28 April 2025

WISDOM -----

  विधाता  ने  स्रष्टि  की  रचना  की  l  स्रष्टि  में  जितने  भी  प्राणी  हैं  , उनमें  मनुष्य  ही  सबसे  बुद्धिमान  है   l   मनुष्य  के  पास  उसका  ' मन '  भी  है   जिस  पर  उसका  कोई  नियंत्रण  नहीं  है  l  l  मनुष्य  का  अनियंत्रित  मन  बुद्धि  को  दुर्बुद्धि  में  बदल  देता  है  l  दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  आज  संसार  में  इतनी  अशांति  है  l   अपनी बुद्धि  के  बल  पर  पहले  मनुष्य  विकास  करता  है  फिर  दुर्बुद्धि  के  कारण    आपस  में  युद्ध , दंगे  आदि  कर  फिर  शून्य  पर  आ  जाता  है   l  इतिहास  से  शिक्षा  ही  नहीं  लेता  है  l   प्राचीन  काल   में  लोगों  में  नैतिकता  थी , संवेदना  थी    लेकिन  अब  मनुष्य  संवेदनहीन  है   l  युद्ध  , दंगे  जैसी  परिस्थिति  में  उसके  भीतर  का  राक्षस  बाहर  आ  जाता  है  l  वीरता  के  किस्सों  से  ज्यादा  कायरता  के  किस्से  होते  हैं  l  युद्ध  के  नाम  पर  सबसे  ज्यादा  दुर्गति  महिलाओं  और  बच्चों  की  होती  है  l  युद्ध  किसी  भी  समस्या  का  हल  नहीं  है  l  अपनी  ही  कमियों  को  देखो , समझो   और  उनमें  सुधार  करो    तो  समस्या  स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएगी      l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   









































































































































































































































































































































































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27 April 2025

WISDOM ----

  प्रत्येक  युग  की  अपनी  कुछ  विशेषताएं  हैं  , कलियुग  की  विशेषता  कहें  या  सबसे  बड़ी  बुराई  कि  इस  युग  में  कायरता  अपने  चरम  पर  है  l   छोटे  से  लेकर  बड़े  स्तर  पर  जो  भी  अपराध  होते  हैं  , उनके  पीछे  मास्टर  माइंड  कौन  है  , यह  मालूम  करना  कठिन  है   क्योंकि  नकारात्मक  शक्तियां  बहुत  मजबूती  से  संगठित  होती  हैं   l  इन्हें  केवल  इनके  अपराध  करने  के  पैटर्न  से  समझा  जा  सकता  है  l  नकारात्मक  शक्तियां   बार -बार  उसी  पैटर्न  से  अपराध  को  अंजाम  देती  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  इसे  समझ   भी  जाते  हैं   लेकिन  इसे  युग  का  प्रभाव  कहें  व्यक्ति  अपने  स्वार्थ , लालच , लोभ , कामना और  महत्वाकांक्षा  की  वजह  से   अपने  आँख , कान  बंद  किए  रहता  है  l   रावण  के  दस  सिर  को   लोगों  ने  अपना  आदर्श  बना  लिया  l  व्यक्ति  सामने  से  समाज  सेवा  करता  हुआ , धर्म  के  उपदेश  देता  हुआ  ,  परिवार  में  सबको  साथ  लेकर  चलने  वाला , समाज  के  प्रत्येक  प्राणी  का  हित  जानने  वाला  दिखाई  देगा   लेकिन  उसके  पीछे  कितनी  कालिख  है  l  इसे  बहुत  कम  लोग  जानते  हैं ,  जो  जान  जाते  हैं  वे  भी  अनजान   बनने  का  नाटक  करते  हैं  l  जागरूक  रहकर  और   अपने  भीतर  सकारात्मकता  को  बढ़ाकर   ही  नकारात्मक  शक्तियों  से  मुकाबला  किया  जा  सकता  है  l  जो  लोग  भी  तंत्र   आदि  किसी  भी  तरह  की  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  अपराध  करते  हैं  ,  वे  स्वयं  तो  संगठित  होते  हैं   और  जिसको  अपना  लक्ष्य  बनाते  हैं  उसे  अकेला  कर  देते  हैं , उसके  सुरक्षा -तंत्र  को  छीन  लेते  हैं  या  कमजोर  कर  देते  हैं  l  असुरता  पूरी  दुनिया  पर  अपना  राज  चाहती  है  l  

