17 January 2025

WISDOM -----

   महाभारत  में  एक  प्रसंग  है   जिसमें  धर्मराज  युधिष्ठिर  से  यक्ष  ने   कई    प्रश्न  पूछे  ,  उनमे  से  एक  प्रश्न  था  ---- इस  संसार  का  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  क्या है  ? '  युधिष्ठिर  ने  उत्तर  दिया  --- " सबसे  बड़ा  आश्चर्य  है  कि  मृत्यु  को  सुनिश्चित  घटना  के  रूप  में  देखकर  भी  मनुष्य  इसे  अनदेखा  करता  है  l  वह  मृत्यु  की  नहीं  जीवन  की  तैयारी  कुछ  इस  अंदाज  में  करता  है  ,  जैसे  विश्वास हो  कि  वह  कभी  मरेगा  ही  नहीं  l  उसे  सदा -सदा  जीवित  रहना  है  l  "  यह  सत्य  है  ,  वैज्ञानिक  नित्य  नए  तरीकों  से  और  आध्यात्मिक  कहे  जाने  वाले  लोग  भी  पूजा -पाठ , मन्त्र , जप -तप  आदि   के  विभिन्न  प्रयोगों  से  निरंतर  प्रयासरत  हैं  , जिससे  रोग , बीमारी , बुढ़ापा  व  मृत्यु  से  बचा  जा  सके  l  बस !  यही  वह  बिंदु  है  ,  जहाँ  सब  हार  गए  l  ईश्वर  से  बड़ा  कोई  नहीं  है  l  अरबों  की  संपदा ,  सारी  सुख -सुविधाएँ , अनुभवी  चिकित्सक , तंत्र -मन्त्र  की  बड़ी  से  बड़ी  ताकत  भी  मृत्यु  को  नहीं  रोक  सकती  l  ईश्वर  ने  जितनी  सांसे  दी  है ,  सम्पूर्ण  पृथ्वी  का  वैभव  लुटाने  पर  भी  एक  पल  भी  अतिरिक्त  नहीं  मिलता  l  लेकिन  इसके  साथ  एक  सत्य  यह  भी  है  कि  यदि  कोई  व्यक्ति  ईश्वर  के  कार्य  के  लिए  स्वयं  को  समर्पित  कर  दे  तब  ईश्वर  उसकी  नियति  अपने  हाथ  में  ले  लेते  हैं   और  ईश्वरीय   योजना   को  पूर्ण  करने  में  उसकी  भागीदारी  के  लिए  उसे   जीवन  देते  हैं  l  जैसे  महाभारत  में  अर्जुन  ने  स्वयं  को  भगवान  श्रीकृष्ण  के  चरणों  में  समर्पित  किया  , तब  भगवान  स्वयं  उनके  सारथि  बने  और  भीष्म , द्रोणाचार्य   , कर्ण  जैसे  महारथियों  के  तीव्र  प्रहार  से  उनकी  रक्षा  की  l  इस  कलियुग  में  हम  अर्जुन  जैसे  न  भी  बन  पाएं  तो  भगवान  ने  श्रीमद् भगवद्गीता  में  कहा   है  --- निष्काम  कर्म  करो  ,  निष्काम  कर्म  से  तुम  अपने  लिए  सुंदर  दुनिया  बना  सकते  हो  l '  हमारे  ऋषियों  , आचार्य  ने  कहा  है  --- सत्कर्म  का  कोई  भी  मौका  हाथ  से  न  जाने  दो  ,  सत्कर्म  की  पूंजी  इकट्ठी करो  ,  यह  पूंजी  ही  जीवन  में  आने  वाली  विभिन्न  विपदाओं  से  हमारी  रक्षा  करती  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---  मृत्यु  के  सत्य  को  स्वीकार  कर  जीवन  को  सार्थक  बनाने  का  प्रयास  करो  l  '  मृत्यु   की  देवी   हमें  बहुत  कुछ   सिखाती  हैं  कि  ये  अहंकार ,  ऊँच -नीच , अमीर  -गरीब  का  भेदभाव  व्यर्थ  है  ,  केवल  मृत्यु  ही  ऐसी  है  जो  कोई  भेदभाव  नहीं  करती  , एक  ही  तरीका  है --- मुट्ठी  बांधे  आया  जग  में  , हाथ  पसारे  जाना  है  l  

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