16 June 2025

WISDOM ------

 आज  संसार  में  जितनी  भी  आपदाएं -विपदाएं  हैं  ,  उनके  मूल  में  कारण   ' आर्थिक '  है  l  धन  जीवन  के  लिए  बहुत  जरुरी  है    लेकिन  धन  को  ही  सब  कुछ  मान  लेने  के  कारण   आज  मानव  जीवन  का  प्रत्येक  क्षेत्र  व्यापार  बन  गया  है   और  व्यापारी  केवल  अपना  लाभ  देखता  है  l  जो  जितना  अमीर  है  , उसका  लालच  उतना  ही  बड़ा  है  l  गरीब  तो  सूखी  रोटी  खाकर  चैन  से  सोता  है  लेकिन  अमीर  और  अमीर ----और  अमीर  ----  बनने  के  लिए   कोई  कोर -कसर  बाकी  नहीं  रखते  l  उनकी  इस  अंधी  दौड़  के  कारण  ही   सम्पूर्ण  मानव  जाति  पर  खतरा  है  l  धन  की  अति  लालसा  ने  ईमानदारी  के  गुण  को  ही  समाप्त  कर  दिया  है  l  मनुष्य  न  घर  में  सुरक्षित  है  , न  बाहर  l  ईश्वर  कभी  किसी  का  बुरा  नहीं  चाहते   l  मानव  जीवन  पर  आज  जो  भी  विपत्तियाँ  हैं  , वे  सब  मानव निर्मित  है  l  रावण , कंस , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप   के  पास   धन -संपदा  , सुख -वैभव  की  कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  इनकी   गन्दी  मानसिकता  के  कारण  प्रजा  परेशान  थी  l  ये  असुर  भी  स्वयं  को  भगवान  समझते  थे   लेकिन  मृत्यु  भेदभाव  नहीं  करती  l  l  

