जापान का एक युवा तीरंदाज स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर मानने लगा था l वह जहाँ भी जाता , लोगों को मुकाबले की चुनौती देता और उस मुकाबले में उनको हराकर उनका खूब मजाक उड़ाता l एक बार उसने एक झेन गुरु बोकोशु को चुनौती दी l गुरु ने चुनौती स्वीकार कर ली l युवक ने स्पर्धा प्रारम्भ होते ही लक्ष्य के बीचोंबीच निशाना लगाया और पहले ही तीर में लक्ष्य भेद दिया l वह झेन गुरु से दंभ पूर्वक बोला ---- " क्या आप इससे बेहतर कर सकते हैं ? " झेन गुरु मुस्कराए और उसे ऐसे स्थान पर ले गए , जहाँ दो पहाड़ियों को जोड़ने के लिए लकड़ी का एक कामचलाऊ पुल बना था l उस पर कदम रखते ही वह चरमराने लगा l बोकोशु ने उसे पुल पर अपने पीछे आने को कहा l बोकोशु ने पुल के बीच पहुंचकर सामने दूर खड़े एक पेड़ के तने पर निशाना लगाया l इसके बाद उन्होंने उस युवक से निशाना लगाने को कहा , परन्तु कई बार के प्रयास के बाद भी वह निशाना न लगा सका l उसे निराशा में डूबा हुआ देखकर झेन गुरु ने कहा --- " वत्स ! तुमने निशाना लगाना तो सीख लिया , पर मन पर नियंत्रण करना नहीं सीखा , जो किसी भी परिस्थिति में शांत रहकर निशाना साध सके l " युवक को बात समझ में आ गई l उसने अब अहंकार छोड़कर मन को साधने का प्रयास आरम्भ किया l
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