सूफी फकीर जुन्नैद के जीवन का प्रसंग है --- जुन्नैद बहुत ही शांत स्वभाव के थे l लोग उनके पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते थे l उनके पास आने वालों में कुछ तो बेहद गुस्से में आते और कहते ---- " जिस शख्स के कारण मैं गुस्से में हूँ , उसे सबक सिखाने का कोई नुस्खा जल्दी से बता दीजिए , ताकि आगे से वो मेरे साथ वैसी हरकत न कर सके l " जुन्नैद ने उसे शांत करने की बहुत कोशिश की लेकिन उसका गुस्सा कम नहीं हुआ तब वे बोले ---- " मैं तुम्हे क्रोध करने को मना नहीं करता हूँ , बल्कि ये कहता हूँ कि तुम आराम से गुस्सा करना , पर चौबीस घंटे बाद करना l " अगले दिन जब लोग उनके पास आते तो उनका गुस्सा शांत हो गया होता था l एक दिन जुन्नैद से उनके एक शिष्य ने पूछा ---- " आखिर क्रोध करने वाले इन लोगों को आप चौबीस घंटे का समय ही क्यों देते हैं ? " जुन्नैद बोले ---- " बेटा ! क्रोध के आवेश में यदि तुरंत जवाब दिया जाए तो आदमी बेकाबू हो जाता है l वह दोस्ती , रिश्ते -नाते भी भुला देता है l उस समय उसे कुछ भी समझा पाना संभव नहीं होता l " इस पर शिष्य बोला ---- " फिर चौबीस घंटे का वक्त ही क्यों ? दो -तीन दिन का समय क्यों नहीं ? " इसका जवाब देते हुए जुन्नैद बोले ---- " चौबीस घंटे तक कोई लगातार गुस्से में नहीं रह सकता , इस दौरान उसे अपने आप अपनी गलती का एहसास होने लगता है l वहीँ दो -तीन दिन बाद वह और कामों में व्यस्त हो जाता है और अपनी गलती भूल जाता है l इसलिए चौबीस घंटे के अन्दर कोई भी व्यक्ति यदि अपने गुस्से पर सोच -विचार कर ले , तो वह उसे न सिर्फ काबू कर सकता है , बल्कि दूसरों को भी उनकी गलती का एहसास करा सकता है l " इसलिए क्रोध आने पर हमें स्वयं को समय देना चाहिए और किसी का नुकसान करने का मन हो तो उस पर एक दिन बाद पुन: विचार करना चाहिए l
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