15 June 2025

WISDOM ------

   कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  ,  वही  इस  धरती  पर  है  l  महर्षि  वेद  व्यास  ने  इस  महाकाव्य  के  माध्यम  से  संसार  को  यह  समझाने  का  प्रयास  किया  कि  धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा  के  साथ  यदि  मनुष्य  में  सद्बुद्धि  और  विवेक  नहीं  है  ,  उसकी  धर्म  और  अध्यात्म  में  रूचि  नहीं  है    तो   ऐसा  व्यक्ति  संवेदनहीन  होता  है  और  वह  अपनी   कभी  संतुष्ट  न  होने  वाली  तृष्णा  और  महत्वाकांक्षा  के  लिए  कितना  भी  नीचे  गिर  सकता  है   l -------- दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  , लेकिन  उसे  संतोष  नहीं  था   l  वह  पांडवों  से  ईर्ष्या करता  था ,  उनकी  उपस्थिति  को  वह  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  था  और  उनको  जड़  से  समाप्त कर   हस्तिनापुर  पर  अपना  एकछत्र  राज्य  चाहता  था    और  इसके  लिए  उसने  शकुनि  के  साथ  मिलकर   बहुत  ही  गुप्त  रूप  से   पांडवों  को  जीवित जला  देने  की  योजना   बनाई  l   दुर्योधन  के  मन  की  इस   घिनौनी  चाल का  पता  किसी  को  नहीं  था  l   अब  उसने   पांडवों  का  हितैषी  बनकर   अपने  पिता  धृतराष्ट्र  से  कहा  कि  वे  पांडवों  को  वारणावत   में   होने  वाले  भव्य  मेले  की  शोभा  देखने  और  सैर  करने  के  लिए   जाने  की  अनुमति  दें  l  पांडव  भी  प्रसन्न  थे  l  माता  कुंती  के  साथ  उन्होंने  पितामह  आदि  सभी  सबसे  अनुमति  ली  l  महात्मा  विदुर  से  अनुमति  लेने  वे  उनके  पास  गए  तब  विदुर जी  ने  युधिष्ठिर  से  सांकेतिक  भाषा  में  कहा  ----- "जो  राजनीतिक -कुशल  शत्रु  की  चाल  को  समझ  लेता  है  ,  वही  विपत्ति  को  पार  कर  सकता  l  ऐसे  तेज  हथियार  भी  होते  हैं  ,  जो  किसी  धातु  के  बने  नहीं  होते  , ऐसे हथियार  से  अपना  बचाव  करना  जो  जान  लेता  है  ,  वह  शत्रु  से  मारा  नहीं  जा  सकता  l  जो  चीज  ठंडक  दूर  करती  है   और  जंगलों  का  नाश  करती  है  ,  वह  बिल  के  अन्दर  रहने  वाले  चूहे  को  नहीं  छू  सकती  l  सेही  जैसे  जानवर   सुरंग  खोदकर   जंगली  आग  से   अपना  बचाव   कर  लेते  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  नक्षत्रों  से  दिशाएं  पहचान  लेते  हैं  l  "     महात्मा  विदुर  ने  सांकेतिक  भाषा  में  दुर्योधन  के  षड्यंत्र   और  उससे  बचने  का  उपाय   युधिष्ठिर  को   सिखा  दिया  l    दुर्योधन  की  पांडवों  को  जीवित  जला  देने  की  गहरी  चाल  थी  l  उसने  अपने  मंत्री  पुरोचन  को  वारणावत  भेजकर  पांडवों  के  लिए  एक  सुन्दर  महल  बनवा  दिया  l  उस  महल  का  वैभव  और  सब  सुख -सुविधा  देखकर  प्रजा  यही  समझे  कि  दुर्योधन  पांडवों  का  हितैषी  है  l  लेकिन  सच  यह  था  कि  वह  महल  लाख  का  बना  था  ,  हर  तरह  के  ज्वलनशील पदार्थों  से  मिलकर  वह  लाख  का  महल  तैयार  हुआ  था  l  दुर्योधन  की  योजना  थी  कि  कुछ  दिन  वहां  आराम  से  रहेंगे  ,  फिर  एक  रात  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  जाएगी  l  इस  षड्यंत्र  का  किसी  को  पता  नहीं  चलेगा   ' सांप  भी  मर  जाए   और  लाठी  भी  न  टूटे  l "    विदुर जी  की  गूढ़  भाषा  समझकर  पांडव  जागरूक  हो  गए  थे  ,  उस  लाख  के  महल  में  रहकर   और  रात्रि  भर  जागकर   उन्होंने   उस  महल  के  नीचे  से  एक  सुरंग  तैयार  कर  ली  l  लगभग  एक  वर्ष  बीत  गया  l  युधिष्ठिर  दुर्योधन  के  मंत्री  पुरोचन  के  रंग -ढंग  देखकर  समझ  गए  कि    वह  क्या  करने  की  सोच  रहा  है  l  उन्होंने  उसी  रात  एक  भव्य  भोज  का  आयोजन  किया  , सभी  नगर  वासियों  को  भोजन  कराया  गया  ,  जैसे  कोई  बड़ा  उत्सव  हो  l  सभी  कर्मचारी  , नौकर  चाकर  भी  खा -पीकर   गहरी  नींद  सो  गए  , पुरोचन  भी  सो  गया  l  आधी  रात  को  भीम  ने  ही  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  और  पांचों  पांडव  और  माता  कुंती  सुरंग  से  सुरक्षित  बाहर  निकल  कर  सुरक्षित  स्थान  पर  चले  गए  l  दुर्योधन  आदि  कौरव  तो  मन  ही  मन  बहुत  प्रसन्न  थे  कि  पांडवों  का  अंत  हुआ  लेकिन  ' जिसकी  रक्षा  भगवान  करते  हैं , उन्हें  कोई  नहीं  मार  सकता  l  यह  प्रसंग  हमें  यही  सिखाता  है    कि  मनुष्य  को   जागरूक  होना  चाहिए  l  कलियुग  का  प्रमुख  लक्षण  ही  यही  है  कि  जिसके  पास  धन , पद  , प्रतिष्ठा   है  , उसके  सिर  पर कलियुग  सवार  हो  जाता  है   और  फिर  वह  उससे  वही  सब  कार्य  कराता  है  जो  आज  हम  संसार  में  देख  रहे  हैं  l  

