विश्व के शक्ति भंडार में आत्मबल सर्वोपरि है l जो अपने मानवीय विकारों पर नियंत्रण रखता है , अपने आंतरिक और बाह्य जीवन पर शासन करता है वही आत्मबल संपन्न हो जाता है और तब उस पर दैवी अनुग्रह अनायास बरसता है -------
चन्द्रगुप्त जब विश्वविजय की योजना सुनकर सकपकाने लगा तो चाणक्य ने कहा ----- " तुम्हारी दासीपुत्र वाली मनोदशा को मैं जानता हूँ l उससे ऊपर उठो l चाणक्य के वरद पुत्र जैसी भूमिका निभाओ l विजय प्राप्त कराने की जिम्मेदारी तुम्हारी नहीं , मेरी है l "
शिवाजी जब अपने सैन्यबल को देखते हुए असमंजस में थे कि इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ी जा सकेगी , तो समर्थ रामदास ने उन्हें भवानी के हाथों अक्षय तलवार दिलाई थी और कहा था ------- "तुम छत्रपति हो गए , पराजय की बात ही मत सोचो l "
महाभारत लड़ने का निश्चय सुनकर अर्जुन सकपका गया और कहने लगा ----- " मैं अपने गुजारे के लिए तो कुछ भी कर लूँगा , फिर हे केशव ! आप इस घोर युद्ध में मुझे नियोजित क्यों कर रहे हैं ? ' इसके उत्तर में भगवान ने एक ही बात कही ---- " इन कौरवों को तो मैंने पहले ही मार कर रख दिया है l तुझे यदि श्रेय लेना है तो आगे आ , अन्यथा तेरे सहयोग के बिना भी वह सब हो जायेगा , जो होने वाला है l घाटे में तू ही रहेगा ---- श्रेय गँवा बैठेगा और उस गौरव से भी वंचित रहेगा , जो विजेता और राजसिंहासन के रूप में मिला करता है l "
अर्जुन ने वस्तुस्थिति समझी और कहा कि आपका आदेश मानूंगा l
उच्चस्तरीय प्रतिभाओं का पौरुष जब कार्यक्षेत्र में उतरता है तो न केवल कुछ व्यक्तियों को , वरन समूचे वातावरण को ही उलट - पुलट कर रख देता है l
चन्द्रगुप्त जब विश्वविजय की योजना सुनकर सकपकाने लगा तो चाणक्य ने कहा ----- " तुम्हारी दासीपुत्र वाली मनोदशा को मैं जानता हूँ l उससे ऊपर उठो l चाणक्य के वरद पुत्र जैसी भूमिका निभाओ l विजय प्राप्त कराने की जिम्मेदारी तुम्हारी नहीं , मेरी है l "
शिवाजी जब अपने सैन्यबल को देखते हुए असमंजस में थे कि इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ी जा सकेगी , तो समर्थ रामदास ने उन्हें भवानी के हाथों अक्षय तलवार दिलाई थी और कहा था ------- "तुम छत्रपति हो गए , पराजय की बात ही मत सोचो l "
महाभारत लड़ने का निश्चय सुनकर अर्जुन सकपका गया और कहने लगा ----- " मैं अपने गुजारे के लिए तो कुछ भी कर लूँगा , फिर हे केशव ! आप इस घोर युद्ध में मुझे नियोजित क्यों कर रहे हैं ? ' इसके उत्तर में भगवान ने एक ही बात कही ---- " इन कौरवों को तो मैंने पहले ही मार कर रख दिया है l तुझे यदि श्रेय लेना है तो आगे आ , अन्यथा तेरे सहयोग के बिना भी वह सब हो जायेगा , जो होने वाला है l घाटे में तू ही रहेगा ---- श्रेय गँवा बैठेगा और उस गौरव से भी वंचित रहेगा , जो विजेता और राजसिंहासन के रूप में मिला करता है l "
अर्जुन ने वस्तुस्थिति समझी और कहा कि आपका आदेश मानूंगा l
उच्चस्तरीय प्रतिभाओं का पौरुष जब कार्यक्षेत्र में उतरता है तो न केवल कुछ व्यक्तियों को , वरन समूचे वातावरण को ही उलट - पुलट कर रख देता है l
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