9 February 2025

WISDOM ------

   सौराष्ट्र  के  राजकवि  हेमचन्द्र  सूरि   का  प्रजा  बहुत  सम्मान  करती  थी  l  स्वयं  नरेश  भी  उनकी   इच्छा पूर्ति  करने  में   अपने  जीवन  की  सार्थकता  अनुभव  करते  थे  l  ऐश्वर्य  से  घिरे  रहने  पर  भी  वे  उससे  अछूते  थे  l  एक  बार  वे  एक  गाँव  में  प्राकृतिक  सौन्दर्य  का  आनंद  लेने  निकले   l  गाँव वासियों  को  जैसे  ही  यह  ज्ञात  हुआ  कि  कविराज  आ  रहे  हैं  ,  वे  सभी  कुछ  न  कुछ  लेकर   कविराज  के  दर्शन  हेतु उमड़  पड़े  l  इसी  क्रम  में  एक  ग्रामीण  जो  स्वयं  फटेहाल  वस्त्रों  में  था  ,  उसने  एक  हस्तनिर्मित  परिधान   राजकवि  के  चरणों  में  समर्पित  किया  l   राजकवि  की  नजर  उसके  फटेहाल  वस्त्रों  पर  गई  तो  उनकी  आँखे  भर  आईं  l  वे  सोचने  लगे  "    कितनी  विषमता  है  ,   कहाँ   तो  उनके  इतने  कीमती  , बहुमूल्य  परिधानों  से  सुसज्जित  वस्त्र   और  कहाँ    इसके  टाट  जैसे  मोटे  वस्त्र  l  यह   परिश्रमी  किसान  तन  ढंकने  के  वस्त्रों  से  वंचित  है  l  सत्य  तो  यह  है  कि  हमारा  अस्तित्व   इनकी  श्रमशीलता  के  कारण  ही  है  ,  किन्तु  हम  इन्हें  ही  सुरक्षित  जीवन  प्रदान  करने  में असमर्थ  हैं  l  "   ऐसा  विचार  करते  हुए  राजकवि  ने  वह  परिधान  माथे  से  लगाया   और  धारण  कर  लिया  l   अगले  दिन  वह  उसी   परिधान  को  धारण  कर  जब  राजदरबार  में  गए   तो  महाराज  बोले  ----- "  कविवर  !  ऐसे  दरिद्र  वस्त्र  आपको  शोभा  नहीं  देते  l  आपने  ऐसे  वस्त्र  क्यों  पहने  हैं  ? कविराज  बोले  --- "  महाराज  !  हमारे  हमारे  राज्य  की  अधिकांश  प्रजा  ऐसे  ही  साधारण  वस्त्र  पहनती  है  , तो  फिर  मुझे  बहुमूल्य  वस्त्र  पहनने  का  अधिकार  किसने  दिया  ?  मैंने  निश्चय  किया  कि  अब  मैं  ऐसे  ही  वस्त्र  पहनूंगा  l  "  कविराज  की  करुणापूर्ण  बातें  महाराज  के  ह्रदय  को  छू  गईं  और  उन्होंने  निश्चय  किया  कि  अब  वे   राज्य  के  प्रत्येक  व्यक्ति  को  आवश्यक  जीवनस्तर  उपलब्ध  कराने  का  हर  संभव  प्रयास  करेंगे  और  स्वयं  भी   अनावश्यक  खर्चों  में  कटौती  कर  सामान्य  जीवन  जिएंगे  l  

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