11 June 2025

WISDOM -----

   महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  मात्र  कहने  और  सुनने  के  लिए  नहीं  है  l  महर्षि  उन  प्रसंगों  के  माध्यम   प्रत्येक  युग  की  परिस्थितियों  के  अनुरूप   संसार  को  कुछ  सिखाना  चाहते  हैं  l  इस  काल  की  बात  हम  करें  तो   यह  स्थिति  लगभग  सम्पूर्ण  संसार  में  ही  है  लोग  धन , पद , प्रतिष्ठा   और  अपने   विभिन्न  स्वार्थ , कामनाओं  और  वासना  के  लिए  बड़ी  ख़ुशी  से  ऐसे  लोगों  का  साथ  देते  हैं  जो   अन्यायी  हैं  , विभिन्न  अपराधों  में  , पापकर्म  में  लिप्त  हैं  l  यह  स्थिति  परिवार  में , संस्थाओं  में   और  हर  छोटे -बड़े  स्तर  पर  है  l  देखने  पर  तो  ऐसा  लगता  है  कि  गलत  लोगों  का  साथ  देने  पर  भी  सब  सुख -वैभव  है   लेकिन  इसके  दीर्घकाल  में  परिणाम  कैसे  होते  हैं  ,  यह  महाभारत  के  इस  प्रसंग  से  स्पष्ट  है  ----- महाभारत  का  सबसे  आकर्षक  व्यक्तित्व  --'कर्ण '    जो  सूत पुत्र  के  नाम  से  जाना  जाता  था  ,  उसकी  वीरता  देखकर  दुर्योधन  ने  उसे  अंगदेश  का  राजा  बना  दिया  l  इस  उपकार  की  वजह  से  दुर्योधन  और  कर्ण  घनिष्ठ  मित्र  बन  गए   और  कर्ण  ने  अपनी  आखिरी  सांस  तक  मित्र  धर्म  निभाया  l  दुर्योधन  अत्याचारी  व  अन्यायी  था  , बिना  वजह  पांडवों  के  विरुद्ध षड्यंत्र  कर  उन्हें  हर  तरह  से  उत्पीड़ित  करता  था  l  ऐसे  दुर्योधन  का  साथ  देकर   कर्ण  अंगदेश  का  राजा  तो  बन  गया  ,  लेकिन  उसका  स्वयं  का  जीवन   धीरे -धीरे  खोखला  होता  गया  l  अपने  गुरु   का  श्राप  उसे  मिला  कि  जब  उसे  जरुरत  होगी   तो  वह  यह  विद्या  भूल  जायेगा  l   फिर  एक  रात्रि  को  स्वप्न  में  स्वयं  सूर्यदेव  ने  उससे  कहा  कि  देवराज  इंद्र  तुम्हारा  कवच -कुंडल  मांगने  आएंगे  ,  तुम  अपने  कवच -कुंडल  नहीं  देना  , इनसे  तुम्हारा  जीवन   सुरक्षित  है  l   लेकिन  कर्ण  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी  और  अपने  कवच -कुंडल  इंद्र  को  दे  दिए  l  इंद्र  ने  उससे  प्रसन्न  होकर  उसे  एक  अमोघ  शक्ति  प्रदान  की   , जिसे  कर्ण  ने  अर्जुन  को  युद्ध  में  पराजित  करने  के  लिए  सुरक्षित  रखा  था   लेकिन  वह  शक्ति  भी  भीम  के  पुत्र  घटोत्कच  का  वध  करने  में   चली  गई  l  अत्याचारी  , अन्यायी  का  साथ  देने  से   वह  राजा  तो  था  लेकिन  संयोग  ऐसे  बनते  जा  रहे  थे  कि  ईश्वर  प्रदत्त  उसकी  शक्तियां  उससे  दूर  होती  जा  रहीं  थीं  l  अंत  में  उसे  सारथि  भी  शल्य  जैसा  मिला   जो  निरंतर  अपनी  बातों  से  उसके  मनोबल  को  कम  कर  रहे  थे  l  कहीं  न  कहीं  कर्ण  के  मन  में  भी  राजसुख  भोगने  का  लालच  था  l  जब  दुर्योधन  ने  पांडवों  को  लाक्षा गृह  में  जीवित  जलाने  का  षड्यंत्र  रचा  ,  फिर  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  किया   तब  कर्ण  चाहता  तो  कह  सकता  था  कि  मित्र ! अपना  अंगदेश  वापस  ले  लो  ,  ऐसे  अधर्म  और  अत्याचार  का  साथ  हम  नहीं  दे  सकते    या  वह  अपने  विभिन्न  तर्कों  से  दुर्योधन  को  समझाने  का  प्रयास  भी  कर  सकता  था  l  यदि  वह  ऐसा  करता  तो  कहानी  कुछ  और  होती   l  महर्षि  ने  इस  प्रसंग  के  माध्यम  से   संसार  को  यही  समझाया  कि  अत्याचारी  अन्यायी  का  साथ  देना   या  अनीति  और  अन्याय   को   देखकर  मौन  रहना  ये  ऐसे  अपराध   हैं  कि  व्यक्ति  ऐसा  कर  के  अपने  जीवन  में  ईश्वर  से  मिली  जो  विभूतियाँ  हैं  उन्हें  धीरे -धीरे  खोता  जाता  है   और  जीवन  में  ऐसा  अभाव  आ  जाता  है  जिनकी  भरपाई    उस  धन -संपदा   से  नहीं  हो  सकती  l  अनीति  से  प्राप्त  सुख  में  व्यक्ति  इतना  डूब  जाता  है   कि  जब  होश  आता  है  तब  तक  बहुत  देर  हो  चुकी  होती  है  , वापस  लौटना  संभव  नहीं  होता  l  जैसे  कर्ण  को  अंत  में  मालूम  हुआ  कि  वह  तो  सूर्य पुत्र  है  , महारानी  कुंती  उसकी  माँ  है   लेकिन  अब  बहुत  देर  हो  गई  थी  , अनीति  और  अत्याचार  के  दलदल  से  उसका  निकलना  संभव  नहीं  था  l  लालच , स्वार्थ  ----ऐसे  दुर्गुण  हैं   जिनके  वश  में  होकर   व्यक्ति  क्षणिक  सुखों  के  लिए  स्वयं  को  ही  बेच  देता  है  ,  एक  प्रकार  की  गुलामी  स्वीकार  कर  लेता  है  l 

