एक बार कन्फ्यूशियस के शिष्य चांग हो चांग भ्रमण के लिए निकले l मार्ग में उन्होंने देखा कि एक युवा माली कुंए से बालटी से पानी निकाल कर एक - एक पौधे में डाल रहा है l उन्हें दया आई और ऐसी व्यवस्था करा दी कि एक जगह खड़े होकर पानी निकाल ले जो नाली की सहायता से पेड़ों में पहुँच जाये l ऐसी व्यवस्था से माली को आराम तो हुआ किन्तु चलना - फिरना व झुकने आदि कई व्यायाम नही हो रहे थे l चांग एक बार फिर उसी रास्ते से गुजरे तो उन्होंने सोचा कि कुएं में भाप से चलने वाली मशीन डाल दी जाये तो परिश्रम बहुत कम होगा और सब पेड़ों को पानी भी मिल जायेगा l यह प्रस्ताव भी स्वीकार हो गया , भाप का इंजन लग गया और माली को बहुत आराम हो गया l
बहुत दिन बीत गए चांग की उस बगीचे को देखने की इच्छा हुई l वहां जाकर देखा तो स्तब्ध रह गए पूरा बगीचा सूख चुका था l माली को देखा तो उसके हाथ सूख गए , टांगे पतली हो गईं, भोजन हजम नहीं होता , चेहरा पीला पड़ गया l चांग ने उससे कहा --- क्या अभी भी बहुत परिश्रम करना पड़ता है , कोई और तरकीब सोचें ?
माली की पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा ---' आप तरकीब न सोचें , ऐसी सलाह आप इन्हें दें कि फिर से परिश्रम करने लगें l यह आराम ही बीमारी का कारण है l '
माली अपनी पूर्व जीवन पद्धति में आकर पुन: स्वस्थ हो गया l
चांग अपने एकांगी चिंतन पर बहुत पछताए l यह समझ गए कि बिना परिश्रम के जीवन मूल्यहीन और नाकारा हो जाता है l
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