15 February 2025

WISDOM ------

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं --- दुराचारी  से  दुराचारी  व्यक्ति  भी  यह  ठान  ले   कि  प्रभु  मेरे  हैं ,  मैं  उनका  हूँ  ,  उनका  अंश  होने  के  नाते  अब  मुझसे  कोई  गलत  कार्य  नहीं  होगा  ,  तो  फिर  वे  उसे  भी  तार  देते  हैं  l  भगवान  कहते  हैं  --विवेक  कभी  साथ  नहीं  देता  ,  संसार  का  आकर्षण  लुभाता  है  ,  गलतियाँ  हो  जाती  हैं   तो  एक  ही  मार्ग  है --हम  भगवान  का  पल्ला  पकड़  लें  l  गन्दा  नाला  भी  गंगा  में  मिलकर  पवित्र  हो  जाता  है   लेकिन  जो  दुराचार  किया  है  उसके  लिए  कष्टों  से  तो  गुजरना  ही  होगा  l  कर्मफल  तो  भुगतना  ही  होगा  , पीड़ा  को  तो  सहना  ही  होगा  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ---ईश्वर  के  दरबार  में  झूठ  और  धोखा  नहीं  चलता  l  यदि  गलती  न  करने  का  संकल्प  लिया  है  तो  उस  पर  अडिग  रहो  ,  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  l  ------ डाकू  अंगुलिमाल  अनेक  नागरिकों  की  उँगलियाँ  काटकर  उनकी  माला  पहनकर  घूमता  था  l  राजा  प्रसेनजित  की  सेना  भी  उससे  हार  मान  गईं  थीं  l  उसके  पास  चलकर  गौतम  बुद्ध  आए  l  अंगुलिमाल  ने  उनसे  कहा  --- " भिक्षु  !  मैं  तुम्हे  मार  दूंगा  l "  वह  उनसे  बार -बार  रुकने  को  कह  रहा  था  l  तब  तथागत  बोले  ---- " रुकना  तो  तुझे  है  पुत्र  !  मैं  तो  कभी  का  ठहरा  हुआ  हूँ  l  भाग  तो  तू  रहा  है  --अपनी  जिन्दगी  से , अपने   आप  से  ,  अपने  भगवान  से  l  तू  रुक  ! "  इतना  कहते -कहते  वे  उसके  नजदीक  आ  गए   और  उसे  गले  से  लगा  लिया  l  अंगुलिमाल  को  पहली  बार  सच्चा  प्यार मिला  l  बुद्ध  ने  उसे  संघ  में  शामिल  कर  लिया  l  अब  संघ  में  भगवान  बुद्ध  की  बुराई  होने  लगी  कि  उन्होंने  एक  अपराधी , खतरनाक  डाकू  को  संघ  में  शामिल  कर  लिया  l  भगवान  बुद्ध  ने  अंगुलिमाल  से  धैर्य  रखने  और  कोई  प्रतिक्रिया  न  देने  को  कहा  l  सभी  भिक्षुक  सामूहिक  रूप  से  भगवान  बुद्ध  के  पास  आए  और  कहा  --- अंगुलिमाल  के  संघ  में  शामिल  होने  के  कारण  संघ  की  बुराई  हो  रही  है  l  बुद्ध  बोले --- "  वह  पूर्व  में  डाकू  था ,  अब  भिक्षु  है  ,  ,  पर  तुम में  से  बहुत  सारे   डाकू  बनने  की  दिशा  में  चल  रहे  हो  l  उसे  मार  डालने  की  सोच  रहे  हो  l  यह  क्या  कर  रहे  हो  ? "  भगवान  बुद्ध  ने  सोचा  कि  इन  लोगों  को  जवाब  मिल  जायेगा  और  अंगुलिमाल  को  भी  निर्वाण  मिल  जायेगा  ,  यह  सोचकर  उन्होंने   अंगुलिमाल  को  उसी  क्षेत्र  में  भिक्षा  मांगने  भेजा  ,  जहाँ  वह  अपराधी  बना  था  l  लोगों  में  बहुत  क्रोध  था  ,  उसे  पत्थर  खाने  पड़े  l  चोट  खाकर  वह  मूर्छित  हो  गया  l  उसके  पास  कोई  नहीं  आया  ,  बुद्ध  भगवान  स्वयं  आए  ,  पत्थर  हटाए , उसकी  सेवा  की  l  जब  अंगुलिमाल  को  होश  आया  तो  उससे  कहा --- "  तुम  एक  घुड़की  दे  देते ,  सब  भाग  जाते  ,  क्यों  मार  खाते  रहे  ! "  अंगुलिमाल  बोला  ---- "  प्रभो  !  कल  तक  मैं  बेहोश  था  ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l "                                              गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---- " यथार्थ  निश्चय  वाले ,  संकल्प  शक्ति  से  मजबूत  व्यक्ति  का  अनन्य  भाव  से  समर्पण  उसे  न  केवल  शांति ,  वरन  एक  सुरक्षा  कवच  भी  प्रदान  करता  है  l   ईश्वर  सदा  उसके  साथ  रहते  हैं  l  कोई  उसका  कुछ  बिगाड़  नहीं  सकता  l  

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