9 June 2025

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  पुराणों  में  देवताओं  और  असुरों  के  बीच  संघर्ष   की  अनेक  कथाएं  हैं   l  युगों  से  अच्छाई  और  बुराई  में , देवता  और  असुरों  में  संघर्ष  चला  आ  रहा  है   जिनमें  अंत  में  विजय  देवताओं  की   होती  है  ,  सत्य  और  धर्म  ही  विजयी  होता  है  l  उस  युग  में   दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोग  बहुत  थे  ,  वे  संगठित  भी  थे  और  उनका  आत्मिक  बल  बहुत  अधिक  था   इसलिए  वे  असुरों  से  मुकाबला  कर  उन्हें  पराजित  कर  देते  थे  l  कलियुग  की  स्थिति  बिलकुल  भिन्न  है   l  अब  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  , दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोगों  की  संख्या  बहुत  कम  है  ,  वे  संगठित  भी  नहीं  हैं  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  देते   फिर  अपने  परिवार  की  खातिर   उन्हें  सत्ता  से  भी  समझौता  करना  पड़ता  है  l  इसलिए  इस  युग  में  पहले  जैसा  देवासुर  संग्राम  संभव  ही  नहीं  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  साम्राज्य  सम्पूर्ण  धरती  पर  है  ,  मुट्ठी  भर  देवता  उनका  क्या  बिगाड़  लेंगे  ?   लेकिन  असुरता  का  अंत  तो  होना  ही  है  , अन्यथा  यह  धरती  घोर  अंधकार  में  डूब  जाएगी  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  अंत  कैसे  हो  ?  इसका  संकेत  भगवान  ने  द्वापर  युग  के  अंतिम  वर्षों  में  ही  दे  दिया  था  l  किसी  कुल  या  किसी  विशेष   खानदान    में  जन्म  लेने  से  कोई  भी  देवता  या  असुर  नहीं  है  l  ईश्वर  ने  बताया  कि  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  देवता  या  दानव  कहलायेगा  l  व्यक्ति  का  श्रेष्ठ  चरित्र  ,  उसके  श्रेष्ठ  कर्म  उसके  देवत्व  का  प्रमाण  होंगे  l   अब  दैवीय  गुणों  से  संपन्न  किसी  को  भी  असुरता   से   संघर्ष  की  जरुरत  नहीं  है  l  अपने  श्रेष्ठ  कर्मों  से  मनुष्य  के  पास  नर  से  नारायण  बनने  की   संभावना  है  l  यह  मार्ग  सबके  लिए  खुला  है  l    जो  लोग  अपनी  दुष्प्रवृत्तियों  से  उबरना  ही  नहीं  चाहते ,  अति  के  भोग -विलास  के  कारण   उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  है  ,  वे  अपने  ही  दुर्गुणों  के  कारण  आपस  में  ही  लड़कर  नष्ट  हो  जाएंगे  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ही  कुल  के  उदाहरण  से  संसार  को  समझाया  कि  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  के  वंशज  होने  के  बावजूद   अति  के  सुख -सम्पन्नता  के  कारण  पूरा  यादव  वंश  भोग  विलास  में  डूब  गया  था  ,  उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  था   इसलिए  पूरा  यादव  वंश  आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  नष्ट  हो  गया   और  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई  l  देवता  या  असुर  बनना  अब  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  हमें  निर्णय  लेना  है  ,  चयन  का  अधिकार  प्रत्येक  को  है  l  

