आज संसार में इतनी अशांति है उसका एक प्रमुख कारण है --' असंतोष ' l मनुष्य सुख -सुकून पाने की चाह में भटक रहा है , शांति कहीं नहीं है l पौराणिक कथा है ---- कुबेर ने स्वर्ण नगरी लंका का निर्माण किया और उसे भगवान शिव को भेंट करने गया l शिवजी यक्षराज कुबेर से बोले ---- " कुबेर ! मैं कैलास पर समाधिस्थ रहने में ही संतुष्ट हूँ , इस स्वर्ण नगरी का मैं क्या करूँगा ? " तभी रावण वहां पहुंचा और उसने भगवान शिव से प्रार्थना की कि लंका उसे दे दी जाये l भगवान शिव ने सहर्ष सहमति दे दी l इस पर कुबेर बोले --- " भगवान ! रावण तो पहले ही 36 महल लेकर बैठा है , उसे एक और की भला क्या आवश्यकता है ? " प्रत्युत्तर में भगवान शिव बोले ---- " इसे रावण को ही दे दो कुबेर ! जो 36 महलों से ही संतुष्ट नहीं हुआ , उसे 37वां भी संतोष नहीं दे सकेगा l " रावण के पास सब कुछ था लेकिन शक्ति के साथ यदि अहंकार हो तो यह अहंकार विवेक को पनपने नहीं देता l जितनी ज्यादा शक्ति , उतना ही बड़ा अहंकार और इस अहंकार को पुष्ट करने के लिए उतना ही अत्याचार , अन्याय l कलियुग में संवेदनाएं तो कहीं खो गईं हैं , अंधकार की शक्तियां आक्रामक हो गईं हैं , उन्हें अपने अस्तित्व की चिंता है , प्रकाश को रोकने का भरसक प्रयास कर रही हैं l जो जितना शक्तिशाली , वैभव संपन्न है , विवेक के अभाव में उसके अत्याचार और अन्याय का दायरा उतना ही बड़ा है l इससे भी अधिक कष्टदायक बात यह है कि रावण की ' माया ' , आसुरी शक्तियां जो छिपकर वार करती हैं वे प्रबल हो गईं हैं l वास्तव में अपराधी कौन है यह तो अपराध करने वाला और ईश्वर ही जानता है l कर्म का फल तुरंत नहीं मिलता l अपने बनाए कर्म फल विधान के आगे ईश्वर स्वयं भी विवश हैं l संसार में बढ़ती हुई असुरता और संवेदनहीनता को कैसे दूर किया जाए यह एक जटिल प्रश्न है ? हमारे वेद और प्राचीन ग्रन्थों में अनेक मन्त्र हैं , यदि श्रद्धा और विश्वासपूर्वक सम्मिलित रूप से उनका जप किया जाये और इस कलियुग में थोड़ा सा भी अपने आचरण में सुधार कर लिया जाये तो इस असुरता को , नकारात्मकता को पराजित किया जा सकता है l जागरूकता और देवत्व की विजय का संकल्प भी जरुरी है l अध्यात्म में ही असुरता को पराजित करने की ताकत है l
31 January 2025
30 January 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं -----" भगवान पत्र -पुष्पों के बदले नहीं , भावनाओं के बदले प्राप्त किए जाते हैं और वे भावनाएं आवेश , उन्माद या कल्पना जैसी नहीं , वरन सच्चाई की कसौटी पर खरी उतरने वाली होनी चाहिए l उनकी सच्चाई की परीक्षा मनुष्य के त्याग , बलिदान , संयम , सदाचार एवं व्यवहार से होती है l " वर्तमान युग का सबसे बड़ा संकट यही है कि लोग सोचते हैं कि जी भरकर पापकर्म करो , फिर डुबकी लगाओ , नहा -धो के भगवान को पुष्प , फल , मिठाई चढ़ा कर अपने पाप कर्मों को धो डालो , और फिर नए सिरे से अपने मनचाहे मार्ग पर चलो l हमें इस सत्य को समझना चाहिए कि इतनी सरलता से पापकर्मों से मुक्ति मिल गई होती तो संसार में इतना दुःख , लोगों के जीवन में तनाव , बीमारियाँ , आपदा -विपदा नहीं होतीं l जाने -अनजाने कोई भी पाप हो जाये तो उसकी सजा अवश्य मिलती है , दंड से बचना है तो श्रेष्ठ गुरु के संरक्षण में अपने पापों का प्रायश्चित्त करना पड़ता है l गंगा जी मात्र पवित्र नदी ही नहीं हैं , वे जीवन्त है , पितामह भीष्म गंगापुत्र थे l हमें यह समझना चाहिए कोई हमारे सिर पर अपना कचड़ा डाले तो हमें कैसा लगेगा ? हमें बहुत क्रोध आएगा ! गंगा जी , प्रकृति माँ के ऊपर करोड़ों लोग अपना कचड़ा डाल रहे हैं , उनका क्रोधित होना स्वाभाविक है l यह वेद -पुराणों द्वारा निश्चित पवित्र समय उन महान आत्माओं के लिए है जो काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि सांसारिक आकर्षण से विरक्त हैं , उनके स्पर्श से प्रकृति को पोषण मिलता है , संसार का अँधेरा दूर होने लगता है l अमृत सबके लिए नहीं होता l आचार्य श्री लिखते हैं ----" अपनी दुष्प्रवृतियों को नियंत्रित कर लेना ही साधना है और अपने व्यक्तित्व का परिष्कार कर लेना ही सिद्धि है l " हम अपने विकारों को दूर कर ह्रदय को निर्मल बनाए , ऐसे पवित्र ह्रदय में ही ईश्वर आयेंगे , फिर हमें उन्हें ढूँढने कही जाने की जरुरत नहीं होगी l
26 January 2025
WISDOM -----
कबाड़ी की दुकान से खरीदारी कर रहे एक सज्जन को दिशा सूचक यंत्र बहुत पसंद आ गया l उत्तर -दक्षिण दिशा दिखाने वाला यह यंत्र उसने खरीदने का निश्चय किया l पर उन्हें एक बात समझ में नहीं आ रही थी कि इस सुई के पीछे शीशा क्यों लगा है ? दिशा सूचक यंत्र देखकर कोई साज -श्रंगार थोड़े ही करना है l कुछ गुत्थी समझ में नहीं आ रही थी l दुकानदार से पूछ बैठे --- " भाई ! तुम्ही बताओ यह शीशा किस लिए है ? बच्चे पूछ बैठे तो हम क्या जवाब देंगे दुकानदार ने कहा ---- " भाई साहब ! सीधी सी बात है l आप कभी भटक गए तो इस यंत्र से दिशा देंख लें l यह जानना हो कि कौन दिशा भटक गया तो शीशा देख लेना l अपना चेहरा देखकर याद आ जायेगा l
