बंगाल में क्रान्ति का सूत्रपात करने का श्रेय वारीन्द्र कुमार घोष को दिया जा सकता है l वे महायोगी अरविन्द के भाई थे l
वारीन्द्र कुमार घोष अपनी शिक्षा समाप्त करके इंग्लैंड से लौट आये l इंग्लैंड में उन्होंने एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों को सम्मानित जीवन जीते हुए देखा था l तब उन्होंने संकल्प लिया कि भारतीय जनता को जगाकर देश को स्वाधीन करने का प्रयास करूँगा और इसी लक्ष्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दूंगा l
उन्होंने राजनैतिक दासता से मुक्ति पाने के लिए एक दल संगठित करने की योजना पढ़े - लिखे युवकों के सामने रखी l किसी ने उत्साह प्रदर्शित नहीं किया l वारीन्द्र को यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि बंगाल के लोगों में स्वतंत्रता के प्रति मोह तो है पर वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के लिए कुछ करने का साहस नहीं जुटा पा रहे l
वारीन्द्र घोष उन अधीर लोगों में से नहीं थे , जो भावावेश में आकर किसी काम को उठा तो लेते हैं , पर जब कठिनाइयाँ आती हैं तथा लोगों का सहयोग नहीं मिलता तो उसे छोड़ देते हैं l
वे जानते थे कि बीज डालने के दूसरे तीसरे दिन ही यदि फसल पकने की आशा की जाये तो व्यर्थ ही जाएगी l उसके लिए तो बड़े धैर्य की आवश्यकता होती है l उसकी देखभाल करना , पानी - खाद देना तथा खरपतवार उखाड़ते रहना पड़ता है तब कहीं महीनों में फसल तैयार होती है l
राजनैतिक स्वतंत्रता तो बहुत बड़ी चीज है , इसके लिए तो बड़ा समय चाहिए , श्रम और बलिदान चाहिए l वे उस समय की प्रतीक्षा करने लगे जब जब जनता के व्यक्तिगत स्वार्थों पर सरकारी चोट पड़े , और वह उसके प्रतिरोध में उठ खड़ी हो l
लार्ड कर्जन ने बंगाल को दो भागों में विभक्त करने की योजना को कार्यान्वित किया तो बंगाली जनता के हितों और भावनाओं पर सीधी चोट पड़ी l एक चतुर किसान की तरह वारीन्द्र जिस समय की प्रतीक्षा कर रहे थे वह समय आ पहुंचा । खेत तैयार था ---- क्रान्ति की पृष्ठ भूमि तैयार थी , संगठन का क्रम भी चल पड़ा । संगठन बन गया तो प्रचार के लिए ' युगान्तर ' नामक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया गया । इस पत्र के सम्पादक बने स्वामी विवेकानंद के भाई भूपेन्द्र नाथ दत्त 1908 तक इसकी बिक्री 20000 हो गई l इस पत्र के माध्यम से क्रान्तिकारियों का अच्छा - खासा संगठन बन गया , वारीन्द्र घोष इसके सफल संचालक थे । जो नवयुवक केवल बंगाल को एक करने के उद्देश्य से इस संगठन में आये थे , अब उनका लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य हो गया l
वारीन्द्र कुमार घोष महान देशभक्त थे , इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा l
वारीन्द्र कुमार घोष अपनी शिक्षा समाप्त करके इंग्लैंड से लौट आये l इंग्लैंड में उन्होंने एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों को सम्मानित जीवन जीते हुए देखा था l तब उन्होंने संकल्प लिया कि भारतीय जनता को जगाकर देश को स्वाधीन करने का प्रयास करूँगा और इसी लक्ष्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दूंगा l
उन्होंने राजनैतिक दासता से मुक्ति पाने के लिए एक दल संगठित करने की योजना पढ़े - लिखे युवकों के सामने रखी l किसी ने उत्साह प्रदर्शित नहीं किया l वारीन्द्र को यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि बंगाल के लोगों में स्वतंत्रता के प्रति मोह तो है पर वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के लिए कुछ करने का साहस नहीं जुटा पा रहे l
वारीन्द्र घोष उन अधीर लोगों में से नहीं थे , जो भावावेश में आकर किसी काम को उठा तो लेते हैं , पर जब कठिनाइयाँ आती हैं तथा लोगों का सहयोग नहीं मिलता तो उसे छोड़ देते हैं l
वे जानते थे कि बीज डालने के दूसरे तीसरे दिन ही यदि फसल पकने की आशा की जाये तो व्यर्थ ही जाएगी l उसके लिए तो बड़े धैर्य की आवश्यकता होती है l उसकी देखभाल करना , पानी - खाद देना तथा खरपतवार उखाड़ते रहना पड़ता है तब कहीं महीनों में फसल तैयार होती है l
राजनैतिक स्वतंत्रता तो बहुत बड़ी चीज है , इसके लिए तो बड़ा समय चाहिए , श्रम और बलिदान चाहिए l वे उस समय की प्रतीक्षा करने लगे जब जब जनता के व्यक्तिगत स्वार्थों पर सरकारी चोट पड़े , और वह उसके प्रतिरोध में उठ खड़ी हो l
लार्ड कर्जन ने बंगाल को दो भागों में विभक्त करने की योजना को कार्यान्वित किया तो बंगाली जनता के हितों और भावनाओं पर सीधी चोट पड़ी l एक चतुर किसान की तरह वारीन्द्र जिस समय की प्रतीक्षा कर रहे थे वह समय आ पहुंचा । खेत तैयार था ---- क्रान्ति की पृष्ठ भूमि तैयार थी , संगठन का क्रम भी चल पड़ा । संगठन बन गया तो प्रचार के लिए ' युगान्तर ' नामक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया गया । इस पत्र के सम्पादक बने स्वामी विवेकानंद के भाई भूपेन्द्र नाथ दत्त 1908 तक इसकी बिक्री 20000 हो गई l इस पत्र के माध्यम से क्रान्तिकारियों का अच्छा - खासा संगठन बन गया , वारीन्द्र घोष इसके सफल संचालक थे । जो नवयुवक केवल बंगाल को एक करने के उद्देश्य से इस संगठन में आये थे , अब उनका लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य हो गया l
वारीन्द्र कुमार घोष महान देशभक्त थे , इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा l
No comments:
Post a Comment