लघु कथा ---- दो भाइयों के पास समुचित धन था l परलोक सुधारने के उदेश्य से दोनों ने तीर्थयात्रा पर जाने एवं दान करने का निर्णय लिया l धन की आवश्यकता किसे है और किसे नहीं , इसका विवेक न रखकर , वे धन लुटाते रहे l जब लौट रहे थे तो देखा कि एक व्यक्ति ठंड से सिकुड़ रहा है l उनके पास लौटने भर का धन था शेष वे लुटा चुके थे लेकिन वे कीमती वस्त्र पहने और शाल ओढ़े थे , पर यह विवेक न था कि अब भी कुछ जरूरतमंद को दिया जा सकता है l इसी बीच देखा कि एक निर्धन व्यक्ति उस राह से गुजरा l ठंड से सिकुड़ते व्यक्ति को उसने अपनी ऊनी चादर ओढ़ा दी और चला गया l दोनों भाई एक दूसरे को देख रहे थे l छोटा भाई बोला ---- " भाई ! लगता है इसका दान हमारे दान से श्रेष्ठ है l इसकी तुलना में हमारा सारी सम्पत्ति लुटाना व्यर्थ चला गया l " उन्हें समझ आया कि दान सुपात्र को दिया जाए , तभी सार्थक होता है l
28 May 2025
23 May 2025
WISDOM ------
17 May 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इन दिनों आस्था संकट सघन है l लोग नीति और मर्यादा को तोड़ने पर बुरी तरह उतारू हैं l फलत: अनाचारों की वृद्धि से अनेकों संकटों का माहौल बन गया है l न व्यक्ति सुखी है , न समाज में स्थिरता है l समस्याएं , विपत्तियाँ , विभीषिकायें निरंतर बढ़ती जा रही हैं l स्थिर समाधान के लिए जनमानस के द्रष्टिकोण में परिवर्तन , चिन्तन का परिष्कार और सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन , यही प्रमुख उपाय है l " आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह दृढ मान्यता थी कि ---- " मनुष्य की धर्म , न्याय और नीति में अभिरुचि होनी चाहिए l उसके लिए वह सहज वृत्ति है l यदि इस दिशा में प्रगति न हो पाई तो अंततः मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है l " आचार्य जी लिखते हैं -----" ऊंट को नकेल से , घोड़े को लगाम से , बैल को डंडे से और हाथी को अंकुश के सहारे वश में किया जा सकता है l ईश्वर विश्वास और आस्तिकता की भावना मनुष्य की दूषित प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाती है l "
16 May 2025
WISDOM -----
समय के परिवर्तन के साथ लोगों के विचार और मान्यताएं भी बदल जाती हैं l मनुष्य के विचार उस युग की विशेषताओं से प्रभावित होते हैं जैसे कलियुग में स्वार्थ , लालच , कामना , अहंकार , महत्वाकांक्षा की प्रधानता है , इसलिए मनुष्य के विचार और कार्य इन्ही से प्रेरित होते हैं जैसे पहले जो चक्रवर्ती सम्राट होते थे उनका सभी राज्यों पर प्रभुत्व होता था , सभी राजा उनकी आधीनता स्वीकार करते थे लेकिन वो चक्रवर्ती सम्राट उन विभिन्न राज्यों की कृषि , उद्योग , कला , संस्कृति , शिक्षा , चिकित्सा आदि किसी भी क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करते थे l इससे लोगों के जीवन में संतुलन बना रहता था , उनकी संस्कृति , कला , चिकित्सा आदि सब जीवित रहती थी l लेकिन अब शक्ति के बल पर जब दूसरे देशों की कृषि , चिकित्सा , शिक्षा आदि को अपनी इच्छानुसार चलाने का प्रयास किया जाता है तो लोगों का जीवन , पर्यावरण सब असंतुलित हो जाता है क्योंकि प्रत्येक देश की मिटटी , प्राकृतिक दशाएं , संस्कृति सब