घटना उन दिनों की है ----- सुभाषचंद्र बोस ने 20 सितम्बर 1920 को इंग्लैंड में आई. सी. एस. की परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी , सफल छात्रों की सूची में उनका स्थान चौथा था l अंग्रेजी कम्पोजिशन में उन्हें प्रथम स्थान मिला था , उन्होंने अंग्रेजों को उन्ही की भाषा में धूल चटा दी l इसके कुछ ही महीनों बाद समाचार पत्र में मुखर पृष्ठ पर यह समाचार प्रकाशित हुआ कि -----
'सुभाषचंद्र बोस ने आई. सी. एस. पद से त्यागपत्र दे दिया , 22 अप्रैल 1921 का यह दिन भारतीय इतिहास में अमिट हो गया --- स्वतंत्र और सशक्त भारत के निर्माण के लिए उन्होंने स्वयं को समर्पित कर दिया ----------
एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी जो सुभाषचंद्र बोस से इंग्लैंड के दिनों से परिचित था , उसने उनके कमरे में प्रवेश किया और कहा ---- ' मिस्टर सुभाष ! मेरे पास तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए वारंट है l " इतना कहकर उसने विचित्र नजरों से उन्हें देखा और कहा ---- " तुम क्या हो सकते थे और क्या हो गए ? " इस अंग्रेज अधिकारी को यह मालूम था कि यदि आज वह आई. सी. एस. अधिकारी होते तो वह उनका अधीनस्थ होता l
उस अंग्रेज की इस बात के उत्तर में उन्होंने कहा --- " ठीक कहा तुमने मिस्टर ग्रिफिथ ! मैं गुलाम हो सकता था , लेकिन आज मैं अपने देश की स्वाधीनता का सजग सिपाही हूँ l '
अंग्रेज अधिकारी ने कहा --- ' मुझे तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है l ' वह उनके कमरे कि हर चीज को बड़े ध्यान से उलटता - पुलटता रहा ---- एक पुस्तक थी जिसमे स्वामी विवेकानन्द के पत्रों का संकलन था , एक चांदी की डिब्बी में कुछ चूर्ण जैसा था , उसने पूछा ---- " यह क्या है मिस्टर सुभाष ? ' उत्तर में उन्होंने कहा ----- " यह मेरे देश की मिटटी है , मैं हर रोज इसकी पूजा करता हूँ इसे अपने माथे पर लगाता हूँ और देश की स्वाधीनता के अपने उद्देश्य का स्मरण करता हूँ l "
यह बात अंग्रेज की समझ के बाहर थीं l उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव देखकर वह बोला ---- " तुम्हे गिरफ्तार होने का जरा भी दुःख नहीं है मिस्टर सुभाष ? "
उत्तर में उन्होंने कहा ---- " कष्ट और त्याग --- दोनों स्वराज्य की नींव हैं , मिस्टर ग्रिफिथ l यदि देश के युवक उसके लिए स्वयं को अर्पित करने के लिए तैयार हों तो स्वतंत्रता की कल्पना को साकार होने में देर न लगेगी l "
इस गिरफ्तारी के बाद उन्हें बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया l जेल की यातनाएं उनकी साधनाओं में परिवर्तित होने लगीं , यह जेल उनके लिए तपोभूमि बन गई l बीतते समय के साथ वे सबके प्रिय महानायक नेताजी बन गए l
भारत के युवाओं ने उनसे कहा ---- " इस विपदा के समय में जब पूरा देश अंधकार में डूबा है , आपका व्यक्तित्व हम सबके लिए प्रकाश पुंज है l " नेताजी सुभाषचंद्र बोस आज भी राष्ट्र के लिए प्रेरणा और प्रकाश का अमर स्रोत हैं l
'सुभाषचंद्र बोस ने आई. सी. एस. पद से त्यागपत्र दे दिया , 22 अप्रैल 1921 का यह दिन भारतीय इतिहास में अमिट हो गया --- स्वतंत्र और सशक्त भारत के निर्माण के लिए उन्होंने स्वयं को समर्पित कर दिया ----------
एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी जो सुभाषचंद्र बोस से इंग्लैंड के दिनों से परिचित था , उसने उनके कमरे में प्रवेश किया और कहा ---- ' मिस्टर सुभाष ! मेरे पास तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए वारंट है l " इतना कहकर उसने विचित्र नजरों से उन्हें देखा और कहा ---- " तुम क्या हो सकते थे और क्या हो गए ? " इस अंग्रेज अधिकारी को यह मालूम था कि यदि आज वह आई. सी. एस. अधिकारी होते तो वह उनका अधीनस्थ होता l
उस अंग्रेज की इस बात के उत्तर में उन्होंने कहा --- " ठीक कहा तुमने मिस्टर ग्रिफिथ ! मैं गुलाम हो सकता था , लेकिन आज मैं अपने देश की स्वाधीनता का सजग सिपाही हूँ l '
अंग्रेज अधिकारी ने कहा --- ' मुझे तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है l ' वह उनके कमरे कि हर चीज को बड़े ध्यान से उलटता - पुलटता रहा ---- एक पुस्तक थी जिसमे स्वामी विवेकानन्द के पत्रों का संकलन था , एक चांदी की डिब्बी में कुछ चूर्ण जैसा था , उसने पूछा ---- " यह क्या है मिस्टर सुभाष ? ' उत्तर में उन्होंने कहा ----- " यह मेरे देश की मिटटी है , मैं हर रोज इसकी पूजा करता हूँ इसे अपने माथे पर लगाता हूँ और देश की स्वाधीनता के अपने उद्देश्य का स्मरण करता हूँ l "
यह बात अंग्रेज की समझ के बाहर थीं l उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव देखकर वह बोला ---- " तुम्हे गिरफ्तार होने का जरा भी दुःख नहीं है मिस्टर सुभाष ? "
उत्तर में उन्होंने कहा ---- " कष्ट और त्याग --- दोनों स्वराज्य की नींव हैं , मिस्टर ग्रिफिथ l यदि देश के युवक उसके लिए स्वयं को अर्पित करने के लिए तैयार हों तो स्वतंत्रता की कल्पना को साकार होने में देर न लगेगी l "
इस गिरफ्तारी के बाद उन्हें बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया l जेल की यातनाएं उनकी साधनाओं में परिवर्तित होने लगीं , यह जेल उनके लिए तपोभूमि बन गई l बीतते समय के साथ वे सबके प्रिय महानायक नेताजी बन गए l
भारत के युवाओं ने उनसे कहा ---- " इस विपदा के समय में जब पूरा देश अंधकार में डूबा है , आपका व्यक्तित्व हम सबके लिए प्रकाश पुंज है l " नेताजी सुभाषचंद्र बोस आज भी राष्ट्र के लिए प्रेरणा और प्रकाश का अमर स्रोत हैं l
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