द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था l महर्षि अरविन्द को एहसास हुआ कि आश्रम के कुछ अंतेवासी मन -ही -मन हिटलर की विजय की दुआ करने लगे हैं l आपस की चर्चाओं में भी कभी -कभी यह बात आ ही जाती थी l श्री अरविन्द ने तत्कालीन कार्यकर्ताओं की शाम की एक बैठक में कहा कि ---- " जो लोग ऐसा कर रहे हैं , वे असुरता की विजय चाहते हैं l भारतीय मूल्य हमें ऐसा नहीं करने देंगे l ऐसे व्यक्ति जो हिटलर की विजय की इच्छा रखते हैं , आश्रम से चले जाएँ l प्रश्न मूल्यों का है l हम परमात्मा की , आदर्शों की विजय चाहते हैं l " आचार्य श्री कहते हैं ---- यह प्रसंग हम सबके लिए एक सन्देश है l हमें मूल्य आधारित जीवन जीना है l श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यही कहा था कि तू मोहग्रस्त होकर भीष्म और द्रोणाचार्य को देख तो रहा है , उन्हें न मारने की दलीलें भी दे रहा है , पर तुझे यह नहीं दिखाई देता कि वे दुर्योधन के --अनीति के संरक्षक भी हैं l आज जब सारा संसार एक मंच पर है और कुछ लोगों के स्वार्थ , अहंकार और महत्वाकांक्षा के दुष्परिणाम झेल रहा है , ऐसे में श्री अरविन्द का यह प्रसंग और भगवान श्रीकृष्ण का गीता में यह संदेश संसार को जागरूक करने के लिए है l
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