इस धरती पर मानव जीवन में आपदाएं विपदाएं आती रहती हैं l कभी -कभी इनका रूप बहुत विकराल होता है , स्पष्ट रूप से यह समझ में आता है कि प्रकृति बहुत क्रोधित है , किसी तरह उनका क्रोध शांत ही नहीं हो रहा है l मनुष्य अपनी मानसिक विकृतियों के कारण अनेक तरह के पापकर्म करता है लेकिन जब कोई भयंकर पाप समझदार , सभ्रांत और समाज के सभ्य कहे जाने वाले लोगों द्वारा सोच -समझकर , समाज से छिपकर निर्दोष प्राणियों , बच्चों और बेसहारा लोगों पर किया जाता है , उसे प्रकृति सहन नहीं करती l ऐसे पापकर्म में जो भी भागीदार होते हैं , सब जानते हुए चुप रहते हैं , अपनी शक्ति से उन्हें रोकते नहीं बल्कि उन्हें और छूट देते हैं --- ऐसे लोगों को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करतीं l ऐसे प्राकृतिक प्रकोप , महामारी , भूकंप , तूफ़ान में गेहूं के साथ घुन भी पिसता है l जागरूक न होने का भी दंड मिलता है l प्रकृति को शांत कर सुख -शांति से जीवन जीना है तो संसार में मनुष्य को जागरूक होना होगा , देखना होगा कहाँ छोटे -छोटे बच्चों का शोषण , उत्पीड़न हो रहा है , कहाँ मानव शरीर के विभिन्न अंगों का भी बाजार बना है , स्वाद के नाम पर कितने प्राणियों की हत्या हो रही है , कम उम्र के कितने युवाओं को बहला -फुसलाकर नशे की लत लगाईं जा रही है ---ये सब पापकर्म मनुष्य या ---- सिर्फ अपने लाभ के लिए करता है l ऐसे ही पापों की जब अति हो जाती है तब प्रकृति सामूहिक दंड देती है l कितने ही दंड मिल जाएँ मनुष्य सुधरता नहीं है , वह अपनी ही विकृतियों का गुलाम है , उसे इन सबकी आदत बन गई है , इसी का नाम संसार है l भगवान भी अवतार ले लेकर थक गए , कहाँ तक समझाएं , मनुष्य की अक्ल पर परदा पड़ा है l
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