पुराण की विभिन्न कथाओं में जीवन के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत हैं l श्रद्धा और विश्वास से जब आप उन्हें सुनेंगे -पढ़ेंगे तो आप को संसार में होने वाली विभिन्न घटनाओं का कारण और उनका समाधान समझ में आएगा l पुराण में एक कथा है ---- महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया , अभिमन्यु के पुत्र महाराज परीक्षित अपनी प्रजा की समस्याओं का समाधान करने की भवना से नगर -भ्रमण को निकले , मार्ग में उन्होंने देखा एक व्यक्ति गाय , बैल आदि प्राणियों को बहुत बेदर्दी से मार रहा है l उन्होंने उसे इस दुष्कर्म के लिए दंड देना चाहा तो वह हाथ जोड़ कर बोला ---महाराज मैं कलियुग हूँ , द्वापर युग समाप्त हो गया , अब धरती पर शासक चाहे कोई हो , मेरा ही राज रहेगा l चारों ओर अत्याचार , तबाही , युद्ध , दंगे , निर्दोष प्राणियों की हत्या ----यही सब अत्याचार अब होने का समय आ गया l महाराज परीक्षित बड़े चिंतित हुए , उन्होंने कहा --- ऐसे तो इस धरती पर रहना मुश्किल हो जायेगा , तुम अपने लिए कोई स्थान निश्चित कर लो l तब महाराज परीक्षित ने कलियुग को रहने के लिए पांच स्थान बताए , उनमें से एक था --' स्वर्ण ' अर्थात वर्तमान युग में इसका अर्थ है --अमीरी , सुख वैभव l कथा है कि महाराज परीक्षित ने जब अपपना स्वर्ण मुकुट धारण किया तो कलियुग सबसे पहले उन पर ही चढ़ बैठा जिससे उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उन्होंने ऋषि के गले में सांप डाल दिया फिर उन्हें ऋषि का श्राप मिला ---- ऐसे आगे कथा है l इस कथा को हम इस काल के संदर्भ में देखें तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अति की अमीरी ईमानदारी से नहीं , लोगों का शोषण करने से , बेईमानी और भ्रष्टाचार से ही आती है , इसलिए इसका अहंकार भी बहुत बड़ा होता है l जो जितना बड़ा अमीर है वह चाहेगा सारी दुनिया उसके अनुसार चले , वो जो चाहे वही लोग खाएं , वो जो पिलाना चाहे वही पिएं l खेती , शिक्षा , चिकित्सा , महामारी सब उसकी इच्छा से हो l यहाँ तक कि लोगों के मन पर भी उसका कब्ज़ा हो जाए , वह लोगों को कठपुतली की तरह नचाए ---- इसी में उसका आनंद है l धन में बहुत ताकत है , धनी जैसा चाहता है वैसा होता भी है l कलियुग एक प्रकार का डीमन है , एक पिशाच की तरह है , उसे अपनी खुराक चाहिए , उसकी भूख बहुत है l इसलिए वह धन -शक्ति संपन्न लोगों के भीतर घुस जाता है , उनकी बुद्धि भ्रष्ट कर के तबाही मचाता है
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