24 January 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " ईश्वर को अनुशासन प्रिय है l जो भी इस अनुशासन को तोड़ेगा , उसे क्षमा नहीं मिल सकती है l दंड अवश्य मिलेगा l यह स्रष्टि नियमों से बंधी है l प्रकृति ईश्वरीय विधान के अनुरूप परिचालित है l नियमों के खिलाफ चलने का तात्पर्य है दंड का भागीदार होना l " आचार्य श्री लिखते हैं --- ' यदि क्षमा का प्रावधान होता तो भगवान राम ने रावण और उसकी आसुरी सेना को क्षमा कर दिया होता l यदि गलती से भी माफी की गई होती तो आज कुम्भकरण , जयद्रथ , शिशुपाल , जरासंध , कंस आदि आततायियों ने धरती को अपने कब्जे में ले लिया होता , पर ऐसा नहीं हुआ , सभी को उनके कुकर्मों का दंड मिला , सभी अत्याचारियों का अंत हुआ l भगवान श्रीराम तो करुणाकर थे , जिनकी करुणा और संवेदना जग जाहिर है लेकिन उन्होंने असुरों को क्षमा नहीं किया l इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों को उनकी उदंडता के लिए क्षमा नहीं किया l अनीति का साथ देना भी अनीति करने जैसा है , इसलिए उन्होंने भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य , कर्ण आदि का अंत करा दिया l इस स्रष्टि में ईश्वरीय विधान सर्वोपरि है l कोई उससे बड़ा नहीं है l जो भी ईश्वरीय विधान को तोड़ता है उसे क्षमा नहीं मिलती l "
23 January 2025
WISDOM ------
ईरान के दार्शनिक शेख सादी से किसी जिज्ञासु ने पूछा ----- " कृपया बताएं पहलवान बड़े होते हैं , या धनी बड़े होते हैं या फिर परोपकारी बड़े होते हैं ? ' शेख सादी ने उत्तर देने से पहले प्रश्नकर्ता से एक प्रश्न पूछा ---- " बताओ हातिम के जमाने में सबसे बड़ा पहलवान या धनी कौन था ? " जिज्ञासु ने याद करने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन दोनों प्रकार के लोगों में से उसे किसी का भी नाम याद नहीं आया l इस पर शेख सादी ने कहा --- " देखो , हातिम के परोपकार बहुत विख्यात हैं और उसकी उदारता सभी को स्मरण है जबकि उस समय पहलवान और धनवान भी अनेकों हुए होंगे , पर किसी के काम न आने के कारण उनका नाम किसी को याद तक नहीं है l " जिज्ञासु का समाधान हो गया l उसने समझ लिया कि बलवान , धनवान नहीं , पुण्यात्मा बड़े होते हैं l
22 January 2025
WISDOM ------
' दु:संग भले ही कितना मधुर एवं सम्मोहक लगे , किन्तु उसका यथार्थ महाविष की भांति संघातक होता है l ' कहते हैं मित्रता सोच -समझकर करनी चाहिए l यदि संगति सही नहीं है तो साथी के मन में गहरे छुपे दुर्गुण उसके सद्गुणों को ढक देते हैं l व्यक्ति अपने ही सद्गुणों और अपने भीतर छिपी ताकत को भूल जाता है और अपने साथी के मन की गहराई में छिपे अंधकार को समझ नहीं पाता l महाभारत के प्रमुख पात्र ' दुर्योधन ' वास्तव में इतना बुरा नहीं था कि अपने ही वंश का विनाश करने के लिए जिम्मेदार कहलाए l महाभारत में अनेक प्रसंग है जो यह बताते हैं कि दुर्योधन अपने वचन को निभाने वाला , बहुत वीर था l भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी से उसने गदा युद्ध सीखा था , वह एक कुशल प्रशासक था , प्रजा उससे प्रसन्न थी , उसमे उच्च कोटि की संगठन क्षमता थी , उस समय के अनेकों शक्तिशाली राजाओं ने युद्ध में उसका साथ दिया l लेकिन दुर्योधन अपने मामा 'शकुनि ' की संगत में बाल्यकाल से ही रहा l शकुनि के मन में कौरव वंश के प्रति अच्छी भावना नहीं थी , उसके मन में इस बात का कष्ट था कि उसकी बहन गांधारी का विवाह दबाव में धृतराष्ट्र से हुआ जो अंधे थे , इसलिए वह निरंतर कुटिल चालें चलता रहा l देखने में लगता था कि वह दुर्योधन का हितैषी है , लेकिन वास्तव में वह कौरव वंश की जड़ें काट रहा था l दुर्योधन तो हस्तिनापुर युवराज था , सारा जीवन अपने पिता के अंधे मोह का फायदा उठकर उसने राजसुख भोगा लेकिन फिर भी पांडवों पर अत्याचार करता रहा l शकुनि जैसे कुटिल व्यक्ति की संगति के कारण दुर्योधन अपने ही सद्गुणों का सदुपयोग न कर सका और कौरव वंश के पतन का जिम्मेदार बना l
21 January 2025
WISDOM
यह संसार गणित से चलता है l सांसारिक मनुष्यों का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित है , जितना दोगे , उतना ही मिलेगा l GIVE AND TAKE है l यही स्वार्थ जब अपने चरम पर पहुँच जाता है , तब स्वार्थी केवल लेता है , बदले में देता कुछ नहीं l यह स्वार्थ जब अहंकार से जुड़ जाता है , तब उसमें बिना बुलाए ही अनेक बुराइयाँ आती हैं , फिर ऐसा व्यक्ति अपनी ही बुराइयों के ढेर पर बैठा रहता है l वह अपनी कमियों को देखना , समझना ही नहीं चाहता , तो फिर वे कमियां दूर कैसे हों ? आज संसार में ऐसे ही लोगों की अधिकता है l आज लोग एक दूसरे से आत्मीयता के कारण नहीं , बल्कि स्वार्थ के कारण जुड़े हैं l इसलिए वे भीड़ में रहकर भी अकेले हैं l उन्हें परस्पर किसी का विश्वास भी नहीं है , कब किसका स्वार्थ टकरा जाए और जिन्दगी मुसीबतों से घिर जाए ? जो संसार की इस रीति -नीति को समझता है वह ईश्वर को ही अपना साथी बना लेता है और सुख -शांति से सुकून के साथ अपनी जिन्दगी जीता है l
WISDOM ----
