मनुष्य के जीवन में सुख -दुःख धूप -छाँव की तरह आते -जाते हैं l ईश्वर ने धरती पर अवतार लेकर अपनी लीलाओं के माध्यम से मनुष्य को जीवन जीना सिखाया l भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारी थी लेकिन अगले ही पल उन्हें चौदह वर्ष का वनवास हो गया l श्रीराम के चेहरे पर इससे कोई तनाव नहीं , क्रोध नहीं , कोई विवाद नहीं l जो भी परिस्थिति है उसे सहज स्वीकार किया l एक बार के लिए यह मान लें कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण स्वयं भगवान थे , उनके कष्ट उनकी लीला का हिस्सा थे लेकिन जो लोग भगवान श्रीकृष्ण के परिवार के थे , उनके जीवन में कितने कष्ट थे l जो भगवान श्रीकृष्ण की माता थीं -देवकी उन्हें कंस के अत्याचार सहने पड़े , उनकी सात संतानों को कंस ने उनके सामने मार डाला l पांडवों को भगवान श्रीकृष्ण का प्रत्यक्ष आश्रय प्राप्त था लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन कष्ट में बीता l कृष्ण की बहन सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु को महाभारत के युद्ध में सात महारथियों ने मिलकर छल से मार डाला l सुभद्रा कृष्ण से कहती हैं ---- तुम्हे तो लोग भगवान कहते हैं फिर भी तुम मेरे पुत्र को बचा नहीं पाए l भगवान कहते हैं ---- मनुष्य के जीवन में जो भी सुख या दुःख है उसके पीछे उसके जन्म -जन्मान्तरों के कर्म की कहानी है l कर्मफल से कोई भी नहीं बचा है l महारानी कुंती भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं , उनका सारा जीवन कष्टों में बीता l जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और श्रीकृष्ण द्वारका लौटने लगे तो कुंती ने उनसे प्रार्थना की ---- " हे प्रभु ! आप आशीर्वाद दें कि हम पर विपत्तियाँ सदैव आती रहें l " श्रीकृष्ण ने पूछा --- " आप लोगों ने जीवन भर विपत्तियों का सामना किया है , फिर ऐसी विलक्षण मांग क्यों ? ' कुंती बोलीं ---" भगवान ! विपत्तियाँ आएँगी तो उनसे रक्षा के लिए आप भी आयेंगे l जिस भी कारण से आपका दर्शन हो , हमारे लिए तो सोभाग्यशाली ही होगा l " विपत्तियाँ हर एक के जीवन में आती हैं , पर जिनकी भगवान पर अटल श्रद्धा होती है , वे इन क्षणों को जीवन का सौभाग्य मानकर स्वीकार करते हैं l आचार्य श्री कहते हैं ---" जीवन के प्रत्येक पल एवं प्रत्येक घटनाक्रम सकारात्मक एवं सार्थक उपयोग करो l जीवन की हर चोट , हर पीड़ा हमें गढ़ती है , संवारती है l
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