उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज - सेवा तथा सुधार के लिए अर्पित कर दिया | उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है ----- " मेरे जीवन का उद्देश्य ग्रन्थ रचना ही नहीं है । मैं तो एक सैनिक मात्र हूँ और जनमानस को जागृत करने के लिए आन्दोलन करना मेरा मुख्य काम है । मेरे ग्रन्थों में मेरी आत्मा रोती है और जो भी सह्रदय मेरी आत्मा के उस रुदन को सुनता और समझता है वही मेरा सच्चा मित्र व स्वजन है ---- जापान के साढ़े पांच सौ वेश्यालयों को दफ़न करना , पंद्रह करोड़ पौण्ड की शराब धारा को रोकना , चौरानवे लाख मजदूरों का उद्धार करना और दो करोड़ किसानों को स्वाधीन बनाना ही मेरे जीवन की आशा और उद्देश्य है और इसी उद्देश्यपूर्ण आशा से में अपनी पुस्तक सर्व साधारण की सेवा में समर्पित कर रहा हूँ । "
उनका कहना था ------ " मनुष्य की अन्तरात्मा ही राजनीति है , अर्थशास्त्र है , शिक्षा और विज्ञान है इसलिए मनुष्य की आत्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है । यदि हम सब अपनी आत्मा परिष्कृत बना सकें तो राजनीति , अर्थशास्त्र , शिक्षा और विज्ञान की समस्याएं स्वयं ही हल हो जायें । "
उनका कहना था ------ " मनुष्य की अन्तरात्मा ही राजनीति है , अर्थशास्त्र है , शिक्षा और विज्ञान है इसलिए मनुष्य की आत्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है । यदि हम सब अपनी आत्मा परिष्कृत बना सकें तो राजनीति , अर्थशास्त्र , शिक्षा और विज्ञान की समस्याएं स्वयं ही हल हो जायें । "