  भाव  से  कहा --- ' जिसे  तुम  दीन -हीन  समझते  हो  उसे  दान  कर  दो  l '  सेठ जी  ने  देखा  कि  एक  दुबला -पतला , भूख  से  पीड़ित  अँधा  व्यक्ति  जा  रहा  है  l  उन्होंने  उसे  सौ  रूपये  देकर  कहा ---" सूरदास जी  !  इन  रुपयों  से  आप   भोजन , वस्त्र  और  अन्य  आवश्यक  वस्तुएं  ले  लेना  l "  अँधा  आशीर्वाद  देते  हुए  चला  गया  l  सेठ जी  को  न  जाने  क्या   सूझा   वे  उसके  पीछे -पीछे  चले  l   उन्होंने  देखा   कि  उस  अंधे  ने  उन  रुपयों  से  खूब  मांस  खाया , शराब  पी   और  जुए  के  अड्डे  पर  जाकर   दाव  पर  बचे  हुए  रूपये  लगा  दिए  l  नशा  चढ़  गया , वह  सब  रूपये  हार  गया   तब  जुए  के  अड्डे  वालों  ने  उसे  धक्के  मारकर  निकाल  दिया  l  यह  सब  देख  कर  सेठ जी  को  बहुत  ग्लानि  हुई  कि    कैसे  उसने  बुरी  आदतों  में  धन  गँवा  दिया  l  वह  उन्ही  संत  के  पास  गए   और  सब  किस्सा  कह  सुनाया  l  संत  मन  ही  मन  मुस्कराए  और   उसे  अपना  बचाया  हुआ  एक  रुपया  देकर  कहा --- ' इसे  किसी  आवश्यकता   वाले  को  दे  देना   और  कल  अपनी  बात  का  उत्तर  ले  जाना  l  "  सेठ जी  ने  आगे  जाकर  एक  दीन -दरिद्र  व्यक्ति  को  एक  रुपया  दे  दिया   और  छिपकर  उसके  पीछे  हो  लिए  l   उन्होंने  देखा  कि  कुछ  दूर  जाकर  उस  व्यक्ति  ने  अपनी  झोली  से  एक  चिड़िया  को  निकाल कर  उड़ा  दिया  और  कुछ  पैसों  के  चने  ख़रीदे  , उन्हें  खाकर , तृप्त  होकर  बहुत  खुश  हुआ  और  आगे  चल  दिया  l  सेठ जी  ने  उससे  पूछा  कि  उसने  ऐसा  क्यों  किया   ?  तब  वह  गरीब  व्यक्ति  बोला --- " मैं  कई  दिनों  से  भूखा  था  l  कुछ  न  पाकर  यह  चिड़िया  पकड़  लाया  था  कि   भूनकर   खा  लूँगा  l  अब  आपने  एक  रुपया  दे  दिया  तो  प्राणी  की  हत्या  क्यों  करूँ  l  आज  इतना  अन्न  मिल  गया  , बहुत  संतोष  हुआ  l  '    सेठ जी  ने  यह  घटना  भी  संत  को  बता  दी   और  दोनों  घटनाओं  का  अंतर  पूछा  l   संत  बोले ---- ' वत्स  !  महत्ता  देने  भर  की  नहीं  है  l  हमने  जो  धन  दान  में  दिया  , वह  किन  साधनों  द्वारा  प्राप्त  किया  है  ?  इसकी  भी  भावना  उसके  साथ  जुड़  जाती  है  l  तुम्हारा  अनीति पूर्वक  बिना  परिश्रम  के  कमाया  हुआ  धन  प्राप्त  कर   उसने  सौ  रूपये  भी  अनीति  के  कार्यों  में  लगाए    लेकिन  मेरा  एक  रुपया  परिश्रम  से  कमाया  हुआ  था  ,  अत:  जिसके  पास  गया  , उसके  द्वारा  सद्बुद्धि  पूर्वक  व्यय  किया  गया  l  "  अब  सेठ  को  समझ  आया   कि  लोगों  का  शोषण  कर  के , अनीति पूर्वक  कमाया  हुआ  धन   वैसा  ही  नकारात्मक  प्रभाव  दिखाता  है   इसलिए  अब  उसने  ईमानदारी   के  साथ  व्यापार  करना  शुरू  किया  l  

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