पुराण की विभिन्न कथाओं में जीवन के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत हैं l श्रद्धा और विश्वास से जब आप उन्हें सुनेंगे -पढ़ेंगे तो आप को संसार में होने वाली विभिन्न घटनाओं का कारण और उनका समाधान समझ में आएगा l पुराण में एक कथा है ---- महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया , अभिमन्यु के पुत्र महाराज परीक्षित अपनी प्रजा की समस्याओं का समाधान करने की भवना से नगर -भ्रमण को निकले , मार्ग में उन्होंने देखा एक व्यक्ति गाय , बैल आदि प्राणियों को बहुत बेदर्दी से मार रहा है l उन्होंने उसे इस दुष्कर्म के लिए दंड देना चाहा तो वह हाथ जोड़ कर बोला ---महाराज मैं कलियुग हूँ , द्वापर युग समाप्त हो गया , अब धरती पर शासक चाहे कोई हो , मेरा ही राज रहेगा l चारों ओर अत्याचार , तबाही , युद्ध , दंगे , निर्दोष प्राणियों की हत्या ----यही सब अत्याचार अब होने का समय आ गया l महाराज परीक्षित बड़े चिंतित हुए , उन्होंने कहा --- ऐसे तो इस धरती पर रहना मुश्किल हो जायेगा , तुम अपने लिए कोई स्थान निश्चित कर लो l तब महाराज परीक्षित ने कलियुग को रहने के लिए पांच स्थान बताए , उनमें से एक था --' स्वर्ण ' अर्थात वर्तमान युग में इसका अर्थ है --अमीरी , सुख वैभव l कथा है कि महाराज परीक्षित ने जब अपपना स्वर्ण मुकुट धारण किया तो कलियुग सबसे पहले उन पर ही चढ़ बैठा जिससे उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उन्होंने ऋषि के गले में सांप डाल दिया फिर उन्हें ऋषि का श्राप मिला ---- ऐसे आगे कथा है l इस कथा को हम इस काल के संदर्भ में देखें तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अति की अमीरी ईमानदारी से नहीं , लोगों का शोषण करने से , बेईमानी और भ्रष्टाचार से ही आती है , इसलिए इसका अहंकार भी बहुत बड़ा होता है l जो जितना बड़ा अमीर है वह चाहेगा सारी दुनिया उसके अनुसार चले , वो जो चाहे वही लोग खाएं , वो जो पिलाना चाहे वही पिएं l खेती , शिक्षा , चिकित्सा , महामारी सब उसकी इच्छा से हो l यहाँ तक कि लोगों के मन पर भी उसका कब्ज़ा हो जाए , वह लोगों को कठपुतली की तरह नचाए ---- इसी में उसका आनंद है l धन में बहुत ताकत है , धनी जैसा चाहता है वैसा होता भी है l कलियुग एक प्रकार का डीमन है , एक पिशाच की तरह है , उसे अपनी खुराक चाहिए , उसकी भूख बहुत है l इसलिए वह धन -शक्ति संपन्न लोगों के भीतर घुस जाता है , उनकी बुद्धि भ्रष्ट कर के तबाही मचाता है
19 January 2025
WISDOM ------
इस धरती पर मानव जीवन में आपदाएं विपदाएं आती रहती हैं l कभी -कभी इनका रूप बहुत विकराल होता है , स्पष्ट रूप से यह समझ में आता है कि प्रकृति बहुत क्रोधित है , किसी तरह उनका क्रोध शांत ही नहीं हो रहा है l मनुष्य अपनी मानसिक विकृतियों के कारण अनेक तरह के पापकर्म करता है लेकिन जब कोई भयंकर पाप समझदार , सभ्रांत और समाज के सभ्य कहे जाने वाले लोगों द्वारा सोच -समझकर , समाज से छिपकर निर्दोष प्राणियों , बच्चों और बेसहारा लोगों पर किया जाता है , उसे प्रकृति सहन नहीं करती l ऐसे पापकर्म में जो भी भागीदार होते हैं , सब जानते हुए चुप रहते हैं , अपनी शक्ति से उन्हें रोकते नहीं बल्कि उन्हें और छूट देते हैं --- ऐसे लोगों को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करतीं l ऐसे प्राकृतिक प्रकोप , महामारी , भूकंप , तूफ़ान में गेहूं के साथ घुन भी पिसता है l जागरूक न होने का भी दंड मिलता है l प्रकृति को शांत कर सुख -शांति से जीवन जीना है तो संसार में मनुष्य को जागरूक होना होगा , देखना होगा कहाँ छोटे -छोटे बच्चों का शोषण , उत्पीड़न हो रहा है , कहाँ मानव शरीर के विभिन्न अंगों का भी बाजार बना है , स्वाद के नाम पर कितने प्राणियों की हत्या हो रही है , कम उम्र के कितने युवाओं को बहला -फुसलाकर नशे की लत लगाईं जा रही है ---ये सब पापकर्म मनुष्य या ---- सिर्फ अपने लाभ के लिए करता है l ऐसे ही पापों की जब अति हो जाती है तब प्रकृति सामूहिक दंड देती है l कितने ही दंड मिल जाएँ मनुष्य सुधरता नहीं है , वह अपनी ही विकृतियों का गुलाम है , उसे इन सबकी आदत बन गई है , इसी का नाम संसार है l भगवान भी अवतार ले लेकर थक गए , कहाँ तक समझाएं , मनुष्य की अक्ल पर परदा पड़ा है l
17 January 2025
WISDOM -----
महाभारत में एक प्रसंग है जिसमें धर्मराज युधिष्ठिर से यक्ष ने कई प्रश्न पूछे , उनमे से एक प्रश्न था ---- इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? ' युधिष्ठिर ने उत्तर दिया --- " सबसे बड़ा आश्चर्य है कि मृत्यु को सुनिश्चित घटना के रूप में देखकर भी मनुष्य इसे अनदेखा करता है l वह मृत्यु की नहीं जीवन की तैयारी कुछ इस अंदाज में करता है , जैसे विश्वास हो कि वह कभी मरेगा ही नहीं l उसे सदा -सदा जीवित रहना है l " यह सत्य है , वैज्ञानिक नित्य नए तरीकों से और आध्यात्मिक कहे जाने वाले लोग भी पूजा -पाठ , मन्त्र , जप -तप आदि के विभिन्न प्रयोगों से निरंतर प्रयासरत हैं , जिससे रोग , बीमारी , बुढ़ापा व मृत्यु से बचा जा सके l बस ! यही वह बिंदु है , जहाँ सब हार गए l ईश्वर से बड़ा कोई नहीं है l अरबों की संपदा , सारी सुख -सुविधाएँ , अनुभवी चिकित्सक , तंत्र -मन्त्र की बड़ी से बड़ी ताकत भी मृत्यु को नहीं रोक सकती l ईश्वर ने जितनी सांसे दी है , सम्पूर्ण पृथ्वी का वैभव लुटाने पर भी एक पल भी अतिरिक्त नहीं मिलता l लेकिन इसके साथ एक सत्य यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति ईश्वर के कार्य के लिए स्वयं को समर्पित कर दे तब ईश्वर उसकी नियति अपने हाथ में ले लेते हैं और ईश्वरीय योजना को पूर्ण करने में उसकी भागीदारी के लिए उसे जीवन देते हैं l जैसे महाभारत में अर्जुन ने स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित किया , तब भगवान स्वयं उनके सारथि बने और भीष्म , द्रोणाचार्य , कर्ण जैसे महारथियों के तीव्र प्रहार से उनकी रक्षा की l इस कलियुग में हम अर्जुन जैसे न भी बन पाएं तो भगवान ने श्रीमद् भगवद्गीता में कहा है --- निष्काम कर्म करो , निष्काम कर्म से तुम अपने लिए सुंदर दुनिया बना सकते हो l ' हमारे ऋषियों , आचार्य ने कहा है --- सत्कर्म का कोई भी मौका हाथ से न जाने दो , सत्कर्म की पूंजी इकट्ठी करो , यह पूंजी ही जीवन में आने वाली विभिन्न विपदाओं से हमारी रक्षा करती है l आचार्य श्री कहते हैं --- मृत्यु के सत्य को स्वीकार कर जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करो l ' मृत्यु की देवी हमें बहुत कुछ सिखाती हैं कि ये अहंकार , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब का भेदभाव व्यर्थ है , केवल मृत्यु ही ऐसी है जो कोई भेदभाव नहीं करती , एक ही तरीका है --- मुट्ठी बांधे आया जग में , हाथ पसारे जाना है l
16 January 2025
WISDOM -----
जापान का एक युवा तीरंदाज स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर मानने लगा था l वह जहाँ भी जाता , लोगों को मुकाबले की चुनौती देता और उस मुकाबले में उनको हराकर उनका खूब मजाक उड़ाता l एक बार उसने एक झेन गुरु बोकोशु को चुनौती दी l गुरु ने चुनौती स्वीकार कर ली l युवक ने स्पर्धा प्रारम्भ होते ही लक्ष्य के बीचोंबीच निशाना लगाया और पहले ही तीर में लक्ष्य भेद दिया l वह झेन गुरु से दंभ पूर्वक बोला ---- " क्या आप इससे बेहतर कर सकते हैं ? " झेन गुरु मुस्कराए और उसे ऐसे स्थान पर ले गए , जहाँ दो पहाड़ियों को जोड़ने के लिए लकड़ी का एक कामचलाऊ पुल बना था l उस पर कदम रखते ही वह चरमराने लगा l बोकोशु ने उसे पुल पर अपने पीछे आने को कहा l बोकोशु ने पुल के बीच पहुंचकर सामने दूर खड़े एक पेड़ के तने पर निशाना लगाया l इसके बाद उन्होंने उस युवक से निशाना लगाने को कहा , परन्तु कई बार के प्रयास के बाद भी वह निशाना न लगा सका l उसे निराशा में डूबा हुआ देखकर झेन गुरु ने कहा --- " वत्स ! तुमने निशाना लगाना तो सीख लिया , पर मन पर नियंत्रण करना नहीं सीखा , जो किसी भी परिस्थिति में शांत रहकर निशाना साध सके l " युवक को बात समझ में आ गई l उसने अब अहंकार छोड़कर मन को साधने का प्रयास आरम्भ किया l
13 January 2025
WISDOM -----
पुराण में अनेक कथाएं हैं l ये कथाएं बहुत संक्षिप्त में हैं लेकिन इनमे प्रत्येक युग के लिए कोई न कोई महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य दिया गया है l गहराई से अध्ययन -मनन करने पर वह समझ में आता है l एक कथा है ---- एक राजा थे --महाराज ययाति l उनके जिंदगी के दिन पूरे हो गए तो यमराज उन्हें लेने पहुंचे l वे यमराज के आगे बहुत रोए और विनती करने लगे कि अभी तो मेरी इच्छाएं पूरी ही नहीं हुईं , मुझे कुछ समय का जीवन और दो ताकि मैं अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा कर सकूँ l यमराज ने उन्हें बहुत समझाया कि ये सुख -भोग की कामनाएं कभी पूर्ण नहीं होतीं लेकिन ययाति तो रोते , गिडगिडाते रहे l यमराज को दया आ गई और उन्होंने कहा --- 'ठीक है , तुम अपने पुत्र से उनकी आयु के कुछ वर्ष मांग लो तो तुम्हे उतने वर्ष मिल जाएंगे और पुत्र की आयु में उतने वर्ष कम हो जाएंगे l ययाति के कई पुत्र थे , सबने अपने पिता को अपनी आयु देने से मना कर दिया , अंत में छोटे पुत्र को दया आ गई उसने अपनी आयु के सौ वर्ष अपने पिता को दे दिए l ययाति का स्वार्थ पूरा हुआ और वे भोग विलास में डूब गए l ऐसी कथा है कि ऐसा दस बार हुआ , हजार वर्षों तक सुख -भोग भोगने के बाद भी वे कभी तृप्त नहीं हुए l ---- इस कथा में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उस युग में लोगों में वीरता थी , वे अपनी कामना -वासना की पूर्ति के लिए समाज से छिपकर कोई कार्य नहीं करते थे , ययाति ने अपनी कमजोरियों को प्रत्यक्ष रूप से सबके सामने रखा और पुत्र से उसकी आयु मांग ली l कलियुग की सबसे बुरी बात यह है कि अब लोग समाज के सामने अच्छे बनते हैं ताकि उनके पीछे छिपी कालिख को कोई देख न सके l विज्ञानं ने इस छिपा -छिपी के खेल को और मजबूती दे दी l अब कोई सामने से आयु नहीं मांगता , अब एनर्जी वैम्पायर हैं l ये एनर्जी वैम्पायर किसी तरीके से या किसी एंटिटी की मदद से किसी की भी एनर्जी को खींच लेते हैं और उससे अपनी कामना -वासना महत्वाकांक्षा और अतृप्त इच्छाओं को पूरा करते हैं और एक अज्ञात तार से किसी अन्य को भी सप्लाई कर देते हैं l जिन्हें दूसरों की एनर्जी पर सुख -भोग का जीवन जीने की आदत पड़ जाती है , यदि किसी कारण से इसमें बाधा आ जाए तब श्रीमद् भगवद्गीता का कथन सत्य है ---- कामना में पूर्ति में बाधा से क्रोध की उत्पत्ति होती है और क्रोध से बुद्धि का विनाश ----- यह विपरीत बुद्धि क्या न कर दे कोई नहीं जानता l ये एनर्जी वैम्पायर मायावी असुर ही हैं जो भूत , प्रेत , पिशाच जैसी नकारात्मक शक्तियों को अपने वश में रखकर उनसे आसुरी कार्य कराते हैं और हा --हा कर के हँसते हैं l