8 June 2025

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  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "जिस  प्रकार  सूखे  बाँस  आपस  की  रगड़  से  ही  जलकर  भस्म  हो  जाते  हैं  ,  उसी  प्रकार  अहंकारी  व्यक्ति   आपस  में  टकराते  हैं   और  कलह  की  अग्नि  में  जल  मरते  हैं  l  "   किसी  न  किसी  उदेश्य  के  लिए  ये  अहंकारी  संगठित  हो  जाते  हैं  , अपना  एक  गुट  बना  लेते  हैं  l  इनका  अहंकार  चरम  पर  होता  है  ,  इनका  उदेश्य  किसी  का  हित  करना  नहीं  होता  ,  ये  अपने  स्वार्थ  के  लिए  और  विभिन्न  तरीकों  से  अपने  अहंकार  को  पोषित  करने  के  लिए  संगठित  होते  हैं  l  जब  तक  इनके  उदेश्य  पूरे  होते  हैं  , ये  संगठित  रहते  हैं  लेकिन  जब  भी  कभी  किसी  के  अहंकार  को  चोट  पहुँचती  है  ,  तब  इनमें  फूट  पड़   जाती  है  ,  फिर  आपसी  कलह  से  ही  इनका  अंत  होता  है  l  रावण , कंस , दुर्योधन  का  अहंकार   मिटाने  के  लिए  भगवान  को  धरती  पर  आना  पड़ा  l  लेकिन  कलियुग  में  अहंकारी  स्वयं  को  ही  भगवान  समझते  हैं   इसलिए  अब  ईश्वर  विधान  रचते  हैं  ,  जिससे  ये  नकली  भगवान    आपस  में  लड़कर  ,   अपने  ही  कुकर्मों  के  बोझ  तले  दबकर   मृतक  समान  हो  जाते  हैं  l  कलियुग  में  इन  अहंकारियों  का  अंत  करने  भगवान  इसलिए  भी  नहीं  आते  क्योंकि   ईश्वर  के  हाथों  जिनका  अंत  होता  है  , उनकी  मुक्ति  हो  जाती  है  l  इस  युग  के  अहंकारी  इतने  पापकर्म  करते  हैं   कि  ईश्वर  उन्हें  मुक्ति  नहीं  देते  ,  उन्हें  तो  हजारों  वर्षों  तक  भूत , प्रेत  , पिशाच  की  योनि  में  भटकना  पड़ता  है  l  ऐसे  लोग  जीवित  रहते  हुए  अपने  अहंकार  के  नशे  में   लोगों  को  सताते  हैं   फिर  मरकर  भूत -प्रेत  बनकर  सताते  हैं  l  धरती  माता  के  लिए  ऐसे  लोग  बड़े  कष्टकारी  हैं  l  