भिन्न है l बर्फीले क्षेत्र के पौधे को गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में लगा दिया जाये तो क्या हाल होगा ? दुनिया के सबसे अमीर , सबसे शक्तिशाली बनने की होड़ ने जन -साधारण के जीवन का सुकून छीन लिया है l पहले देशी तरीके से कृषि उपज होती थी , सब स्वस्थ थे , कोई भयंकर बीमारी नहीं थी लेकिन अब रासायनिक खाद , कीटनाशक , रासायनिक उन्नत बीज से जो भोजन सामग्री उपलब्ध होती है उससे तो योग करने वाला , नियम संयम से रहने वाला भी बीमार है l यदि किसी तरीके से मनुष्य के विचारों में परिवर्तन हो , जियो और जीने दो ' का महत्त्व समझें l गुण -दोष तो सब में हैं , प्रत्येक देश अपनी संस्कृति को जीवित रखते हुए स्वेच्छा से दूसरे के गुणों को स्वीकार करे , अपना अहंकार छोड़ दे तब संसार में सुख -शांति होगी l
13 May 2025
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ईश्वर ने इस स्रष्टि की रचना की l उन्हें यह धरती सबसे अधिक प्रिय है , वे चाहते हैं कि इस धरती पर हरियाली हो खुशहाली हो l अपनी बनाई इस सुन्दर रचना को ईश्वर क्यों नष्ट करना चाहेंगे l यह तो मनुष्य है जो हमेशा युद्ध और दंगों की बात कर के ऐसी नकारात्मकता को आमंत्रित कर लेता है l शांति और सद्भाव की बात करो तो शांति आएगी l बड़ी मुश्किल से मिले इस मानव जीवन को मनुष्य शांति और सुकून से जी सकेगा l जब तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी की जाती है तो क्या मनुष्य इतना पागल और उन्मादी हो जायेगा कि सबके साथ स्वयं को और अपने ही परिवार को समाप्त कर लेगा ? यदि अभी से ऐसे पागलपन का इलाज कर लें , अहंकार त्याग दें , सब मिलकर अपने हथियारों को समुद्र में फेंक दें , अपने स्वार्थ और महत्वाकांक्षा को भूल जाएँ , जियो और जीने दो की बात करें तो युद्ध शब्द ही शब्द कोष से हट जायेगा l यह मनुष्य के हाथ में ही है कि वह अपना भविष्य वीरान और अंधकारमय देखना चाहता है या खुशहाल जिन्दगी जीना चाहता है l मृत्यु कभी भेदभाव नहीं करती , जो सबसे शक्तिशाली है या सबसे कमजोर है , एक दिन जाना सबको खाली हाथ है l मानव जाति का इतिहास युद्धों का ही इतिहास है , यह सब देखकर भी मनुष्य को अक्ल नहीं आती , बुद्धि पर ताला लगा है l इसलिए अब प्रकृति दंड देती है l ईश्वर भी कहते हैं कि हम कहाँ तक अवतार लें , यह मनुष्य बिना दंड के और बिना डंडे के नहीं सुधरेगा l जब भगवन का डंडा पड़ेगा तभी चेतना विकसित होगी , परिष्कृत होगी और तब अपने मानव जीवन का मूल्य समझ में आएगा l जब जीवन का अंत आया तब सिकंदर को समझ में आया कि विश्व विजेता बनने का स्वप्न लिए वह खाली हाथ जा रहा है l यदि यह समझ पहले ही आ जाती तो इतना खून -खराबा न होता l अभी भी वक्त है , समय रहते जाग जाओ , फिर अंत में पछताने से कुछ नहीं होता l
11 May 2025
WISDOM -----
ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार ऐसे दुर्गुण हैं कि ये व्यक्ति को मानसिक रूप से विकृत कर देते हैं l अहंकार के साथ सबसे बुरी बात यह है कि अहंकारी अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पाता l उसके अहंकार को जब पोषण नहीं मिलता तो यह अहंकार घाव की भांति रिसने लगता है l ऐसा अहंकारी यदि ईर्ष्यालु भी है तो वह अपने अहंकार के पोषण के लिए अधम से अधम कार्य करने पर उतारू हो जाता है , उसे परिणाम की परवाह नहीं होती l ---महाभारत में अश्वत्थामा ने यही किया l पहले उसने शिविर में सोते हुए द्रोपदी के पांच पुत्रों का गला काट दिया और शिविर में आग लगा दी l इससे भी उसका जी नहीं भरा l इस युग में जैसे अणुबम है , उस समय ब्रह्मास्त्र था l अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र चलाना तो आता था लेकिन उसे वापस बुलाना नहीं आता था l अहंकार और ईर्ष्या उस पर इस तरह हावी था कि उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को लक्ष्य कर के एक सरकंडे को मन्त्र पढ़कर उत्तरा के गर्भ की ओर फेंका ताकि पांडवों के वंश का भी समूल नाश हो जाए l उस समय भगवान श्रीकृष्ण थे , उन्होंने गर्भस्थ शिशु की रक्षा की l वर्तमान युग की सबसे दुःखद बात यही है कि इस युग में दुर्बुद्धि का प्रकोप है l दुर्बुद्धि के साथ यदि ईर्ष्या और अहंकार भी है तो ब्रह्मास्त्र का इतिहास दोहराया जा सकता है , घातक बम फेंक दो , उसे वापस लौटाने की विद्या तो विज्ञान के पास नहीं है l पल भर में समूची धरती श्मशान बन सकती है , युगों का विकास पल भर में राख हो सकता है l भगवान श्रीकृष्ण हमारे सामने नहीं है लेकिन वे निरंतर कोई सन्देश और संकेत भेजते हैं कि मनुष्य जागरूक हो , अपनी सुरक्षा का घेरा इतना मजबूत बनाओ कि कोई उसमें प्रवेश न कर सके l युद्ध की नौबत ही न आए l असुरों को निपटाने के लिए युगों से कितने ही युद्ध हुए लेकिन असुरता का साम्राज्य समाप्त नहीं होता है l ईश्वर विभिन्न देवदूतों के माध्यम से संसार को यह सन्देश देते हैं कि असुरों की चेतना में , उनके मन में परिवर्तन हो जाये तो उनके भीतर की असुरता समाप्त हो जाएगी l इसका सबसे सरल उपाय है --- 'गायत्री मन्त्र ' l इससे व्यक्ति को सद्बुद्धि आएगी l
WISDOM -----
हमारे ऋषियों ने , विद्वानों ने , कथाकारों ने बहुत छोटी -छोटी कथाएं कहीं हैं l वे छोटी अवश्य हैं लेकिन उनके भीतर ऐसा ज्ञान और प्रेरणा है जो परिवार , समाज और राष्ट्र सभी के लिए उपयोगी है ------- दो बिल्लियाँ थीं , प्रेम से रहतीं और मिल -बांटकर खाती थीं l एक दिन उन्हें एक रोटी मिल गई , घी चुपड़ी थी , बहुत अच्छी उसकी खुशबू थी तो स्वाद कितना अच्छा होगा l दोनों बिल्लियों की इच्छा थी कि पूरी रोटी वे ही खा लें l इस रोटी को लेकर दोनों आपस में लड़ने लगीं l लड़ाई बहुत बढ़ गई l पेड़ पर बैठा बन्दर यह सब देख रहा था l लालच उसके मन में भी था , क्यों न वह झपट्टा मारकर इस पूरी रोटी को हड़प ले l बन्दर को एक युक्ति सूझी , वह तराजू लेकर बिल्लियों के पास गया और बोला --- ' बिल्ली मौसी ! क्यों लड़ती हो ? मेरे पास तराजू है , लाओ मैं रोटी को आधा -आधा कर दूँ l ' बिल्लियों ने बन्दर पर विश्वास कर लिया l बन्दर बहुत चालाक था , उसने रोटी को इस तरीके से आधा किया कि तराजू का एक पलड़ा भार से नीचे था l उसे बराबर करने के लिए उसने उसमें से थोड़ी रोटी तोड़कर स्वयं ही अपने मुँह में रख ली l अब तराजू का दूसरा पलड़ा भार से नीचे हो गया , बन्दर ने उसमें से भी थोड़ी रोटी तोड़कर खा ली l दोनों बिल्लियाँ बन्दर का मुँह देख रहीं थी कि आखिर किस विधि से यह रोटी को आधा -आधा कर रहा है l दोनों बिल्लियाँ उसका मुँह ही देखती रह गईं और बन्दर पूरी रोटी चट कर पेड़ पर चढ़ गया और खी -खी कर बिल्लियों को चिढ़ाने लगा l तभी एक लोमड़ी आ गई उसने कहा ---- दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा होता है l अपने झगड़े आपस में ही निपटाओ , किसी अन्य का दखल होगा तो ऐसा ही होगा l
