पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इन दिनों आस्था संकट सघन है l लोग नीति और मर्यादा को तोड़ने पर बुरी तरह उतारू हैं l फलत: अनाचारों की वृद्धि से अनेकों संकटों का माहौल बन गया है l न व्यक्ति सुखी है , न समाज में स्थिरता है l समस्याएं , विपत्तियाँ , विभीषिकायें निरंतर बढ़ती जा रही हैं l स्थिर समाधान के लिए जनमानस के द्रष्टिकोण में परिवर्तन , चिन्तन का परिष्कार और सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन , यही प्रमुख उपाय है l " आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह दृढ मान्यता थी कि ---- " मनुष्य की धर्म , न्याय और नीति में अभिरुचि होनी चाहिए l उसके लिए वह सहज वृत्ति है l यदि इस दिशा में प्रगति न हो पाई तो अंततः मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है l " आचार्य जी लिखते हैं -----" ऊंट को नकेल से , घोड़े को लगाम से , बैल को डंडे से और हाथी को अंकुश के सहारे वश में किया जा सकता है l ईश्वर विश्वास और आस्तिकता की भावना मनुष्य की दूषित प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाती है l "
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