12 January 2025
WISDOM ----
युद्ध , लड़ाई -झगड़े , उन्माद , प्राकृतिक आपदाएं --- भूकंप , तूफ़ान , बाढ़ , सुनामी , आग, दुर्घटनाएं ----- यह सब आदिकाल से ही चली आ रही हैं , यह सब कोई नई बात नहीं है l कितनी ही सभ्यताएं इन्हीं कारणों से काल के गर्त में समां गईं l अब जब वे खुदाई में मिलती हैं तब गणना होने पर समझ में आता है कि वे कितने हजारों वर्ष पुरानी थीं l इन आपदाओं से जो बच जाते हैं वे अपनी बुद्धि और ज्ञान से केवल ऊपरी सतह पर इनके कारण और इनसे सुरक्षा के उपाय खोजते हैं , वे इनकी गहराई में नहीं जाते कि इनका वास्तविक कारण क्या है ? और कैसे इस पृथ्वी पर सुख -चैन से जिया जा सकता है ? मनुष्य ने अपनी चेतना के द्वार को बंद कर लिया है और काम , क्रोध , लोभ , मोह , महत्वाकांक्षा , स्वार्थ , अहंकार ----- के जाल में फँसकर , इनमें लिप्त होकर स्वयं को ही भूल गया है l ईश्वर ने कई बार अवतार लेकर , अपनी विभिन्न लीलाओं से मनुष्य को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सांसारिक आकर्षण इतना तीव्र है कि मनुष्य ने इसे अनदेखा कर दिया l स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका उनके वंशजों की गलतियों के कारण समुद्र में डूब गई l ईश्वर ने इस स्रष्टि की रचना की l यह धरती ईश्वर को सबसे ज्यादा प्रिय है l वे चाहते हैं कि मनुष्य इस पृथ्वी को और सुंदर बनाए l समस्या ये है कि ईश्वर स्वयं प्रत्यक्ष रूप से बात नहीं करते , वे संकेतों में समझाते हैं और संसार के विभिन्न धर्म के पवित्र ग्रंथों में यह स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य को सुख -शांति से जीने के लिए कैसा आचरण करना चाहिए l लेकिन रावण से लेकर अब तक मनुष्य ने इसे समझा ही नहीं l इसलिए रावण की लंका जल गई , कौरव वंश का अंत हो गया , भीषण युद्धों में खून की नदियाँ बह गईं l ईश्वर सब कुछ सहन करते हैं लेकिन मनुष्य के अहंकार को सहन नहीं करते l लोग कहते हैं ईश्वर कहाँ है ? हमने देखा नहीं ! यह प्रकृति माँ , आकाश पिता , सबको प्राण ऊर्जा देने वाले सूर्य भगवान ही तो प्रत्यक्ष देवता हैं जो हर पल हमारे सामने हैं , हमें दर्शन देते हैं l लेकिन जब मनुष्य इनके उपेक्षा कर स्वयं को भगवान समझता है l अपने अहंकार में लोगों पर अत्याचार करता है l अपनी शक्ति , पद , धन , वैभव , सौन्दर्य , रंग , धर्म , जाति , ऊँच -नीच आदि विभिन्न कारणों से अपने अहंकार में आकर लोगों को प्रताड़ित करता है , निर्दोष के प्राण लेता है , लोगों के जीवन को नरकतुल्य बना देता है ---- तब ऐसे उत्पीड़ित लोगों की आहें इस वायुमंडल में रहती हैं l इतिहास के पन्ने पलटें तो देखें कितने भयंकर युद्ध हुए , कभी रंग के आधार पर , कभी धर्म के आधार पर कभी बिना कारण ही महिलाओं और बच्चों और गर्भस्थ शिशु पर अत्याचार किए , उन सबकी आहें इस वायुमंडल में हैं , वे अतृप्त आत्माएं आज भी अपनी मुक्ति के लिए भटक रहीं हैं l इन्हें मुक्त करने के लिए प्रयास करना तो बहुत दूर की बात है , मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि लगभग सारे संसार में ही लोग तंत्र जैसे विभिन्न तरीकों से इन आत्माओं को अपने नियंत्रण में कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं l एक तो वायुमंडल में व्याप्त ये आहें और इसके साथ मनुष्य का यह स्वार्थ यह सब मिलकर ही अनहोनी घटनाओं को जन्म देते हैं , प्राकृतिक आपदाएं आती है l ईश्वर चाहते हैं मनुष्य इनसान बने , किसी को सताओ नहीं , बद्दुआ न लो l एक बार इनसान बनों और देखो कि दुआओं में कितनी ताकत है l प्रकृति से प्रेम करो l कितने भी ताकतवर हो जाओ , ईश्वर से बड़ा कोई नहीं l यह अहंकार ही सब के पतन का कारण है l
11 January 2025
WISDOM -----
सभी प्राणियों में ईश्वर ने मनुष्य को सबसे ज्यादा बुद्धिमान बनाया l अपनी बुद्धि के बल पर मनुष्य ने धन -दौलत , शक्ति -संपदा सब एकत्र कर ली और स्वयं को भगवान समझ बैठा जैसे सबके भाग्य का फैसला करना उसी के हाथ में है l यह अहंकार ही मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है l प्रकृति समय =समय पर अपना तांडव दिखाती है , मनुष्य के सचेत करती है लेकिन मनुष्य सुधरता ही नहीं है l इसका कारण यही है कि मनुष्य के पास बुद्धि तो है लेकिन विवेक नहीं है l विवेक न होने से ही वह अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करता है l विवेक कही बाजार में , संस्था में नहीं मिलता , यह तो ईश्वरीय कृपा से ही मिलता है l जब कोई मनुष्य सन्मार्ग पर चलता , सत्कर्म करता है और ऐसा करने के साथ गायत्री मन्त्र का जप करता है तब ईश्वर की कृपा से उसे विवेक का वरदान मिलता है l आज सारे संसार को गायत्री मन्त्र को जपने की जरुरत है l विवेक न होने के कारण ही मनुष्य वे सब कार्य करता है जो स्वयं उसके लिए और मानवता के लिए घातक है l
