' जब लोगों का एक समुदाय दूसरे समुदाय के साथ अमानवीय व्यवहार करे तो कवि का भी यह धर्म हो जाता है कि अन्याय के विरुद्ध स्वर ऊँचा करे । '
जब ' जलियाँवाला बाग़ ' की एक सार्वजानिक सभा में कई सौ व्यक्ति जनरल डायर द्वारा मशीनगन से भून डाले गए तो महाकवि ने उसका बड़ा विरोध किया और ऐसी सरकार से किसी प्रकार का सम्बन्ध रखना बुरा समझकर उसकी प्रदान की हुई ' सर ' की पदवी को वापस कर दिया । इस अवसर पर उन्होंने वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड को एक लम्बा पत्र लिखा , जिसमे कहा गया था ------- " हमारी आँखें खुल गईं हैं कि हमारी अवस्था कैसी असहाय है । अभागी भारतीय जनता को इस समय जो दंड दिया गया है उस का उदाहरण किसी सभ्य सरकार में नहीं मिल सकता । पर हमारे शासक उल्टा इस कृत्य के लिए अपने को शाबाशी दे रहे हैं कि उन्होंने भारत वासियों को अच्छा सबक सिखा दिया । अधिकांश ऐंग्लो इंडियन समाचार पत्रों ने इस निर्दयता की प्रशंसा की और कुछ ने तो हमारी यातनाओं का उपहास भी किया ---------- इस अवसर पर मैं कम से कम इतना तो कर ही सकता हूँ कि भारी से भारी दुष्परिणाम भोगने के लिए तैयार होकर अपने उन करोड़ों देशवासियों की विरोध भावना को व्यक्त करूँ , जो आतंक और भय के कारण चुपचाप सरकारी दमन को सह रहें हैं । समय आ गया है जब सरकार द्वारा प्रदत्त ' सम्मान के पट्टे ' राष्ट्रीय अपमान के साथ मेल नहीं खा सकते । वे हमारी निर्लज्जता को और भी चमका देते हैं । अत: मैं विवश होकर सादर प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे सम्राट की दी गई ' नाईट ' की उपाधि से मुक्त कर दें । "
इस प्रकार महाकवि ने यह दिखला दिया कि जहाँ मानवता का प्रश्न उपस्थित हो , वहां प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्ति को आगे बढ़कर उसके विरोध में अपना दायित्व निभाना चाहिए । अन्याय के सम्मुख सिर झुकाना बहुत बड़ी हीनता और कायरता की निशानी है ।
जब ' जलियाँवाला बाग़ ' की एक सार्वजानिक सभा में कई सौ व्यक्ति जनरल डायर द्वारा मशीनगन से भून डाले गए तो महाकवि ने उसका बड़ा विरोध किया और ऐसी सरकार से किसी प्रकार का सम्बन्ध रखना बुरा समझकर उसकी प्रदान की हुई ' सर ' की पदवी को वापस कर दिया । इस अवसर पर उन्होंने वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड को एक लम्बा पत्र लिखा , जिसमे कहा गया था ------- " हमारी आँखें खुल गईं हैं कि हमारी अवस्था कैसी असहाय है । अभागी भारतीय जनता को इस समय जो दंड दिया गया है उस का उदाहरण किसी सभ्य सरकार में नहीं मिल सकता । पर हमारे शासक उल्टा इस कृत्य के लिए अपने को शाबाशी दे रहे हैं कि उन्होंने भारत वासियों को अच्छा सबक सिखा दिया । अधिकांश ऐंग्लो इंडियन समाचार पत्रों ने इस निर्दयता की प्रशंसा की और कुछ ने तो हमारी यातनाओं का उपहास भी किया ---------- इस अवसर पर मैं कम से कम इतना तो कर ही सकता हूँ कि भारी से भारी दुष्परिणाम भोगने के लिए तैयार होकर अपने उन करोड़ों देशवासियों की विरोध भावना को व्यक्त करूँ , जो आतंक और भय के कारण चुपचाप सरकारी दमन को सह रहें हैं । समय आ गया है जब सरकार द्वारा प्रदत्त ' सम्मान के पट्टे ' राष्ट्रीय अपमान के साथ मेल नहीं खा सकते । वे हमारी निर्लज्जता को और भी चमका देते हैं । अत: मैं विवश होकर सादर प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे सम्राट की दी गई ' नाईट ' की उपाधि से मुक्त कर दें । "
इस प्रकार महाकवि ने यह दिखला दिया कि जहाँ मानवता का प्रश्न उपस्थित हो , वहां प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्ति को आगे बढ़कर उसके विरोध में अपना दायित्व निभाना चाहिए । अन्याय के सम्मुख सिर झुकाना बहुत बड़ी हीनता और कायरता की निशानी है ।
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