संसार में मनुष्य कर्म करने को स्वतंत्र है l प्रत्येक कर्म का परिणाम अवश्य होता है l जब कोई कर्म इस भाव से किया जाता है की उसका किसी को भी पता न चले , वह गुप्त रहे l ऐसे में यदि वह गुप्त रूप से किया गया कोई दान है , सेवा कार्य है तो उसका सुफल उस व्यक्ति को अवश्य मिलता है l उसके इस पुण्य कार्य को ईश्वर ने देखा है l इसी तरह जब कोई व्यक्ति समाज से , सबसे छिपकर कोई अपराध करता है , तो वह निश्चिन्त रहता है कि उसे किसी ने नहीं देखा , कहीं कोई सबूत नहीं है इसलिए दंड से बच जायेगा l लेकिन उसके दुष्कृत्य को ईश्वर ने देखा है l विशेष रूप से जो लोग तंत्र , आदि नेगेटिव एनर्जी की मदद से दूसरों को सताते हैं , अपने अहंकार के पोषण के लिए उनका गलत इस्तेमाल करते हैं तो पीड़ित होने वाला समझ नहीं पाता की उसके जीवन में बार -बार बिना वजह आने वाली ऐसी समस्याओं का कारण क्या है l ऐसे अपराध करने वाले कानून से तो बच जाते हैं लेकिन उन्हें इसका हिसाब कहीं न कहीं अवश्य चुकाना पड़ता है l मनुष्य जागरूक रहकर ही ऐसे अपराधियों को पहचानकर उनसे बचाव के उपाय कर सकता है l ऐसे अपराध कलियुग में व्यापार है क्योंकि इस युग में मनुष्य दूसरों को खुश देखकर दुःखी है , अपनी योग्यता से नहीं , दूसरों को धक्का देकर , गिराकर आगे बढ़ना चाहता है l हर क्षेत्र में शार्टकट से सफलता चाहता है , मेहनत से धन कमाने में बहुत समय लगेगा , नकारात्मक शक्तियों की मदद से दूसरे को मिटाकर व्यक्ति सब कुछ हासिल करना चाहता है l यह सब व्यक्ति करता तो है लेकिन कहीं न कहीं वह स्वयं भी शिव के तृतीय नेत्र खुलने से भयभीत रहता है l
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