पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "वास्तविकता बहुत देर तक छिपाए नहीं रखी जा सकती l व्यक्तित्व में इतने अधिक छिद्र होते हैं कि उनमें से होकर गंध दूसरों तक पहुँच ही जाती है l इसलिए कमजोरियों पर गंदगी का आवरण न डालकर उनके निष्कासन के , स्वच्छता के प्रयासों में निरत रहना चाहिए l ------- महात्मा बुद्ध आस्वान राज्य के किसी नगर से होकर गुजर रहे थे l वह स्थान उनके विरोधियों का गढ़ था l बुद्ध को अपमानित करने के लिए विरोधियों ने एक चाल चली l एक कुलता स्त्री के पेट में बहुत सा कपड़ा बांधकर भगवान बुद्ध के पास भेजा गया l वह वहां पहुंची और जोर -जोर से चिल्लाकर कहने लगी --- ' देखो यह पाप इस महात्मा का है l यहाँ ढोंग रचाए घूमता है और मुझे स्वीकार भी नहीं करता l " सभा में खलबली मच गई l उनके शिष्य आनंद बहुत चिंतित हो गए और बोले --- " भगवान ! अब क्या होगा ? " बुद्ध हँसे और बोले ---- " तुम चिंता मत करो l कपट देर तक नहीं चलता l चिरस्थायी फलने -फूलने की शक्ति केवल सत्य में है l " इस बीच उस स्त्री की करघनी गई और जो कपड़े ऊपर से बाँध रखे थे , वे जमीन पर खिसक पड़े l पोल खुल गई , वह स्त्री अपने कर्म पर बहुत लज्जित हुई l लोग उसे मारने दौड़े , पर भगवान बुद्ध ने यह कहकर उस स्त्री को सुरक्षित लौटा दिया --- " जिसकी आत्मा मर गई हो , वह मरों से भी बढ़कर है , उसे शारीरिक कष्ट देने से क्या लाभ ? "
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