26 April 2025

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ----- ' व्यक्ति  के  श्रेष्ठ  कर्म  ढाल  के  समान   उसकी  रक्षा  करते  हैं   और  दुष्कर्म  असमय  ही  उसे  मौत  के  मुँह  में   ढकेल  देते  हैं  l   एक  दिन  सभी  को   मृत्यु  के  आँचल  में   पसरना  है  ,  तो  क्यों  न  जीवित  रहते   स्वयं  को   श्रेष्ठतम  कर्मों  में   लगाए  रखा  जाये   l  श्रेष्ठ  कर्मों  से  भगवान   भी  प्रसन्न  होते  हैं  और  उनकी  कृपा द्रष्टि   बनी  रहती  है  l  बड़ी -बड़ी  दुर्घटनाएं  एक  छोटा  सा  काँटा  चुभने   में   निकल  जाती  हैं  l  "  ------ ज्योर्तिमठ  के  शंकराचार्य   के  शिष्य   कृष्ण बोधाश्रम    120  वर्ष  जीवित  रहे  l  एक  बार  वे  प्रवास  पर  थे  l  उस  इलाके  में  लगातार  चार  वर्ष  से  पानी  नहीं  गिरा  था  l  कुएं -तालाबों  का  पानी  सूख  गया  था  l  सभी  आए  और  कहा --- " महाराज  जी  !   उपाय  बताएं  ! "  वे  बोले  ---- "  पुण्य  होंगे   तो  प्रसन्न  होगा  भगवान  l "  लोगों  ने  पूछा  --- 'क्या  पुण्य  करें  ? '  तब  महाराज जी  ने  कहा --- "  सामने  तालाब  है  , उसमें  थोडा  ही  पानी  है  l  इसमें  मछलियाँ  मर  रही  हैं  ,  पानी  डालो  l "  लोग  बोले  --- "  हमारे  लिए  ही  पानी  नहीं  है  , मछलियों   को  पानी  कहाँ  से  दें  ?  "   महाराज  ने  कहा ---- " कहीं  से  भी  लाओ  , कुओं  से  भर -भरकर  लाओ    और  तालाब  में  डालो  l "  सभी  ने  पानी  तालाब  में  डालना  शुरू  किया  l  तीसरे  दिन  बदल  आए  l  घटाएं  भरकर  महीने  भर  बरसीं  l  सारा  दुर्भिक्ष --पानी  का  अभाव  दूर  हो  गया  l  

23 April 2025

WISDOM ----

  हमारे  महाकाव्य  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   l   रामायण  का  एक  पात्र  है ---- विभीषण  l   राक्षस  कुल  में   जन्म  लेकर  भी  उसे  सही -गलत  की  पहचान  थी  l  जहाँ  रावण  के  आतंक  से  सब  भयभीत  थे  , वहीँ  विभीषण  निडर  था   क्योंकि  वह   नीति  और  न्याय  को  समझता  था  l   विभीषण  ने  रावण  की  अनीति  के  विरुद्ध  आवाज  उठाई,  यह  जानते  हुए  भी  कि  इससे  उसका  जीवन  संकट  में  पड़  सकता  है  l  भरी  सभा  में  उसने  कहा ----- तव  उर  कुमति  बसी  विपरीता  l हित  अनहित  मानहु  रिपु  प्रीता  l    हे  अग्रज  !  आपके  अन्दर  कुमति  का  निवास  हो  जाने  से   आपका  मन  उल्टा  चल  रहा  है  , उससे  आप  भलाई  को  बुराई   और  मित्र  को  शत्रु  समझ  रहे  हैं  l   झूठी   चापलूसी  करने  वाले  सभासदों  के  बीच   अपने  भाई  विभीषण  की   नेक  सलाह  भी   रावण  को  उलटी  लग  रही  थीं  l  क्रोध   में  रावण   कह  उठा  --- ' तू  मेरे  राज्य  में   रहते  हुए  भी   शत्रु  से  प्रेम  करता  है  l  अत:  उन्ही  के  पास  चला  जा   और  उन्ही  को   नीति  की  शिक्षा  दे  l "  ऐसा  कहकर   उसने  विभीषण  को  लात  मारी   और  सभा  से  उसको  निकाल  दिया   l  समझाने  पर  भी  जो  खोटा  मार्ग  न  छोड़े ,  उससे  संबंध  ही  त्याग  देना  चाहिए   l  यही  सोचकर  विभीषण  लंका  छोड़कर   भगवान  राम  की  शरण  में  चला  गया  l  रावण  अनीति  पर  था , अत्याचारी  था  इसलिए  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  समेत  उसका  अंत  हो  गया  l   विभीषण  ने   रावण  जैसे  अत्याचारी  के  साथ  रिश्ते  निभाने  के  बजाय  मर्यादा  पुरुषोत्तम  श्रीराम  की  शरण  में   रहना  उचित  समझा   l  संसार  में  आज  इतना  अत्याचार  और  अन्याय  इसीलिए  है   क्योंकि  लोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  अत्याचारी , अन्यायी  को  त्यागने  के  बजाय  उसकी  छत्रछाया  में  रहना  पसंद  करते  हैं   l  यही  कारण  है  की  असुरता  फलती  -फूलती  है  l  

