प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत के उपन्यास सम्राट के रूप में भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी विख्यात हैं । इन्होने साहित्य नहीं लिखा, साहित्य के माध्यम से विश्व-मानव की, दरिद्र और पीड़ित मानव की सेवा की है ।
उनके उपन्यासों में, कहानियों में जो सहज पात्र, जो स्वाभाविक घटनाक्रम, जों आदर्शोन्मुख-यथार्थ और भारतीय जन-जीवन का सजीव चित्रांकन हुआ है वह बहुत कुछ उनकी माता की ही देन था ।
वे पढ़ तो सब लेती थीं लेकिन एक भी अक्षर लिख नही सकती थीं । उनके किस्से-उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते-सुनाते खत्म ही नहीं होतीं और यह क्रम लगभग 15 दिन तक जारी रहता था । वे अपनी लम्बी-लम्बी कहानियों में श्रोताओं को बाँधे रखती थीं और श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । प्रेमचंद जी का लिखने का शौक यहीं से पैदा हुआ । अपनी माँ से प्रेरणा लेकर ही उन्हें आज उपन्यास-सम्राट होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
प्रेमचंद जी सच्चे अर्थों में देशभक्त, समाजसुधारक, मानवतावादी व आदर्शों के प्रतिपादक थे । उन्होंने छुआछूत, स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, बेमेल विवाह, दहेज-प्रथा, गुलामी, सत्याग्रह, असहयोग-आंदोलन, जमींदारों के अत्याचार, किसानों की दरिद्रता आदि तात्कालिक विषयों पर अपनी सशक्त लेखनी चलाई व जन-मानस को झकझोर कर रख देने वाला साहित्य रचा । गई गुजरी स्थिति से ऊपर उठने, पीड़ितों, शोषितों को ऊपर उठाने , देश के लिए कुछ कर गुजरने का आग्रह इनकी रचनाओं में था । परिश्रम और पुरुषार्थ से उपार्जित अपनी योग्यता, प्रतिभा को लोकहित में लगाने तथा तिल-तिल कर जलते हुए जन-जागरण का प्रकाश फैलाने में प्रेमचंद जी ने अपने जीवन का एक-एक क्षण अर्पित किया था ।
उनके उपन्यासों में, कहानियों में जो सहज पात्र, जो स्वाभाविक घटनाक्रम, जों आदर्शोन्मुख-यथार्थ और भारतीय जन-जीवन का सजीव चित्रांकन हुआ है वह बहुत कुछ उनकी माता की ही देन था ।
वे पढ़ तो सब लेती थीं लेकिन एक भी अक्षर लिख नही सकती थीं । उनके किस्से-उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते-सुनाते खत्म ही नहीं होतीं और यह क्रम लगभग 15 दिन तक जारी रहता था । वे अपनी लम्बी-लम्बी कहानियों में श्रोताओं को बाँधे रखती थीं और श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । प्रेमचंद जी का लिखने का शौक यहीं से पैदा हुआ । अपनी माँ से प्रेरणा लेकर ही उन्हें आज उपन्यास-सम्राट होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
प्रेमचंद जी सच्चे अर्थों में देशभक्त, समाजसुधारक, मानवतावादी व आदर्शों के प्रतिपादक थे । उन्होंने छुआछूत, स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, बेमेल विवाह, दहेज-प्रथा, गुलामी, सत्याग्रह, असहयोग-आंदोलन, जमींदारों के अत्याचार, किसानों की दरिद्रता आदि तात्कालिक विषयों पर अपनी सशक्त लेखनी चलाई व जन-मानस को झकझोर कर रख देने वाला साहित्य रचा । गई गुजरी स्थिति से ऊपर उठने, पीड़ितों, शोषितों को ऊपर उठाने , देश के लिए कुछ कर गुजरने का आग्रह इनकी रचनाओं में था । परिश्रम और पुरुषार्थ से उपार्जित अपनी योग्यता, प्रतिभा को लोकहित में लगाने तथा तिल-तिल कर जलते हुए जन-जागरण का प्रकाश फैलाने में प्रेमचंद जी ने अपने जीवन का एक-एक क्षण अर्पित किया था ।
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