विनोबा भावे की एक पुस्तक है --- ' चिरयौवन की साधना ' -- इसमें एक श्लोक की व्याख्या करते हुए वे हनुमान जी को चिरयुवा कहते हैं l अनीति के विरुद्ध संघर्ष के कारण यह संज्ञा उनने दी है l वे कहते हैं कि मात्र हनुमान जी ही चिरयुवा हैं और कोई नहीं , वे बल के देवता हैं l वे लिखते हैं ---" कुम्भकरण और रावण भी बड़े बलशाली थे , पर दोनों ने अपने बल को कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयुक्त किया l बाली भी अत्यंत बलशाली था , उसने रावण तक को परस्त कर दिया था , मप्र कामवासना के वशीभूत हो रावण और बाली दोनों का ही बल व्यर्थ हो गया l लेकिन हनुमान जी ने अपने निष्काम बल से सारी लंका उजाड़ दी और सुग्रीव के कहने पर श्रीराम से बाली का वध कराया l " भगवान श्रीराम के प्रति उनका समर्पण और निष्काम भाव के कारण ही उनमे वह शक्ति थी कि समुद्र पार कर सके और लंका को तहस -नहस कर दिया l आज के युवाओं के लिए वे प्रेरणा हैं l श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है ---आसुरी बल की तुलना में भगवत्ता का बल ज्यादा है l जब यह बल दूसरों की रक्षा में , समाज के पीड़ितों , आपदा से त्रस्त लोगों को राहत देने में नियोजित होता है तब वहां बल -सामर्थ्य के रूप में परमात्मा स्वयं विद्यमान हैं l
No comments:
Post a Comment