' अरब जगत में संगीत के माध्यम से करोड़पति बनी यह प्रथम महिला हैं । पारिश्रमिक के रूप में उन्होंने लाखों भले ही कमाये हों परन्तु उन सबका उपयोग पुरातन संगीत को नवीनतम गति देने के लिए किया । '
इनके पिता एक गरीब किसान थे | मांगलिक अवसरों पर कुरान की आयतें सुना-सुनाकर गुजर-बसर करते थे । एक दिन खलतुम ने आयतों को गाया तो पिता सुनकर विस्मित रह गये । उन्होंने उनके लिए संगीत शिक्षण की व्यवस्था की । लोग उनका संगीत सुनने के लिए दूर-दूर से आने लगे । खलतुम के जीवनीकार गोर्डन गास्कील ने तो यहां तक लिखा है कि जब कभी खलतुम का कार्यक्रम रेडियो से प्रसारित होता है तो मिस्र की राजधानी काहिरा में यातायात कम हो जाता है ढाई हजार मील दूर का सवलाका शहर के काफी हाउसों में बैठे वृद्ध अपना खेल छोड़कर बाहर आ जाते हैं और भौगोलिक विविधताओं से परिपूर्ण रेतीले देशों के प्रवासी अपने तम्बुओं में इकट्ठे हो जाते हैं, इसे कहते हैं संगीत का जादू ।
1934 में काहिरा का पहला रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ, इसका सबसे पहला कार्यक्रम उम खलतुम का ही था । इस कार्यक्रम में उन्होंने स्वर-साधना के ऐसे आयाम प्रस्तुत किये कि संगीत विशारद भी उनकी स्वर-शक्ति से अवगत होकर आश्चर्यचकित रह गये । खलतुम की एक अविस्मरणीय विशेषता रही कि उन्होंने पाश्चात्य ढ़ंग से कभी गाने का प्रयत्न ही नहीं किया । एक हजार साल पुरानी अरबी-शास्त्रीय संगीत धारा जो लगभग मृतप्राय हो गई थी, को ही उन्होंने पुनर्जीवित किया । मिनटों तक साँस को साधकर एक ही स्वर खींच लेती और गीत की स्वर रचना के आरोह, अवरोह को ऐसी गति प्रदान करतीं कि शब्द कानों के द्वार से सीधे ह्रदय तक पहुँच जाते और वहीँ सुने भी जाते ।
खलतुम आज भी बड़े आदर-सम्मान और बडे आदर्श के रूप में स्मरण की जाती हैं । एक प्रख्यात अरब संगीतकार ने उनके संबंध मे यह राय व्यक्त की है कि------- महत्वपूर्ण मानी गईं दो वस्तुएं कभी नहीं बदलती एक है पिरामिड और दूसरी है खलतुम ।
इनके पिता एक गरीब किसान थे | मांगलिक अवसरों पर कुरान की आयतें सुना-सुनाकर गुजर-बसर करते थे । एक दिन खलतुम ने आयतों को गाया तो पिता सुनकर विस्मित रह गये । उन्होंने उनके लिए संगीत शिक्षण की व्यवस्था की । लोग उनका संगीत सुनने के लिए दूर-दूर से आने लगे । खलतुम के जीवनीकार गोर्डन गास्कील ने तो यहां तक लिखा है कि जब कभी खलतुम का कार्यक्रम रेडियो से प्रसारित होता है तो मिस्र की राजधानी काहिरा में यातायात कम हो जाता है ढाई हजार मील दूर का सवलाका शहर के काफी हाउसों में बैठे वृद्ध अपना खेल छोड़कर बाहर आ जाते हैं और भौगोलिक विविधताओं से परिपूर्ण रेतीले देशों के प्रवासी अपने तम्बुओं में इकट्ठे हो जाते हैं, इसे कहते हैं संगीत का जादू ।
1934 में काहिरा का पहला रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ, इसका सबसे पहला कार्यक्रम उम खलतुम का ही था । इस कार्यक्रम में उन्होंने स्वर-साधना के ऐसे आयाम प्रस्तुत किये कि संगीत विशारद भी उनकी स्वर-शक्ति से अवगत होकर आश्चर्यचकित रह गये । खलतुम की एक अविस्मरणीय विशेषता रही कि उन्होंने पाश्चात्य ढ़ंग से कभी गाने का प्रयत्न ही नहीं किया । एक हजार साल पुरानी अरबी-शास्त्रीय संगीत धारा जो लगभग मृतप्राय हो गई थी, को ही उन्होंने पुनर्जीवित किया । मिनटों तक साँस को साधकर एक ही स्वर खींच लेती और गीत की स्वर रचना के आरोह, अवरोह को ऐसी गति प्रदान करतीं कि शब्द कानों के द्वार से सीधे ह्रदय तक पहुँच जाते और वहीँ सुने भी जाते ।
खलतुम आज भी बड़े आदर-सम्मान और बडे आदर्श के रूप में स्मरण की जाती हैं । एक प्रख्यात अरब संगीतकार ने उनके संबंध मे यह राय व्यक्त की है कि------- महत्वपूर्ण मानी गईं दो वस्तुएं कभी नहीं बदलती एक है पिरामिड और दूसरी है खलतुम ।
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