1 . मगध के एक व्यापारी ने बहुत धन कमाया l उसे अपनी सम्पन्नता पर इतना गर्व हुआ कि वह अपने घर के लोगों पर ऐंठा करता l परिणाम यह हुआ कि उसके लड़के भी उद्दंड और अहंकारी हो गए l पिता -पुत्र में ठनने लगी और घर नरक बन गया l व्यापारी बहुर परेशान हुआ और उसने महात्मा बुद्ध की शरण ली और कहा --- " भगवन ! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाइये , मैं भिक्षु होना चाहता हूँ l " तथागत ने कुछ सोचकर उत्तर दिया --- " भिक्षु बनने का अभी समय नहीं है l तात ! तुम जैसा संसार चाहते हो वैसा आचरण करो , तो घर में ही स्वर्ग के दर्शन कर सकोगे l जब तक मन अशांत है , तुम्हे उपवन में भी शांति नहीं मिलेगी l यह नरक तुम्हारा अपना ही पैदा किया हुआ है l " व्यापारी घर लौट आया l उसने जैसे ही अपना द्रष्टिकोण , व्यवहार , आचरण बदला , सबके ह्रदय बदले और उसे घर में ही स्वर्ग के दर्शन होने लगे l प्रगति -दुर्गति , स्वर्ग -नरक मनुष्य स्वयं ही रचता है l
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