21 April 2025

WISDOM -----

 मनुष्य के  जीवन  में  सुख -दुःख  धूप -छाँव  की  तरह  आते -जाते  हैं  l  ईश्वर  ने  धरती  पर  अवतार  लेकर   अपनी  लीलाओं  के  माध्यम  से  मनुष्य  को  जीवन  जीना  सिखाया  l  भगवान  राम  के  राज्याभिषेक  की  तैयारी  थी  लेकिन  अगले  ही  पल  उन्हें  चौदह  वर्ष  का  वनवास  हो  गया  l  श्रीराम  के  चेहरे  पर  इससे  कोई  तनाव  नहीं , क्रोध  नहीं  , कोई  विवाद  नहीं  l  जो  भी  परिस्थिति  है  उसे  सहज  स्वीकार  किया  l  एक  बार  के  लिए  यह  मान  लें  कि  भगवान  श्रीराम  और  श्रीकृष्ण  स्वयं  भगवान  थे  ,  उनके  कष्ट  उनकी  लीला  का  हिस्सा  थे  लेकिन  जो  लोग   भगवान  श्रीकृष्ण  के  परिवार  के  थे  ,  उनके  जीवन  में  कितने  कष्ट  थे  l  जो  भगवान  श्रीकृष्ण  की  माता  थीं  -देवकी  उन्हें  कंस  के  अत्याचार  सहने  पड़े  ,  उनकी  सात  संतानों  को  कंस  ने  उनके  सामने  मार  डाला  l  पांडवों  को  भगवान  श्रीकृष्ण  का  प्रत्यक्ष  आश्रय  प्राप्त  था   लेकिन  फिर  भी  उनका  सारा  जीवन  कष्ट  में  बीता  l  कृष्ण  की  बहन  सुभद्रा  के  पुत्र  अभिमन्यु  को  महाभारत  के  युद्ध  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  छल  से  मार  डाला  l  सुभद्रा  कृष्ण  से  कहती  हैं  ---- तुम्हे  तो  लोग  भगवान  कहते  हैं  फिर  भी  तुम  मेरे  पुत्र  को  बचा  नहीं  पाए  l  भगवान  कहते  हैं  ---- मनुष्य  के  जीवन  में  जो  भी  सुख  या  दुःख  है  उसके  पीछे   उसके  जन्म -जन्मान्तरों  के  कर्म  की  कहानी  है  l  कर्मफल  से  कोई  भी  नहीं  बचा  है  l  महारानी  कुंती  भगवान  श्रीकृष्ण  की  बुआ  थीं  ,  उनका  सारा  जीवन  कष्टों  में  बीता  l  जब  महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ    और  श्रीकृष्ण  द्वारका  लौटने  लगे   तो  कुंती  ने  उनसे  प्रार्थना  की  ---- " हे  प्रभु  !  आप  आशीर्वाद  दें  कि हम  पर  विपत्तियाँ  सदैव  आती  रहें  l "  श्रीकृष्ण  ने  पूछा  --- " आप  लोगों  ने  जीवन  भर  विपत्तियों  का  सामना  किया  है  ,  फिर  ऐसी  विलक्षण  मांग  क्यों  ?  ' कुंती  बोलीं  ---" भगवान  !  विपत्तियाँ  आएँगी  तो   उनसे  रक्षा  के  लिए   आप  भी  आयेंगे  l  जिस  भी  कारण  से  आपका  दर्शन  हो  ,  हमारे  लिए  तो  सोभाग्यशाली  ही  होगा  l "  विपत्तियाँ  हर  एक  के  जीवन  में  आती  हैं  ,  पर  जिनकी  भगवान  पर  अटल  श्रद्धा  होती  है  ,  वे  इन  क्षणों  को  जीवन  का  सौभाग्य  मानकर  स्वीकार  करते  हैं  l   आचार्य श्री  कहते  हैं  ---"  जीवन  के  प्रत्येक  पल एवं  प्रत्येक  घटनाक्रम   सकारात्मक   एवं  सार्थक   उपयोग  करो  l  जीवन  की  हर  चोट ,  हर  पीड़ा  हमें   गढ़ती  है  , संवारती  है  l  

20 April 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " पाप  पहले  तो   आकर्षक  लगता  है  l  फिर  आसान  हो  जाता  है  l  इसके  बाद  आनंद  का  आभास  देने  लगता  है  तथा  अनिवार्य  प्रतीत  होने  लगता  है  l  क्रमशः   वह  हठी    और  ढीठ  बन  जाता  है  l  अंततः  सर्वनाश  कर  के  हटता  है  l  "   महाभारत   में  यही  सत्य  सामने  आया  l  धृतराष्ट्र  के  अंधे  मोह  ने  दुर्योधन  को  हठी  बना  दिया  ,  बाल्यकाल  से  ही  वह  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  रचने  लगा  l   दुर्योधन   पितामह  भीष्म  और  गुरु  द्रोणाचार्य  की  भी  कोई  बात  नहीं  मानता  था  l    मामा  शकुनि  का  साथ  मिल  जाने  से  छल ' कपट  और  षड्यंत्र   करना  उसकी  आदत  बन  गए  l  पांडवों  को  सताने  में  उसे  आनंद  आने  लगा  l  हर  अति  का  अंत  होता  है   l  दुर्योधन  के  ऐसे  हठी  स्वभाव  के  कारण  ही  कौरव  वंश  का  सर्वनाश  हो  गया  l  

