11 August 2022

WISDOM

   अनमोल  मोती ------ पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ------ " व्यक्ति  जब   अपनी  योग्यताओं  और  क्षमताओं  को   अपने  लिए  ही   सीमित , संकुचित  न  रखकर   राष्ट्र  व  समाज  के  स्तर  पर   नियोजित  करता  है   तो  वह  निश्चित  रूप  से  श्रेय  व  सम्मान  का  अधिकारी  बनता  है   l  सरदार  पटेल  इस  द्रष्टि  से  निश्चित  ही  उस  श्रेय   तथा  सम्मान  के  अधिकारी  हैं   जो  उन्हें  दिया  जाता  है   l   स्वतंत्रता  के  पहले  तथा  स्वतंत्रता  के  बाद  राष्ट्रोत्थान  में   उनकी   अनूठी  भूमिका  रही   l  इस  भूमिका  का  आधार   उनका  त्याग , तप ,  उनकी  निष्ठां ,  भक्ति  आदि  थी  l  " ----------- घटना   1946   की  है   l  बम्बई  बंदरगाह  के   नौसैनिकों  ने  विद्रोह  का  झंडा  खड़ा  कर  दिया   l  अंग्रेज  अधिकारियों  ने  उन्हें  गोली  से  भून   देने  की  धमकी  दी   थी  साथ  ही   भारतीय  -नौसैनिकों  ने   जवाब  में  उनको  खाक  कर  देने  की  चुनौती  दे  रखी  थी  l  उस  समय  वहां  की  व्यवस्था  देखने   की  जिम्मेदारी  सरदार  पटेल  के  हाथ  में  थी  l  लोग  उनकी  तरफ  बड़ी  घबड़ाई    नजरों  से  देख  रहे  थे  l  किन्तु  सरदार  पटेल  पर   परिस्थिति  का  रंच -मात्र  भी  प्रभाव  नहीं  पड़ा  l  वे   न  तो  अधीर  थे  और  न  विचलित  l  बम्बई  के  गवर्नर  ने  उन्हें   बुलाया   और  काफी  तुर्सी  दिखाई   l  इस  पर  सरदार  पटेल  ने   शेर  की  तरह  दहाड़  कर   गवर्नर  से  कह  दिया   कि  वे  अपनी  सरकार  से  पूछ  लें   कि  अंग्रेज  भारत  से   मित्रों  के  रूप  में  विदा  होंगे   या  लाशों  के  रूप  में   l  अंग्रेज  गवर्नर  सरदार  का  रौद्र  रूप   देखकर  कांप  उठा    और  फिर  उसने  कुछ  ऐसा  किया    कि  बम्बई  प्रसंग  में   अंग्रेज  सरकार  को   समझौता  करते  ही  बना   l   

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