, अहिंसात्मक प्रतिकार से उनका आशय था ---- बिना किसी को कष्ट दिए ऐसा नैतिक दबाव उत्पन्न करना कि अत्याचारी को हारकर सही रास्ते पर आना पड़े l इसके लिए बड़े साहस , संतुलन और धैर्य की आवश्यकता है l
घटना 1923 की है ----- तब गुजरात के पंचमहल एवं गोधरा में भीषण साम्प्रदायिक उपद्रव हुए l वहां के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा पीड़ित व्यक्ति भागकर महात्मा गाँधी के पास पहुंचे और उन्होंने अत्याचारियों द्वारा किये गए अत्याचार की शिकायत उनसे की l बापू ने सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और पूछा --- ' तुम लोगों ने इसके मुकाबले क्या किया ? '
आगंतुकों में से एक नेता जैसे व्यक्ति ने कहा --- ' करते क्या ? आपकी अहिंसा का अर्थ सुनकर ! '
बापू क्षुब्ध मन से बोले ---- ' मेरी अहिंसा ने यह थोड़े ही कहा था कि तुम वहां से कायरों की तरह भागकर अपनी बुजदिली की रिपोर्ट देने के लिए मेरे पास आओ l मेरी अहिंसा तो साहसपूर्वक मर - मिटने का सन्देश देती है l तुम में यदि मर मिटने का साहस नहीं था तो अपने मन के अनुसार उस स्थिति का मुकाबला करना चाहिए था l तुमने मेरे मत को समझा नहीं और अपने मत पर चलने की हिम्मत नहीं की l जहाँ किसी तरह जान बचा लेने की भावना है , खतरों से मुंह मोड़ने या भाग जाने की संभावना है वहां अहिंसा नहीं हो सकती l अहिंसा कायरों की नहीं वीरों की है " l
दुष्टता या अवांछनीयता का दमन किसी भी प्रकार किया जाये , ऐसा ' मन्यु ' अहिंसा के अंतर्गत ही आता है l क्योंकि दुष्टों का , अत्याचारी का दमन करने से उसके कारण पीड़ित होने वाले अधिक लोगों को सुख - चैन से रहने का अवसर मिलेगा l
घटना 1923 की है ----- तब गुजरात के पंचमहल एवं गोधरा में भीषण साम्प्रदायिक उपद्रव हुए l वहां के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा पीड़ित व्यक्ति भागकर महात्मा गाँधी के पास पहुंचे और उन्होंने अत्याचारियों द्वारा किये गए अत्याचार की शिकायत उनसे की l बापू ने सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और पूछा --- ' तुम लोगों ने इसके मुकाबले क्या किया ? '
आगंतुकों में से एक नेता जैसे व्यक्ति ने कहा --- ' करते क्या ? आपकी अहिंसा का अर्थ सुनकर ! '
बापू क्षुब्ध मन से बोले ---- ' मेरी अहिंसा ने यह थोड़े ही कहा था कि तुम वहां से कायरों की तरह भागकर अपनी बुजदिली की रिपोर्ट देने के लिए मेरे पास आओ l मेरी अहिंसा तो साहसपूर्वक मर - मिटने का सन्देश देती है l तुम में यदि मर मिटने का साहस नहीं था तो अपने मन के अनुसार उस स्थिति का मुकाबला करना चाहिए था l तुमने मेरे मत को समझा नहीं और अपने मत पर चलने की हिम्मत नहीं की l जहाँ किसी तरह जान बचा लेने की भावना है , खतरों से मुंह मोड़ने या भाग जाने की संभावना है वहां अहिंसा नहीं हो सकती l अहिंसा कायरों की नहीं वीरों की है " l
दुष्टता या अवांछनीयता का दमन किसी भी प्रकार किया जाये , ऐसा ' मन्यु ' अहिंसा के अंतर्गत ही आता है l क्योंकि दुष्टों का , अत्याचारी का दमन करने से उसके कारण पीड़ित होने वाले अधिक लोगों को सुख - चैन से रहने का अवसर मिलेगा l
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