18 April 2025

WISDOM ------

   संसार  में  अच्छाई  और  बुराई  दोनों  हैं  l  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले   हैं  तो  दूसरी  ओर   दुष्ट  प्रवृत्ति  के   लोगों  की  कमी  नहीं  l   एक  तरह  से  देखा  जाए  तो  दुष्ट  प्रवृत्ति  के  लोगों  की  संसार  में  उपस्थिति  बहुत  जरुरी  है   क्योंकि  जब  ये  लोग   सीधे -सच्चे  लोगों  को   सताते  हैं  , उन्हें  उत्पीड़ित  करते  हैं   तो  इसके  दो  फायदे  होते  हैं  --- एक  यह  कि  उत्पीड़न   लगातार  सहन  करते  रहने  से  उनकी  भीतर  की  सोयी  हुई  गुप्त  शक्तियां  जाग्रत  होने  लगती  हैं  ,  सत्य  की  ताकत  से  उनका  आत्मिक  बल  बढ़ने  लगता  है  l  जो  सन्मार्ग  पर  है  उसे  यह  विश्वास  होता  है  कि  उसके  साथ  ईश्वर  है   इसलिए  वे  निरंतर  संघर्ष  करते  हैं   , कभी  निराश  नहीं  होते  l  दुष्ट  व्यक्तियों  की  उपस्थिति  का  दूसरा  सबसे  बड़ा  फायदा  यह  होता  है  कि   ऐसी  सामूहिक  दुष्टता  के  निवारण  के  लिए  स्वयं  भगवान  को  धरती  पर  आना  पड़ता  है  l   अपने  भक्तों  को  उत्पीड़ित  करने  वाले   को  भगवान  कभी  क्षमा  नहीं  करते  l  यदि  दसों  दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  नहीं  होता  ,  उसके  अत्याचार   की   अति  न  होती  तो  भगवन  श्रीराम   इस  धरती  पर  क्यों  आते  ?  रावण  था  ,  तभी  श्रीराम  आए  l    यदि  कंस  जैसा  पापी  न  होता   तो  भगवान  श्रीकृष्ण  क्यों  आते  ?   उस  युग  में  अधर्म , अत्याचार , अन्याय   इतना  अधिक  था  कि  ईश्वर  को  अपना  वैकुण्ठ  धाम  छोड़कर  धरती  पर  आना  पड़ा  l  हिरण्यकश्यप  ने  अपने  ही  पुत्र  प्रह्लाद  को  इतना  सताया  कि   नृसिंह  भगवान  खम्भे  से  प्रकट  हो  गए  l  इस  द्रष्टि  से  दुष्ट  व्यक्ति  भी  प्रशंसनीय  है  l    वे  बेचारे  पाप  कर्म  कर  के  अपना  पाप  का  घड़ा  भरते  जाते  हैं   और  जो  उनके  इन  दुष्कृत्यों   को  चुनौती  मानकर   उनका  सामना  करे   तो  वह  सफलता  के  पथ  पर  आगे  बढ़ता  जाता  है  l  दुष्ट  व्यक्तियों  ने  पत्थर  फेंके  और  समझदार  उनसे  सीढ़ी  बनाकर  ऊपर  चढ़  गया  l  यह  संसार  एक  रंगमंच  है  हमें  बड़ी  समझदारी  से  अपनी  भूमिका  निभानी  है  l  

17 April 2025

WISDOM -----

   एक  दिन  महाराज  सुदास  के  पुत्र  कल्याणपाद  आखेट  कर  के  राजमहल  लौट  रहे  थे l  मार्ग  में  एक  तंग  पुलिया  पड़ी  ,  जिस  पर  से  एक  समय  में  एक  ही  व्यक्ति  निकल  सकता  था  l  उस  मार्ग  पर  दूसरी  ओर  से   ऋषि  वसिष्ठ  के  पुत्र   शक्ति  मुनि  आ  रहे  थे  l  दोनों  ही  हठधर्मिता  के  कारण  पुलिया  के   दोनों  सिरों  पर  खड़े  रहे   और  दूसरे  को  निकलने  का  स्थान  नहीं  दिया  l  बहुत  देर  तक  ऐसा  होने  पर  शक्ति  मुनि  को  क्रोध  आ  गया   और  उन्होंने  कल्याणपाद  को   राक्षस  बन  जाने  का  शाप  दे  दिया  l  राक्षस  बनते  ही  कल्याणपाद  ने  शक्ति  मुनि  का  ही  भक्षण  कर  लिया  l  उस  समय  शक्ति  मुनि  की  पत्नी  गर्भवती  थी  ,  कुछ  समय  बाद  उसने  पराशर  मुनि  को  जन्म  दिया  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  कल्याणपाद  को  पुत्रहंता  होने  पर  भी   राक्षस  शरीर  के  शाप  से  मुक्त  कर  दिया  l  जब  पराशर  मुनि  बड़े  हुए  और  उन्हें  अपने  पिता  की  मृत्यु  के  कारण  का  पता  चला   तो  वे  क्रोधित  हो  उठे  और   पुन:  कल्याणपाद  से  प्रतिशोध  लेने  को  तैयार  हो  गए  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  जब   अपने  पौत्र  को  प्रतिशोध  की  आग  में  जलते  देखा   तो   उन्हें  बुलाकर  समझाया  ---- "  पुत्र  !  क्रोध  करना  शूरवीरता  का  नहीं , मानवीय  दुर्बलता  का  प्रतीक  है  l  ऐसा  नहीं  है  कि  पुत्र  की  मृत्यु  का  दरद  मुझे  न  हुआ  हो   और  मैं  कल्याणपाद  को  सजा  देने  की  सामर्थ्य  न  रखता  हूँ  ,  परन्तु  मैंने  यह  अनुभव  किया  कि  किसी  और  का  जीवन  हरण  करने  से  मेरे  पुत्र  को  लौटा  पाना  संभव  नहीं  है  l  क्षमा  करने  के  लिए  ज्यादा  बड़े  ह्रदय  की  आवश्यकता  है  l "  महर्षि  वसिष्ठ  की  बात  सुनकर   पराशर  मुनि  का  ह्रदय  बदल  गया  l  

