संत हरिदास अपने शिष्य तानसेन से कह रहे थे कि यदि ईश्वर को पाना है तो अपने अहंकार को मिटाना होगा l बाबा हरिदास अपनी आध्यात्मिक अनुभूति उन्हें सुनाते हुए बोले ----" सुबह मैंने ध्यान में देखा , राधारानी श्रीकृष्ण से कह रहीं हैं ---' कन्हैया ! यह बाँसुरी सदा ही तुम्हारे ओंठों से लगी रहती है , तुम्हारे ओंठों का स्पर्श इस बांस की पोंगरी को इतना अधिक मिलता है कि मुझे जलन होने लगती है l ' राधारानी की बात सुनकर श्रीकृष्ण खूब जोर से हँसे और बोले --- " राधिके ! बाँसुरी होना सबसे कठिन है , शायद उससे कठिन और कुछ भी नहीं l जो स्वयं को बिलकुल मिटा दे , वही बाँसुरी हो सकता है l यह बांसुरी बांस की पोंगली नहीं है l इसका स्वयं का कोई स्वर नहीं है --- मैं गाता हूँ तो वह गाती है , मैं मौन हूँ तो वह मौन है , मेरा जीवन ही उसका जीवन है l "
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