9 January 2025
WISDOM -----
मनुष्य के जीवन में अनेक समस्याएं निरंतर ही उसे घेरे रहती हैं l धन -वैभव , सुख -सुविधा के साधनों से सभी समस्याएं हल नहीं होतीं , टेंशन बना ही रहता है l इस तनाव का सबसे बड़ा कारण यह है ---- दिखावे की जिंदगी l वह जैसा है वैसा दिखना और दिखाना नहीं चाहता < अपनी असलियत को समाज से छुपाना चाहता है l यह समस्या गरीब वर्ग की नहीं है l यह समस्या है मध्यम और अमीर वर्ग की l यदि जीवन खुली किताब की तरह हो तो कहीं कोई तनाव नहीं होगा लेकिन इस युग में लोगों के स्वयं को बहुत अच्छा , श्रेष्ठ गुण संपन्न , सबका भला चाहने वाला , सब की मदद करने वाला संभ्रांत व्यक्ति होने की होड़ लगी है l मनुष्य होने के नाते काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या ,द्वेष , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा सभी में थोड़ी -बहुत होती है लेकिन जिसमें इनमे से कोई भी भाव अधिक है वह उनसे जुड़ी हुई गलतियाँ भी करता है , बड़े अपराध भी करता है और फिर समाज में स्वयं को शरीफ दिखाने के लिए मुखौटा लगाए रहता है ताकि कोई उसकी असलियत न जान पाए l उसका सबसे बड़ा तनाव इस मुखौटे के उतरने का है l इस मुखौटे को बचाए रखने के लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़ते है , यह उसके तनाव का सबसे बड़ा कारण है , इसका इलाज डॉक्टर के पास भी नहीं है l ऋषि चिन्तन यही है कि जैसे हो वैसे ही दिखो , , जो उपदेश देते हो वैसा ही स्वयं का आचरण हो , यदि गलती हो गई है तो उसे स्वीकार करो , स्वयं को सुधारने का संकल्प लो l अपने अहंकार के कारण व्यक्ति स्वयं ही अपने जीवन को तनावग्रस्त बना लेता है और बीमारियों को आमंत्रित करता है l
8 January 2025
WISDOM -----
यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि मनुष्य जिस व्यक्ति या वस्तु पर बहुत अधिक निर्भर रहता है , वह व्यक्ति या वस्तु धीरे -धीरे उसे अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और वह व्यक्ति उनका गुलाम बन जाता है l जैसे वैज्ञानिक आविष्कार मनुष्य की सुख -सुविधा के लिए थे लेकिन धीरे -धीरे लोगों को उनकी आदत बन गई और अब वह उनके बिना एक कदम भी नहीं चल सकता , इसका अर्थ है कि अब वह मशीनों का गुलाम बन गया l इसी तरह जब से धन को मानवीय मूल्यों से अधिक महत्त्व दिया जाने लगा तो धन -वैभव संपन्न वर्ग विभिन्न देशों में सरकार के निर्णयों को भी प्रभावित करने लगा है l इस युग का जो सबसे बड़ा संकट है वह यह है कि अब मनुष्य अपने टेलेंट को दिखाने के लिए , अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए और अपने वर्चस्व के लिए प्रकृति में विचरण करने वाली नकारात्मक शक्तियों की मदद लेने लगा है l भूत-प्रेत --एंटिटी ---- आदि को विभिन्न तरीकों से अपने नियंत्रण कर मनमाना काम करते हैं l यहाँ तक कि इन नकारात्मक शक्तियों की मदद से वे किसी के भी माइंड को कंट्रोल कर उसे अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए विवश कर देते हैं l यह सब पहले भी होता था , रावण ,मारीच , महिषासुर , घटोत्कच आदि बड़े -बड़े असुर अपना भेस बदलने में और मायावी विद्या में निपुण थे और इसके बल पर वे मनमानी करते थे l आज के युग में व्यक्ति शार्टकट से जीवन में सब कुछ हासिल करने के लिए इन मायावी विद्या का प्रयोग करता है l ऐसे कार्य करने वालों का क्षेत्र व्यापक ही होता जा रहा है l इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि विज्ञानं और धन की तरह ये नकारात्मक शक्तियां भी एक दिन मनुष्य पर हावी होकर उसे अपना गुलाम बना लेंगी और तब मनुष्य केवल शरीर से मनुष्य होगा , वह भीतर से खोखला और इन नकारात्मक शक्तियों से संचालित होगा l जैसे -जैसे इन नकारात्मक शक्तियों का प्रयोग बढ़ता जायेगा संसार में आतंक , युद्ध , हत्याकांड , आत्महत्याएं , प्राकृतिक प्रकोप , दुर्घटनाएं बढती जाएँगी क्योंकि इन्हें अपनी खुराक चाहिए l संसार को जागरूक होने की जरुरत है क्योंकि भूत -प्रेत आदि नेगेटिव एनर्जी के साथ काम करने वाले अंत में इन्ही के मेहमान बन जाते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भुतहा संसार छोड़कर जाते हैं l
7 January 2025
WISDOM -------