14 April 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  जीवन  गुण -दोष  का  मिश्रण  है  l  यह  देखने  वाले  के  द्रष्टिकोण  पर  निर्भर  है   कि  वह  किस  पक्ष  को  देखता , चुनता  है  l  जो  सकारात्मक  पक्ष  को  देखते  व  स्वीकार  करते  हैं   उनकी  मन:स्थिति  व  परिस्थिति  सदा  सकारात्मक  ही  बनी  रहती  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --- परिस्थिति  पर  हमारा  नियंत्रण   नहीं  होता   किन्तु  मन: स्थिति  एक  ऐसा  पक्ष  है  , जिसे  हम  नियंत्रित  कर  सकते  हैं   और  उसके  अनुरूप  परिस्थितियों  का  समुचित  लाभ  उठा  सकते  हैं  l   "  कुछ  लोग  ऐसे  होते  हैं   , जो  हर  परिस्थिति  में  प्रसन्न  रहते  हैं  l  जीवन  की  कोई  भी  प्रतिकूलता  उन्हें  विचलित  नहीं  कर  पाती  l  उनके  लिए  हर  स्थिति  एक  अवसर  बन  जाती  है  , वे  हर  स्थिति  का  लाभ  उठाते  हैं  l   जैसे  --पांडवों  को  जब  वनवास  हुआ  तो  उन्होंने  उसका  दुःख  नहीं  मनाया  ,  वनवास  की  अवधि  में  तपस्या  कर  के  अपनी  शक्ति  को  बढाया  l  वर्तमान  युग  में  हम  देखें  तो  कोरोना  काल  में  जिनकी  सोच  नकारात्मक  थी  , उन्होंने   उस  समय  को  अपनी  परेशानियों  का  रोना  रोने  में  ही  समय  गँवा  दिया   लेकिन  जिनकी  सोच  सकारात्मक  थी  उन्होंने  उस  समय  का  सदुपयोग  किया  --किसी  ने  संचार  साधनों  का  उपयोग  कर  अपने  हुनर  को  बढाया  , किसी  ने  मौन  रहकर  अपना  आत्मिक  बल  बढ़ाया  ,  जो  समझदार  थे  उन्होंने  किफ़ायत  से  घर - गृहस्थी  का  खर्च  चलाकर   अच्छी  बचत  की  l  कई  ऐसे  भी  थे  जिन्होंने  नियमित  ध्यान , मन्त्र जप  ,  हवन  , योग , प्राणायाम  कर  उस  कठिन  अवधि  में  अपनी  सेहत  में , स्वास्थ्य  में   पर्याप्त  सुधार  किया   और  अध्यात्म पथ  पर  आगे  बढ़े  l   आचार्य  श्री  ने  अपने  साहित्य  और   अपनी  अमृत वाणी  से  संसार  को  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  यदि  हमारी  सोच  सकारात्मक  है   तो  सारे  दुःख  सुख  में  बदल  जाते  हैं  l  बदलती  परिस्थिति  के  साथ  सकारात्मकता  बनाए  रखना  ही  जीवन  में  सफलता  का  एकमात्र  सूत्र  है  l  

12 April 2025

WISDOM ------

   माली  के  लड़के  ने   अपने  पिता  को  बाग़  में   मेहनत  करते  देख कर  पूछा  ---- " पिताजी  !  आप  गुलाब  के  पौधे  पर   इतनी  मेहनत  करते  हैं  ,  वर्ष  भर  देखभाल  करने  के  बाद  ही  पौधा  तैयार  होता  है  l इसकी  जगह  बेशरम  की  झाड़ियाँ   क्यों  नहीं  लगाते  ,  वो  तो  बिना  किसी  तैयारी  के  ही   उग  आती  हैं  l  "  माली  हँसा  और  बोला  ---- "  बेटा  !  श्रेष्ठ  सम्पदाएँ  और   विभूतियाँ  हमेशा  परिश्रम   के  बाद  ही  प्राप्त  होती  हैं  l  दुर्गुण  और  अवांछित  तत्व   तो  बिना  प्रयास  के  ही  मिल  जाते  हैं  l "      आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- "  यदि  आप  इन्द्रधनुष  चाहते  हैं  , तो  आपको  वर्षा  का  सामना  तो  करना  ही  होगा  l "  

