इस जगत में छोटे से छोटे काम की भी प्रतिक्रिया अवश्य होती है । तब कोई महान त्याग अथवा नि:स्वार्थ बलिदान व्यर्थ चला जाये यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध बात है । हमारा कर्तव्य है कि हम सदा शुभ और श्रेष्ठ कर्मों में ही अपनी शक्ति खर्च करें । सुख - दुःख , हानि - लाभ , सफलता - असफलता का बहुत कुछ आधार तो तत्कालीन परिस्थितियों पर रहता है , पर हम जो कुछ भी कर्म करेंगे उसका फल शीघ्र या विलम्ब से मिलेगा अवश्य ।
महाराणा प्रताप यदि चाहते तो बादशाह अकबर से सन्धि करके आराम की जिन्दगी बिता सकते थे , पर प्रताप ने अपने सुख या आराम की परवाह न करके भारतवर्ष और राजपूत जाति के गौरव को स्थिर रखने के लिए संघर्ष के मार्ग को अपनाया । इसके लिए उन्होंने जैसा कष्टपूर्ण जीवन बिताया और प्राणों का कुछ भी मूल्य न समझा , यह एक ऐसा द्रश्य था जिससे मेवाड़ ही नहीं आसपास के राजपूत भी उनके प्रशंसक बन गए । फिर समस्त जनता की सहानुभूति भी ऐसे स्वार्थ त्यागी को ही प्राप्त हो सकती है ।
महाराणा प्रताप का चरित्र आज भी उतना ही प्रेरणादायक है । यह संसार संघर्ष भूमि है , प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समय - समय पर कठिनाइयाँ , आपत्तियां आती ही रहती हैं । उस समय जो अपने सिद्धान्तों पर डटे रहते हैं और अपने स्वार्थ को त्याग कर या कम करके दूसरों के उपकार के लिए प्रयत्न करते हैं , वे ही लोगों की निगाह में आदरणीय और माननीय होते हैं ।
महाराणा प्रताप यदि चाहते तो बादशाह अकबर से सन्धि करके आराम की जिन्दगी बिता सकते थे , पर प्रताप ने अपने सुख या आराम की परवाह न करके भारतवर्ष और राजपूत जाति के गौरव को स्थिर रखने के लिए संघर्ष के मार्ग को अपनाया । इसके लिए उन्होंने जैसा कष्टपूर्ण जीवन बिताया और प्राणों का कुछ भी मूल्य न समझा , यह एक ऐसा द्रश्य था जिससे मेवाड़ ही नहीं आसपास के राजपूत भी उनके प्रशंसक बन गए । फिर समस्त जनता की सहानुभूति भी ऐसे स्वार्थ त्यागी को ही प्राप्त हो सकती है ।
महाराणा प्रताप का चरित्र आज भी उतना ही प्रेरणादायक है । यह संसार संघर्ष भूमि है , प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समय - समय पर कठिनाइयाँ , आपत्तियां आती ही रहती हैं । उस समय जो अपने सिद्धान्तों पर डटे रहते हैं और अपने स्वार्थ को त्याग कर या कम करके दूसरों के उपकार के लिए प्रयत्न करते हैं , वे ही लोगों की निगाह में आदरणीय और माननीय होते हैं ।
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