एक दिन देवलोक से विशेष विज्ञप्ति निकाली गई ---- " अमुक दिन सभी चित्रगुप्त से अपनी असुंदर वस्तुओं के बदले सुंदर वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं l शर्त यही है कि वह विधाता की सत्ता में विश्वास रखता हो l " निश्चित तिथि पर तीनों लोकों के निवासी अपनी -अपनी असुंदर वस्तुएं लेकर देवलोक पहुँच गए l विधाता ने दिव्य द्रष्टि से देखा कि सब आए या नहीं l उनने देखा कि सब तो आ गए , केवल पृथ्वी लोक पर एक मनुष्य अपने आनंद में है l विधाता ने पूछा ---- " भाई ! तुम चित्रगुप्त के पास अपनी असुंदर वस्तुएं परिवर्तित करने क्यों नहीं गए ? " वह व्यक्ति बोला ---- " भगवान की बनाई इस स्रष्टि के कण -कण में वही तो व्याप्त है , फिर जबकि प्रत्येक कण में वही है , तो कहीं भी असुन्दरता कैसे हो सकती है ? मुझे तो इस स्रष्टि का कण -कण सुंदर दिखाई पड़ता है l " विधाता मुस्कराए और चित्रगुप्त से बोले ---- " वस्तुतः यही वह व्यक्ति जो विधाता की सत्ता में विश्वास रखता है l जो स्रष्टि को इसके समग्र रूप में स्वीकार करता है , उसके लिए सौन्दर्य और कुरूपता का भेद नहीं रह जाता l " विधाता की कृपा भी उसी मनुष्य को प्राप्त हुई है l
6 January 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " झूठ और बेईमानी के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के मन में ग्लानि , भय , चिंता भरी हुई होती है , जिससे वह मानसिक बीमारियों का शिकार हो अस्वस्थ रहने लगता है l वह शारीरिक -मानसिक विकारों का शिकार होता है l उसका मनोबल आत्मबल कमजोर होता है , जिससे उसे हर काम में असफलता मिलती है l उसे पल -पल अपने झूठ और बेईमानी के पकड़े जाने का भय सताता रहता है l इसलिए वह झूठ और बेईमानी से प्राप्त सुख के साधनों के होते हुए भी अंदर से दुःखी ही रहता है जबकि सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति आत्मग्लानि और भय से मुक्त हमेशा हर्षित , प्रसन्नचित और आशावादी बना रहता है l इसके परिणामस्वरूप वह जीवन में सर्वत्र सफल होता है l "
5 January 2025
WISDOM -----
धर्म के नाम पर संसार में कितना लड़ाई झगड़ा है l थोडा बहुत झगड़ा तो ठीक है लेकिन बड़े स्तर पर झगड़ें करने से पहले सच्चा धर्म क्या है ? यह जानना बहुत जरुरी है l एक कथा है ----- एक राजा के तीन पुत्र थे l राजा हर तरह से परख कर ही अपने उत्तराधिकारी का चयन करना चाहता था l इसलिए एक दिन राजा ने उन्हें बुलाकर कहा --- "जाओ , किसी धर्मात्मा को खोजकर लाओ l " तीनों राजकुमार धर्मात्मा की खोज में निकल पड़े l कुछ दिनों बाद एक पुत्र , एक सेठ को लेकर राजा के पास पहुंचा और बोला --- : पिताजी ! इन सेठ जी ने अनेकों धर्मशालाएं व मंदिर बनाए हैं l " राजा ने सेठ से ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा ---" मैंने सुना है ऐसा करने से पुण्य मिलता है और हमारा नाम भी चलता रहता है l " राजा ने उनका सम्मान किया और आदर सहित विदा किया l दूसरा राजकुमार एक ब्राह्मण को लेकर लौटा और राजा से उनका परिचय देते हुए बोला --- " यह बहुत ज्ञानी और तपस्वी हैं l " राजा ने उनसे धर्म की परिभाषा पूछी तो उन्होंने कहा ---- " शास्त्र के अनुसार सब कर्मकांड करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है , उसका पालन करना ही धर्म है l " राजा ने उन्हें भी दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक विदा किया l तीसरा राजकुमार एक गरीब से व्यक्ति को लेकर पहुंचा l राजा के पूछने पर वह बोला --- " पिताजी ! यह व्यक्ति एक घायल गाय की सेवा कई दिनों से कर रहा था l मुझे लगा कि इस व्यक्ति के अन्दर सही धर्मात्मा होने का भाव है l " राजा ने उससे पूछा --- " तुम कोई धर्म का काम करते हो ? " वह आदमी बोला -महाराज ! मैं एक गरीब किसान हूँ , अनपढ़ हूँ , धर्म , कर्म कुछ जानता नहीं हूँ l यदि कोई जरूरतमंद , रोगी , दुःखी , अभावग्रस्त दीख पड़ता है तो यथाशक्ति उसकी मदद अवश्य करता हनल " यह सुनकर राजा ने उस तीसरे पुत्र से कहा --- " कुछ पाने की आशा किए बिना सचे ह्रदय से दूसरों की सेवा करना ही धर्म है l तुम ही सच्चे धर्मात्मा को लेकर लौटे हो l तुम्हे मनुष्यों की पहचान है , इसलिए तुम्हे ही राजगद्दी का उत्तराधिकारी नियुक्त किया जाता है l "
WISDOM -----
एक व्यक्ति ने सुन रखा था कि तप करने से अहंकार मिट जाता है l क्रोध चला जाता है l वह घर छोड़ के हिमालय चल दिया l जंगलों के पार बर्फीली गुफाओं में बैठकर साधना करने लगा l उसे ऐसा करते बीस वर्ष बीत गए , वह अकेला ही रहता था l उसे अहंकार व क्रोध का मौका ही नहीं मिलता था l उसने सोचा ---चलो अहंकार से छुटकारा मिला l अब वापस लौट चलना चाहिए l वह गुफा से निकलकर नीचे आया , जब लोगों को पता चला कि वह बीस वेश तक हिमालय की गुफाओं में तप का के आया है , तो भीड़ इकट्ठी होने लगी l उसके दर्शनों के लिए लोग आते , पैर छूते , परिक्रमा करते l महात्मा के मन में ऐसा सम्मान पाकर गुदगुदी होती l एक दिन भक्तों ने कहा --- चलें कुम्भ स्नान कर के आएं l महात्मा चल पड़े l मेला -ठेला की भीड़ में उनके पैर पर जमकर किसी का भूलवश पैर पड़ गया l महात्मा तिलमिला गए और उछलकर उस व्यक्ति की गर्दन पकड़ ली और बोले ---- " जानता नहीं दुष्ट , मैं कौन हूँ ? " महात्मा के अंदर छुपा अहंकार और क्रोध भी उछलकर ऊपर आया l लोग हैरान हो गए कि ये कैसा महात्मा है ? कोई जानबूझकर पैर तो नहीं रखा है , जो इतना आगबबूला हो गया l ऋषि कहते हैं ---- यदि व्यक्ति अपने पर ही नियंत्रण न कर पाए तो उसकी एकांत साधना , तप तितिक्षा सब व्यर्थ है l सच्ची साधना जंगल में नहीं संसार में रहकर होती है , जहाँ मन को विचलित करने के अनेक साधन हैं , उनके बीच रहकर मन को नियंत्रित कर शांति से रहना ही तप है l और मन भी स्वाभाविक रूप से नियंत्रित होना चाहिए , उसे बलपूर्वक नियंत्रित करने के दुष्परिणाम हो सकते हैं l