10 April 2025

WISDOM ------

  ' प्रकृति  ही  ईश्वर  है  '  मनुष्य  ने  अपने  स्वार्थ   के  लिए  , अपनी  सुख -सुविधाओं  और  भोग -विलास  के  लिए   प्रकृति  को  ही  प्रदूषित  कर  दिया  l  समय -समय  पर  प्रकृति  संकेत  देती  है  , चेतावनी  देती  है  कि  अपनी  जीवन  शैली  को  सुधारो  l  लेकिन  मनुष्य  जिद्दी  और  अहंकारी  है  l  युद्ध ,दंगे , अक्षम्य  अपराध , नकारात्मक  और  अंधकार  की  शक्तियों  के  प्रयोग  से  मनुष्य  ने   धरती , आकाश , पाताल  और  दसों  दिशाओं  को  प्रदूषित  कर  दिया  l   सहन  शक्ति  की  भी  कोई  सीमा  होती  है  l  जब  प्रकृति  को  क्रोध  आ  जाता  है  तो  वर्षों  का  विकास  एक  पल  में  धराशायी  हो  जाता  है  l  कितनी  ही  सभ्यताएं  धरती  के  गर्भ  में  समा  गईं   लेकिन  मनुष्य  इतिहास  से   शिक्षा  ही  नहीं  लेता   और  अपनी  गलतियों  से  स्वयं  ही  आपदाओं  को  आमंत्रित  करता  है  l   जैसा  भी  नुकसान  हुआ   , उस  पर  कुछ  दिन  शोक   मना  लिया  ,  सबसे  सरल  उपाय  क्षमा  मांग  ली   और  फिर  से   अपनी  गलतियों  को  नए  सिरे  से  दोहराने  के  लिए  तैयार  हो  गए  l  यह  चक्र  चलता  ही  रहता  है  l  जब  मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  होगी   तभी  वह  इस  चक्र  से  बाहर  निकल  सकेगा  l  समस्या  यही  है  कि  यह  चेतना  कैसे  जाग्रत  हो  ?   विभिन्न  धर्मों  में  अनेक  मन्त्र  हैं   लेकिन  चेतना  को  परिष्कृत  करने  वाला  ,  इस  विषम  चक्र  से  मुक्त  करने  वाला  केवल  एक  ही  मन्त्र  है  ----' गायत्री  मन्त्र  '   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  कहते  हैं  --- इस  महामंत्र  को  जपने  की  शुरुआत  तो  करो  , शेष  काम  माँ  स्वयं  करा  लेंगी  l  

8 April 2025

WISDOM -------

   अंधकार  की   शक्तियों  को  यह  अहंकार  होता  है  कि  वे  अमर  हैं  , उन्हें  कोई  नहीं  मिटा  सकता   लेकिन  गहन  अंधकार  को  मिटाने  के  लिए   सूर्य  की  एक  किरण  ही  पर्याप्त  है  l  मनुष्य  संसार  से  छिपकर  , नकाब  पहनकर  अनेक  अपराध  करता  है  ,  उसे  यह  विश्वास  होता  है  कि  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  l  स्वयं  को  भगवान  समझने  के  कारण  उसे  ऐसी  ग़लतफ़हमी  होती  है  l  यह  बात  उसकी  समझ  से  परे  है  कि  प्रकृति  के  कण -कण  में  भगवान  हैं  ,  वे  उसे  देख  रहे  हैं  l  डिवाइन  टाइम  होता  है  , तब  वह  सच  सबके  सामने  आता  है  l  ईश्वरीय  शक्ति  कब  और    कैसे  मनुष्य  के  अहंकार  को  चकनाचूर   करती  है  ,  देखने   और  समझने  वालों  के  लिए  वह  चमत्कार   होता  है  l  -----------------"  नन्ही  सी  चिनगारी!  तुम  भला  मेरा  क्या  बिगाड़  सकती  हो  !   देखती  नहीं  मेरा  आकार  ही  तुमसे  कई  गुना  बड़ा  है  ,  अभी  तुम्हारे  ऊपर  गिर  पडूँ   तो  तुम्हारे  अस्तित्व  का  पता   भी  न  लगे  l  "  तिनकों  का  ढेर  अहंकार  पूर्वक  बोला  l     चिनगारी  कुछ  बोली  नहीं  ,  चुपचाप  ढेर  के  समीप  जा  पहुंची  l  तिनके  उसकी  आंच  में  भस्मसात  होने  लगे  l  अग्नि  की  शक्ति  ज्यों -ज्यों    बढ़ी  ,  तिनके  जलकर  नष्ट  होते  गए  ,   देखते -देखते   भीषण  रूप  से  आग  लग  गई    और  सारा  ढेर  राख  में  परिवर्तित  हो  गया  l  यह  द्रश्य  देख  रहे   आचार्य  ने  अपने  शिष्यों   को  बताया  ---- "  बालकों  !  जैसे  आग  की  एक  चिनगारी  ने  अपनी  प्रखर  शक्ति  से   तिनकों  का  ढेर  खाक  कर  दिया  l  वैसे  ही   तेजस्वी  और  क्रियाशील  एक  व्यक्ति  ही   सैकड़ों  बुरे  लोगों  से  संघर्ष  में  विजयी  हो  जाता  है  l  "

