ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार ऐसे दुर्गुण हैं कि ये व्यक्ति को मानसिक रूप से विकृत कर देते हैं l अहंकार के साथ सबसे बुरी बात यह है कि अहंकारी अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पाता l उसके अहंकार को जब पोषण नहीं मिलता तो यह अहंकार घाव की भांति रिसने लगता है l ऐसा अहंकारी यदि ईर्ष्यालु भी है तो वह अपने अहंकार के पोषण के लिए अधम से अधम कार्य करने पर उतारू हो जाता है , उसे परिणाम की परवाह नहीं होती l ---महाभारत में अश्वत्थामा ने यही किया l पहले उसने शिविर में सोते हुए द्रोपदी के पांच पुत्रों का गला काट दिया और शिविर में आग लगा दी l इससे भी उसका जी नहीं भरा l इस युग में जैसे अणुबम है , उस समय ब्रह्मास्त्र था l अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र चलाना तो आता था लेकिन उसे वापस बुलाना नहीं आता था l अहंकार और ईर्ष्या उस पर इस तरह हावी था कि उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को लक्ष्य कर के एक सरकंडे को मन्त्र पढ़कर उत्तरा के गर्भ की ओर फेंका ताकि पांडवों के वंश का भी समूल नाश हो जाए l उस समय भगवान श्रीकृष्ण थे , उन्होंने गर्भस्थ शिशु की रक्षा की l वर्तमान युग की सबसे दुःखद बात यही है कि इस युग में दुर्बुद्धि का प्रकोप है l दुर्बुद्धि के साथ यदि ईर्ष्या और अहंकार भी है तो ब्रह्मास्त्र का इतिहास दोहराया जा सकता है , घातक बम फेंक दो , उसे वापस लौटाने की विद्या तो विज्ञान के पास नहीं है l पल भर में समूची धरती श्मशान बन सकती है , युगों का विकास पल भर में राख हो सकता है l भगवान श्रीकृष्ण हमारे सामने नहीं है लेकिन वे निरंतर कोई सन्देश और संकेत भेजते हैं कि मनुष्य जागरूक हो , अपनी सुरक्षा का घेरा इतना मजबूत बनाओ कि कोई उसमें प्रवेश न कर सके l युद्ध की नौबत ही न आए l असुरों को निपटाने के लिए युगों से कितने ही युद्ध हुए लेकिन असुरता का साम्राज्य समाप्त नहीं होता है l ईश्वर विभिन्न देवदूतों के माध्यम से संसार को यह सन्देश देते हैं कि असुरों की चेतना में , उनके मन में परिवर्तन हो जाये तो उनके भीतर की असुरता समाप्त हो जाएगी l इसका सबसे सरल उपाय है --- 'गायत्री मन्त्र ' l इससे व्यक्ति को सद्बुद्धि आएगी l
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