7 June 2025

WISDOM ------

 हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  महाभारत  की  कथा   भाई -भाई  के  बीच  उत्तराधिकार  के  लिए  संघर्ष  की  गाथा  है  l  पांडवों  को  उनके  अधिकार  से  वंचित  करने  के  लिए  दुर्योधन  ने   मामा  शकुनि  के  साथ  मिलकर    षड्यंत्र  रचने  और  छल -कपट  करने  की  अति  कर  दी  l  अपने  ही  खानदान  की  कुलवधू  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने  , अपशब्द  कहने  में  कोई  कसर    नहीं  छोड़ी  l  इस  कथा  का  अंत  नहीं  हुआ  ,  कलियुग  में    अब  यह  अधिकांश  परिवारों   की  सच्चाई  है  l  धन  , संपत्ति  का  लालच  और  अपनी  दमित  इच्छाओं  के  लिए   लोग   अपने  परिवार  के  सदस्यों  और  अपने  रिश्तों  पर  ही  अत्याचार , अन्याय  करते  हैं  l  अहंकार  , लालच  , ईर्ष्या  द्वेष  व्यक्ति  को  बहुत  गिरा  देते  हैं  , अपने  पराये  का  भेद  मिट  जाता  है  l  बुद्धि  के  विकास  के  साथ -साथ  ----- को  अपमानित  करने  का  तरीका  बदल  जाता  है  l  पागलपन  की  हद  तक  सताओ  ,  ताकि  पीड़ित  स्वयं  ही  घर -संपत्ति  सब  छोड़कर  चला  जाये  l  महाभारत  का  महाकाव्य  लिखने  के  पीछे  महर्षि  का  यही  उदेश्य  रहा  होगा   कि  कलियुग  में  जब  परिस्थितियां   बहुत  विकट   हो  जाएँ   तब  उन  विपरीत  परिस्थितियों  में  कैसे  शांति  से  रहा  जाये  l  महर्षि  ने  यही  समझाया  कि  जब   दुर्योधन , दु:शासन  और  शकुनि  जैसे    षड्यंत्रकारियों  से  पाला  पड़  जाये   जो  अपनी  आखिरी  सांस  तक   अत्याचार  और  अन्याय  करना  नहीं  छोड़ते   तब  पांडवों  की  तरह   उनके  किसी  भी  व्यवहार  पर  अपनी  कोई  प्रतिक्रिया  न  दो  ,  उन  पर  क्रोध  कर  के  अपनी  ऊर्जा  को  न   गंवाओ  l  बल्कि  तप  कर  के  अपनी  शक्ति  को   बढ़ाओ   ताकि  वक्त  आने  पर  उन  अत्याचारियों  का  मुकाबला  कर  सको  l  अपनी  शक्ति  बढ़ाने  के  साथ  स्वय  को  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  करो  l  अर्जुन  की  तरह  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथों  में  सौंप  दो   l  ईश्वर  स्वयं  न्याय  करेंगे  ,  ईश्वर  के  घर  देर  है  , अंधेर  नहीं  है  l  

5 June 2025

WISDOM ------

  कहते  हैं  जब  तक  व्यक्ति  स्वयं    न  सुधारना  चाहे  तब  तक   उसे  भगवान  भी  नहीं  सुधार  सकते     l  समाज  में  सुधार  के  लिए  ,  राष्ट्र  में   और  संसार  में  सुख शांति , सद्भाव  के  लिए  कितने  ही  कानून  बन  गए  हैं   लेकिन  कहीं   कोई  शांति  नहीं  है  l  केवल  अपने  अहंकार  की  पूर्ति  के  लिए  ,  हथियारों  के  इस्तेमाल  के  लिए    मनुष्य  इन  कानूनों  का  उल्लंघन  करता  है  l  सामाजिक  बुराइयों  को  रोकने  के  लिए  भी  कितने  ही  नियम -कानून  बन  गए  हैं   लेकिन  मनुष्य  की  चेतना  विकसित  नहीं  हुई  ,  चेतना  का  परिष्कार  ही  नहीं  हुआ   , इसलिए  अब  मनुष्य  समाज  से  छिपकर   इन  बुराइयों  में  लिप्त  रहता  है  l  कानून  बनने  से  कुछ  फायदा  तो  होता  है  , अन्यथा  जंगल राज  हो  जाये    लेकिन  चेतना  का  परिष्कार  जरुरी  है  l   विवेक  न  होने  के  कारण  ही   धन , बुद्धि , शक्ति  सभी  का  दुरूपयोग  होता  है  l  दुर्योधन  को  समझाने  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  शांति  दूत  बनकर  हस्तिनापुर  गए  l  दुर्योधन  का  विवेक  नष्ट  हो  चुका  था  , उसने  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  देने  से  भी  मना  कर  दिया   l  उसकी  विवेकहीनता  के  कारण  ही  महाभारत  हुआ  l  l   वर्तमान  में  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  कुछ  इस  तरह   हावी  है  कि  वह    इतिहास  से  शिक्षा  नहीं  लेता  ,  दो  विश्व  युद्धों  का  परिणाम  देखकर  भी  उसे  अक्ल  नहीं  आती  l  स्वयं  को  भगवान  समझ  कर  नया  इतिहास  लिखना  चाहता  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ---'स्वयं  का  सुधार  संसार  की  सबसे  बड़ी  सेवा  है  l '                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