4 April 2025

WISDOM -------

 ईश्वर  ने  इस  धरती  पर  अनेकों  बार  विभिन्न  रूपों  में  अवतार  लिए  l  अधर्म  का  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  के  लिए  ही  ईश्वर  को  आना  पड़ा  l  कुछ  समय  के  लिए  आसुरी  शक्तियों  का  अंत  हो  जाता  है  लेकिन  अति  शीघ्र   ये  असुर  फिर  से  प्रबल  होकर  आतंक  मचाने  लगते  हैं  l  असुरता   क्या  है  ?  यदि  बच्चों  को  आरम्भ  से  ही  नैतिक  शिक्षा  न  दी  जाए  ,  तो   बालक  समाज  में  व्याप्त  दोष  -दुर्गुणों  को   सीख  जाता  है  ,  उसका  आचरण  दूषित  हो  जाता  है  ,  यही  असुरता  है  l  व्यक्ति  शिक्षा  प्राप्त  कर  बुद्धिमान  तो  बन  जाता  है   लेकिन  नैतिकता  का  ज्ञान  न  होने  के  कारण  वह  अपने  ज्ञान  का  दुरूपयोग  करता  है  l  असुरता  का  सबसे  बड़ा  दोष  यह  है  कि  यह  जंगल  की  आग  की  तरह  भड़कती  है  l  ईश्वरीय  विधान  से  उन्हें  उनके  कर्मों  का  दंड  भी  समय -समय  पर  मिलता  है   लेकिन  इस  दंड  के  बाद  उनके  आसुरी   कृत्य  समाप्त  नहीं  होते    समाप्त  नहीं  होते   l  अपना   अंत    आया  देखकर  और  प्रबल   हो  जाते  हैं  l  श्री  हनुमान जी  ने  रावण  की  लंका  जला  दी ,  उसका  पुत्र  अक्षय  कुमार  और  अनेक  राक्षस  मारे  गए  , इससे  रावण  कमजोर  नहीं  हुआ   , उसने  देवी  की  पूजा -साधना  कर  के  और  अधिक   शक्ति   प्राप्त  कर  ली  l  कंस  ने  तो  आकाशवाणी  सुन  ली  थी  कि  उसको  मारने  वाला  पैदा  हो  चुका  है   लेकिन  अपनी  मृत्यु  को  निकट  जानकार  उसने  कोई  सत्कर्म  नहीं  किए   बल्कि  अबोध  बालकों  की  हत्या  कराना  शुरू  कर  दिया  ,   अत्याचार  और   अधिक  करने  लगा  l  यह  स्थिति  प्रत्येक  युग  में  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  बड़े -बड़े  अपराध  करते  हैं  ,  जीवन  का  अंत  आया  देखकर  भी  सुधरते  नहीं  l  अपनी  सफलता  के  लिए  किसी  को  भी  अपने  रास्ते  से  हटाने  में  परहेज  नहीं  करते  l  यह  तो  स्पष्ट  हो  चुका  है  कि  असुरों  को  मारने  से  असुरता  का  अंत  नहीं  होता  l  यदि  किसी  विधि  से   उनके  विचारों  में  सुधार  हो  जाये , विचार  परिष्कृत  हो  जाएँ  ,  उनमें  सद्बुद्धि  आ  जाए  तो  रूपांतरण  होने  में  कोई  देर  नहीं  लगती  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  सद्बुद्धि  के  लिए   ' गायत्री  मन्त्र  '  को  संसार  के  लिए  सुलभ  कर  दिया  l  इस  मन्त्र में  अद्भुत  शक्ति  है  जिससे  संसार  का  कल्याण  संभव  है  l  