9 May 2025
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यदि किसी व्यक्ति में कोई बुरी आदत है तो यह बुराई किसी एक पर ही सीमित नहीं होती यह बुराई उसके रोम -रोम में समाई होती है जैसे झूठ बोलना एक दुर्गुण है l जो व्यक्ति झूठ बोलता है , वह अपने अपनों से , परिवार में समाज में सब जगह झूठ ही बोलता है इसका दुष्परिणाम यह होता है कि उसकी साख कम हो जाती है , उसके अपने भी उसका विश्वास नहीं करते और इस दुर्गुण का दुष्परिणाम उसे कभी न कभी भोगना अवश्य ही पड़ता है l एक नीति कथा है ---- एक लड़का था , उसे झूठ बोलने की आदत थी , इस आदत से वह अपना मनोरंजन करता था l उसके गाँव में नल में पानी बहुत कम व् कभी -कभी आता था l जब वह देखता कि सब महिलाएं अपने कार्यों में व्यस्त हैं तो चिल्लाकर सबको बुलाता कि नल में पानी आ गया जल्दी आओ l सब अपना काम छोड़कर बरतन लेकर पानी भरने जाते तो वह खूब हँसता , क्योंकि वहां तो सब सूखा ही था l छोटे -छोटे झूठ बोलते बोलते उसे एक दिन बड़ा झूठ बोलने का मन हुआ l वह जंगल में गाय , बकरी आदि जानवरों को चराने ले जाता था l एक दिन अपनी आदत के अनुरूप वह जोर -जोर से चिल्लाने लगा ----- भेड़िया आया , बचाओ ! बचाओ ! सब गाँव वाले लाठी लेकर जंगल की ओर दौड़े l वहां तो भेड़िया नहीं था , वह लड़का जोर से हँसने लगा कि मैंने सबको बुद्धू बना दिया l ऐसा एक बार और हुआ जब गाँव वाले उसकी रक्षा के लिए जंगल में गए l अब वे समझ गए कि यह लड़का झूठ बोलता है , इसका विश्वास नहीं करना है l उस लड़के की यह सोच थी कि इतने सारे जानवर हैं भेड़िया उन्ही को मारेगा , उस पर आक्रमण नहीं करेगा l अब की बार सही में भेड़िया आ गया और सब जानवरों को छोड़ वह उसी पर टूट पड़ा l लड़का बहुत चिल्लाया --बचाओ ! बचाओ ! लेकिन अब कोई उसे बचाने नहीं आया l संध्या हो गई , सब जानवर लौट आए , लेकिन वह लड़का नहीं था उनके साथ l मनुष्य के दुर्गुण स्वयं उसी के लिए घातक होते हैं l
3 May 2025
WISDOM -----
महाभारत का जो युद्ध था वह राज परिवार तक ही सीमित था लेकिन कलियुग में दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि अब ये घर -घर की कहानी है ---- महाभारत का ही प्रसंग है --- महाराज पांडू रोगग्रस्त थे , जब उन्हें ऋषि ने श्राप दे दिया तो वे बहुत निराश हो गए और राजपाट धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी दोनों पत्नियों के साथ जंगल में चले गए l कुछ समय बाद श्राप की वजह से महाराज पांडू की मृत्यु हो गई l इस अवधि में दुर्योधन आदि कौरवों को राजसुख का अहंकार हो गया था , वे सोचते थे की हस्तिनापुर केवल उनका है , पितृहीन पांडव दीन -हीन स्थिति में उनके गुलाम और उनकी दया के पात्र बन कर रहे l उन्हें पांडवों का सुख बर्दाश्त नहीं होता था l उस राजसुख पर पांडवों का भी हक था