2 June 2025

WISDOM-----

 यदि  कोई  व्यक्ति  पूरी  तरह  पागल  है  तो  उसका  इलाज  तो  किया  जा  सकता  है   लेकिन  मानसिक  विकृतियों   जैसे  ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार  ,  दूसरों  के  सुख  को  सहन  न  कर  पाना  ,  अपनी  सारी  ऊर्जा  दूसरों  का  हक  छीनने  में  लगा  देना  --- ये  सब  ऐसी  मानसिक  विकृतियां  हैं  जिनका  इलाज  किसी  भी  चिकित्सक  के  पास  नहीं  है  l  किसी  व्यक्ति  के  ऐसे  दुर्गुणों  से  सबसे  ज्यादा  पीड़ित  वही  होता  है  जो  उनके  अहंकार  को  पोषित  नहीं  करता  l  ऐसे  दुर्गुणी  व्यक्ति  की  यह  खासियत  होती  है  कि  उसका  किसी  ने  कुछ  नहीं  बिगाड़ा  ,  लेकिन  फिर  भी   वह   किसी  के  सुख , वैभव , शांतिपूर्ण जीवन  को  देखकर  जलता -भुनता  है  और  उसके  विरुद्ध  छल , कपट  , षडयंत्र  करने   में  कोई  कोर -कसर  बाकी  नहीं  रखता  l  ऐसे  व्यक्ति  परिवारों  में  पाए  जाते  हैं   और  वे  ही  जब  संस्थाओं  में  जाते  हैं   तो  वहां  भी  अपने  दुर्गुणों  का   लोगों  को  पीड़ित  करने  में  भरपूर  इस्तेमाल  करते  हैं  l  दुर्योधन , दु:शासन  , शकुनि  केवल  महाभारत  में  ही  नहीं  थे  ,  , वे तो विभिन्न  परिवारों  और  संस्थाओं  में  मौजूद  हैं  l  पांडवों  ने  दुर्योधन  आदि  कौरवों  का  कुछ  नहीं  बिगाड़ा  था  ,  वे  तो  शांति  से  रहते  थे   लेकिन  दुर्योधन  उनकी  सुख -शांति  से  ईर्ष्या  करता  था  ,  उनका  हक़   छीनना  चाहता  था  l  शकुनि  की  सलाह   ने  उसके  षड्यंत्रकारी  इरादों  को  और  मजबूत  बना  दिया  l  ऐसे  दुर्गुणों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  संवेदनहीन  होते  हैं    फिर  उन्हें  शकुनि  जैसे  सलाहकार  मिल  ही  जाते  हैं  l  इसलिए  आज  परिवार  टूट  रहे  हैं  , परिवार  के  नाम  पर  अत्याचार  बढ़  रहा  है  l   विश्वास  किस  पर  करें  और  किस  पर  न  करें  यह  बड़ी  विकट   समस्या  है   क्योंकि  व्यक्ति  समाज  में  अपना  सम्मान  बनाए  रखने  के  लिए  अपनों  की  ही  पीठ  पर  छुपकर  वार  करता  है   और  जब  भेद  खुल  जाता  है  तो  परिवार   की  मर्यादा  के  नाम  पर  उससे  मुँह  बंद  रखने  के  लिए   कहा  जाता  है  l  यही  तो  महाभारत  में  हुआ  --- दुर्योधन , शकुनि  ने  पांडवों  को  लाक्षाग्रह  में  जीवित  जलाने  की  योजना  बनाई  l  पांडव  किसी  तरह  बच  निकले   और  जब   भेद  खुला  कि  यह  तो  दुर्योधन  आदि  का  षड्यंत्र  था   , तब  दुर्योधन  की  गलती  पर  परदा  डालने  के  लिए   महाराज  धृतराष्ट्र  ने  पांडवों  को  खुश  करने  का  हर  संभव  प्रयास  किया   लेकिन  इससे  बैरभाव  समाप्त  नहीं  हुआ  l  दुर्योधन  की  उदंडता  बढ़ती  गई   जिसका  अंत  महाभारत  के  महायुद्ध  से  हुआ  l