1 April 2025

WISDOM -------

   यदि मनुष्य  ईश्वर  के  बनाए  इस  कर्मफल  विधान  को  समझ  जाए    और  होश  में  रहकर  कर्म  करे  तो  संसार  से  अत्याचार , अन्याय , अपराध  और  पापकर्मों  का  अंत  हो  जाए  l  संसार  में  इतना  अत्याचार , अधर्म , अन्याय  इसीलिए  है  क्योंकि  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  मनुष्य  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है   और  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए  मनमानी  करता  है  l  जो  जितना  बड़ा  है  उसका  अहंकार  भी  उतना  ही  बड़ा  है   l  यही  कारण  है  कि  परिवार , समाज , राष्ट्र  और  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर  पर  जितना  भी  अन्याय , युद्ध , षड्यंत्र  , शोषण  ----- यह  सब  अहंकारियों  के  कारण  ही  है  l  यदि  धन , वैभव , पद , प्रतिष्ठा , शक्ति  में  जो  उच्च  स्तर  पर  हैं  , वे  किसी  तरह  कर्मफल  विधान  को  समझ  जाएँ   तो  संसार  में  भी  शांति  आ  जाये  और  उनका   परलोक  और  आगे  आने  वाले  जन्म  भी  सुधर  जाएँ  l  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमें  बताया  गया  है  कि   स्वयं  भगवान   और    कर्मों  का  निर्धारण  करने   वाले  यमराज   को  भी  कर्मफल  भोगना  पड़ता  है   तो  मनुष्य  इस  विधान  से  कैसे  बच  सकता  है  l   ऋषि  कहते  हैं  ---कर्मों  के  परिणाम  से  बचने  के  लिए   आप  संसार  के  किसी  भी  कोने  में  छिप  जाओ  ,  कर्म  आपको  उसी  तरह  ढूंढ  लेते  हैं  जैसे  हजारों  गायों  के  बीच  बछड़ा  अपनी  माँ  को  ढूंढ  लेता  है  l  हमारे  कर्म  हमारी  पर्सनल  फ़ाइल  है   जो  हमेशा  हमारे  साथ  है  l  अच्छा -बुरा  जो  भी  किया  है   उसका  हिसाब   जन्म -जन्मांतर  की  इस  यात्रा  में  कभी  न  कभी  चुकाना  ही  पड़ेगा  l  एक  कथा  है  ---- एक  चरवाहे  की  शिकायत  पर  राजा  ने  दूसरे  पक्ष  को  सुने  बिना  ही  अनजाने  में    महर्षि  मांडाव्य  को  सूली  की  सजा  सुना  दी  l  सूली  का   भयंकर  कष्ट  सहन  करते  हुए  महर्षि  ने  प्राण  त्याग  दिए  और  उनकी  आत्मा  यमलोक  पहुंची  l  महर्षि  की  तपस्या  के  कारण  स्वयं  महर्षि  को  लेने  यमराज   यमलोक  के  द्वार  पर  पहुंचे  l  तब  महर्षि  ने  यमराज  से  पूछा  ---" यमराज  !  मेरे  द्वारा  वह  कौन  सा  कर्म  था  जिसके   परिणाम स्वरुप  मुझे  सूली  पर  चढ़ने  का  घातक  कष्ट  भुगतना  पड़ा  l  "    तब  यमराज  ने  चित्रगुप्त  के  पास  उनके  सभी  कर्मों  का  हिसाब  देखा  और  कहा  --- "  महर्षि  !  जब  आप  आठ  वर्ष  के  थे   तब  आपने  एक  कीड़े  की  गर्दन  पर  एक  धारदार  वस्तु  से  प्रहार  किया  था  l  वही  कर्म  आपको  सूली  पर  चढ़ने  के  रूप  में  चुकाना  पड़ा  l  "  महर्षि  ने  कहा  ---- "  यमराज  !  आठ  वर्ष  के  बालक  को  कर्मों  के  शुभ -अशुभ  होने  का  विवेक  नहीं  होता  ,  उस  बालक  में  इतनी  समझ  नहीं  होती   कि  वो  अपने  कर्मों  के  दूरगामी  परिणामों  को  महसूस  कर  सके  l  ऐसी  स्थिति  में  कर्म  के  निर्धारण  की  सम्यक  जिम्मेदारी   इस  पद  पर  आसीन  होने  के  कारण  तुम्हारी  थी  यमराज  l  इस  जिम्मेदारी  को  पूर्ण  करने  में  तुम  सफल  नहीं  रहे    इसलिए  तुम्हे  भी   अपने  कर्म  दोष  का  परिणाम  भुगतना  पड़ेगा   और  तुम  धरती  पर  एक  साथ  दो  व्यक्तियों  के  रूप  में  जन्म  लोगे  l  एक  रूप  में  तुम  शासक  बनोगे  ,  परन्तु  जीवन  भर  भटकते  रहोगे   और  दूसरे  रूप  में   तुम  ज्ञानी  तो  होगे  , परन्तु  अधिकार  से  शून्य  रहोगे  l  "   महर्षि  का  वचन  सत्य  हुआ  l  यमराज  को  धरती  पर   दो  रूपों  में  जन्म  लेना  पड़ा  l  पहले  रूप  में  वे  युधिष्ठिर  बने  , जिसमें  वे  शासक  तो  थे  , परन्तु  जीवन  भर  भटकते  रहे    और  दूसरे  रूप  में  वे   सूतपुत्र  विदुर  थे   l  विदुर  ज्ञानी  थे  लेकिन  उन्हें  कोई  महत्त्व  और  अधिकार  नहीं  मिला  , गरीबी  में  जीवन  व्यतीत  किया  l  कर्म  की  गति  गहन  है  l