श्रीमती बेसेन्ट गरीबों , कष्ट पीड़ितों की सेवा को , उन पर होने वाले अन्यायों का विरोध करने को ही सच्चा धर्म बतलाती थीं और जहाँ तक बन पड़ता था , दीन - हीन मजदूरों तथा अन्य गरीब मनुष्यों की सहायता के लिए प्रचार करती थीं ।
सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने से श्रीमती बेसेन्ट को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । एक बार वे रेलगाड़ी में यात्रा कर रहीं थी , इनको अकेला देखकर एक शराबी डिब्बे में घुस आया । उसने पहले तो खिड़की बंद कर दी फिर हँसता हुआ इनकी और बढ़ा । इस विपत्ति को देखकर वे बहुत घबराईं और कोई उपाय न देखकर अपने पास रखा एक चाकू अपने हाथ में ले लिया । इतने में सिग्नल न होने से रेल खड़ी हो गई और वे उतर कर दूसरे डिब्बे में चलीं गईं ।
उनका कहना था --- दुनियादार मनुष्य सांसारिक वैभव , सम्पति के लिए सब प्रकार के भय और आकांक्षाओं को त्यागकर परिस्थितियों से संघर्ष करने , लड़ने - मरने को तैयार हो जाते हैं , उसी प्रकार सत्य के खोजी को भी उसके लिए हर अवस्था में संघर्ष करने और सब प्रकार के कष्टों , विध्न - बाधाओं को सहन करने को तैयार रहना चाहिए । '
सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने से श्रीमती बेसेन्ट को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । एक बार वे रेलगाड़ी में यात्रा कर रहीं थी , इनको अकेला देखकर एक शराबी डिब्बे में घुस आया । उसने पहले तो खिड़की बंद कर दी फिर हँसता हुआ इनकी और बढ़ा । इस विपत्ति को देखकर वे बहुत घबराईं और कोई उपाय न देखकर अपने पास रखा एक चाकू अपने हाथ में ले लिया । इतने में सिग्नल न होने से रेल खड़ी हो गई और वे उतर कर दूसरे डिब्बे में चलीं गईं ।
उनका कहना था --- दुनियादार मनुष्य सांसारिक वैभव , सम्पति के लिए सब प्रकार के भय और आकांक्षाओं को त्यागकर परिस्थितियों से संघर्ष करने , लड़ने - मरने को तैयार हो जाते हैं , उसी प्रकार सत्य के खोजी को भी उसके लिए हर अवस्था में संघर्ष करने और सब प्रकार के कष्टों , विध्न - बाधाओं को सहन करने को तैयार रहना चाहिए । '
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