l दुर्योधन की जिद के आगे धृतराष्ट्र मोह में अंधे थे l पितामह के समझाने पर उन्होंने पांडवों को खांडव वन का प्रदेश दे दिया l यह क्षेत्र जंगली और जहरीले जानवरों से भरा हुआ सघन वन था l पांडवों ने अपने श्रम और ईश्वर की कृपा से उस खांडव वन को इन्द्रप्रस्थ में बदल दिया l इन्द्रप्रस्थ का वैभव , कहते हैं उसे विश्वकर्मा ने बनाया था , इसे देखकर तो दुर्योधन जलभुन गया l जिन पांडवों को वह दीन -हीन और अपनी दया पर पलने वाला देखना चाहता था , उनका यह वैभव उससे देखा नहीं जा रहा था l दुर्योधन हस्तिनापुर के विशाल साम्राज्य का युवराज था , संसार के सारे सुख थे उसके पास लेकिन अहंकार और ईर्ष्या ने उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया l वह मामा शकुनि के साथ मिलकर षड्यंत्र रचने लगा कि कैसे पांडवों को इन्द्रप्रस्थ से बाहर निकाल दिया जाए l पांडवों ने अपनी मेहनत से कैसे खांडव वन से इन्द्रप्रस्थ बनाया था , उस पर भी उसका कब्ज़ा हो जाए l ----- आगे पूरी कथा है कैसे चौसर खेलने के लिए युधिष्ठिर को आमंत्रित किया फिर अपमानित और पराजित कर उन्हें तेरह वर्ष के लिए वनवास दिया , इस अन्याय के विरुद्ध महायुद्ध तो होना ही था l यही वर्तमान युग का सबसे बड़ा संकट है l कोई अपने सुख से सुखी नहीं है l दूसरे का सुख देखकर लोग दुःखी है और केवल दु:खी ही नहीं है , वे साम , दाम , दंड , भेद हर तरीके से उसके सुख को , उसके हक को छीनना चाहते हैं l यही हाल राष्ट्रों का है , जिसके पास शक्ति है वह चाहता है सारे संसार में उसका ही साम्राज्य हो , दूसरे राष्ट्रों की कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , मनोरंजन आदि सभी क्षेत्रों और यहाँ तक कि लोगों के मन पर भी उसका कब्जा हो जाये l जब भी और जहाँ भी ऐसी अति होती है तो शिवजी का तीसरा नेत्र खुल जाता है , भगवान का सुदर्शन चक्र क्रियाशील हो जाता है ----- यही महाभारत है l जब मनुष्य के भीतर लालच , स्वार्थ , कामना , अहंकार ---जैसी दुष्प्रवृत्तियों का महाभारत का अंत होगा तभी संसार में शांति होगी l
1 May 2025
WISDOM ----
कहते हैं जो कुछ महाभारत में है वही इस धरती पर है l यदि हम परखना चाहें तो देखेंगे कि महाभारत में जितने भी प्रसंग हैं , बिलकुल वैसा ही इस धरती पर कहीं न कहीं देखने -सुनने को मिलेगा l भीष्म पितामह इतने ज्ञानी थे सब अपनी आँखों से देखते थे कि दुर्योधन पांडवों पर कितने अत्याचार कर रहा है , निरंतर षड्यंत्र रच रहा है लेकिन फिर भी भीष्म पितामह हस्तिनापुर सिंहासन के नाम पर जो भी इस अत्याचार का विरोध करे उसका यानि पांडवों का समर्थन करने के बजाय उन्ही के विरुद्ध सेनापति बन कर लड़ने को तैयार थे l यही स्थिति आज पूरे संसार में है l अत्याचारी अन्यायी के विरुद्ध कोई खड़ा नहीं होता l जो उनका विरोध करते हैं उन्ही को किसी न किसी तरह दण्डित किया जाता है l ऐसी स्थिति होने पर ही सत्य , न्याय और धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान को आना पड़ता है l प्रकृति ही ईश्वर है , वह किस तरह से न्याय करती है इसे समझकर स्वयं में सुधार करना होगा l प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सुधार ले तो सब तरफ सुख -शांति आ जाए l