आज संसार में चारों ओर भय का वातावरण है l इसका सबसे बड़ा कारण है कि कलियुग के प्रभाव से लोगों में कायरता बढ़ती जा रही है l ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा , लालच और दमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए अब लोग प्रत्यक्ष रूप से कोई वाद -विवाद , हाथापाई और किसी तरह की लड़ाई नहीं करते l ऐसा करने से उनका असली चेहरा सामने आ जायेगा l इसलिए समाज में सबके सामने सभ्य बने रहकर लोग पीठ पर वार करते हैं l धोखा , षड्यंत्र , ब्लैकमेल , माइंडवाश करना , यह सब आम बात हो गई है l यही कारण है कि आज सब भयभीत है l घर , परिवार , आफिस , समाज में आप जिसके साथ हैं , जिसका विश्वास करते हैं , वह अपनी चालाकी से , अपनी दुर्बुद्धि से आपको कब गिरा दे , मार दे , कोई नहीं जानता l वातावरण में इतनी नकारात्मकता है कि अब किसी का भी विश्वास नहीं किया जा सकता l भय का एक दूसरा रूप भी है , जहाँ व्यक्ति अपनी ही कमजोरियों से भयभीत है l और आश्चर्य यह है कि वह अपनी कमजोरियों पर विजय पाने का कोई प्रयास नहीं करता बल्कि अपनी कमजोरियों के साथ जीवन जीने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है l वैराग्यशतक में भतृहरि ने लिखा है ---- " भोग में रोग का भय , सत्ता में शत्रुओं का भय , सामाजिक स्थिति में गिरने का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय और शरीर में मृत्यु का भय है l इस संसार में सब कुछ भय से युक्त है l निर्भयता से जीने के लिए उन्होंने त्याग का मार्ग बताया है l " लेकिन युग का प्रभाव ऐसा है कि अब लोग 'त्याग ' शब्द को ही भूल गए हैं l जब मनुष्य से ईश्वर से डरेगा , ईश्वर से भय खायेगा , तभी उसे संसार में दूसरा भय नहीं सताएगा l