3 January 2025
WISDOM -----
सुख -शांति से और तनावरहित जीवन जीने का एक महत्वपूर्ण सूत्र हमारे धर्मग्रंथों में और पुराण की विभिन्न कथाओं के माध्यम से हमें समझाया गया है l---- तनावरहित जीवन जीने के लिए हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारा वर्तमान जीवन केवल यह एक ही जीवन नहीं है बल्कि युगों से चली आ रही हमारी यात्रा का एक पड़ाव है l इस वर्तमान जीवन में हमें जो भी सुख -दुःख , मान -अपमान , हानि -लाभ मिल रहा है वह हमारे ही कर्मों का परिणाम है l कभी -कभी ऐसा भी होता है कि हम किसी का अहित नहीं कर रहे , सन्मार्ग पर चल रहे हैं फिर भी हमें जीवन में बड़े दुःख , अपमान , तिरस्कार , धोखा , छल -कपट , मानसिक उत्पीड़न सहन करना पड़ता है l इस सत्य को स्वीकार करने से आत्मा में वह शक्ति आ जाती है जिससे हम बड़े धैर्य के साथ अपना कर्तव्यपालन करते हुए और सत्कर्म करते हुए अपने कर्मों के भार को काटते हैं l मन में यह अटूट विश्वास होता है कि वर्तमान के सत्कर्म जन्म -जन्मान्तर के कर्म भार को कम कर देंगे और फिर जीवन में सुनहरा सूर्योदय अवश्य होगा l जो पुनर्जन्म और इस यात्रा में विश्वास नहीं रखते उनके लिए भी यह तर्क अपने तनाव को कम करने के लिए अच्छा है क्योंकि दवाई और इंजेक्शन से तनाव को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता , मन को समझाना जरुरी है l दूसरा पक्ष जो अत्याचार करता है , लोगों को उत्पीड़ित करते हैं , उन्हें भी यह समझना चाहिए कि वे भगवान नहीं हैं जो किसी को उसके किसी जन्म में किए गए कर्मों का फल दे रहे हैं l यही व्यवहार जब उनके साथ दोहराया जाए तो उन्हें कैसा लगेगा l मनुष्य केवल कर्म कर सकता , उन अच्छे या बुरे कर्मों का फल हमारी जीवन यात्रा के किस पड़ाव पर , किसके माध्यम से और किस प्रकार मिलेगा यह काल निश्चित करता है l मनुष्य के हाथ में उसका वर्तमान है , सत्कर्म करते हुए सन्मार्ग पर चलकर सुन्दर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है l
WISDOM ------
स्वामी रामतीर्थ अमेरिका पहुंचे l कस्टम पर मौजूद अधिकारी ने उनसे उनके व्यवसाय के बारे में पूछा l रामतीर्थ हँसे और बोले ---- " मैं बादशाह हूँ और ये सारी दुनिया मेरी सल्तनत है l " अधिकारी चकित हुआ और बोला ---" आपके पास निज संपत्ति के रूप में सिर्फ दो लंगोटियां हैं तो आप अपने आपको बादशाह कैसे बोल सकते हैं l " रामतीर्थ बोले ----- " अरे मित्र ! मैं बादशाह इसलिए नहीं हूँ कि मेरे पास अपार दौलत है या मुझे उसकी चाह है l मैं बादशाह इसलिए हूँ कि न मुझे किसी चीज की चाह है और न ही उसकी आवश्यकता l भगवान ने मुझे जैसा बनाया है , मैं उसमे पूरी तरह संतुष्ट हूँ l " इस प्रसंग से यही शिक्षा मिलती है कि हम सर्वप्रथम स्वयं से प्रेम करना सीखें l ईश्वर ने हमें जो कुछ दिया , हमें जैसा भी बनाया उसमे संतुष्ट रहकर निरंतर सत्कर्म और कर्तव्यपालन करते हुए अपने जीवन को और सुन्दर बनाने का प्रयास करें l
2 January 2025
WISDOM -----
लोगों के जीवन में तनाव और अशांति का एक बड़ा कारण यह है कि वे अपनी उपलब्धियों को देखने के बजाय दूसरों के जीवन में झांकते रहते हैं l दूसरों के पास जो कुछ है वह उन्हें क्यों मिला , कैसे मिला , यह उन्हें नहीं मिलना चाहिए l कोई खुश क्यों है ? यही ईर्ष्या का भाव लोगों के तनाव का बड़ा कारण है l इस ईर्ष्या के भाव में वे हर पल जलते रहते हैं और अपनी सारी ऊर्जा स्वयं को आगे बढ़ाने में न लगाकर दूसरों को नीचे गिराने में लगाते हैं l यदि मनुष्य ' जियो और जीने दो ' की भावना रखे और दूसरों की ख़ुशी में खुश होना सीख ले तो अधिकांश समस्याएं हल हो जाएँ l
1 January 2025
WISDOM ----
' जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय , बाल न बांका करि सके जो जग बैरी होय l ' यह भी एक आश्चर्य है कि जो इस संसार में निश्चित है , मनुष्य उसी से डरता है l ' जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है , फिर भी सब मृत्यु से ही डरते हैं l यह डर भी दूर हो सकता है यदि मनुष्य सत्कर्म करे , ईश्वर की सत्ता में विश्वास करे l प्रत्येक प्राणी को ईश्वर ने गिनती की साँसे दी हैं जिन्हें कोई भी छीन नहीं सकता l मृत्यु के देवता कभी भी जाति , धर्म , ऊँच -नीच , छोटे -बड़े , अमीर -गरीब का कोई भेदभाव नहीं करते l सब एक ही तरीके से खाली हाथ जाते हैं l इस व्यवस्था से ईश्वर संसार को यह समझाना चाहते हैं कि ऐसे बिना वजह के भेदभावों में , लड़ाई -झगड़ों में अपने अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ में न गंवाओं l ऐसे लड़ाई -झगडे , दंगों में मरने और मारने वालों की कभी मुक्ति नहीं होती , अकाल मृत्यु , बीमारी , महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है l मुक्त न होने के कारण भूत -प्रेत , पिशाच जैसी नकारात्मक शक्तियों की संख्या बढ़ जाती है l ये नकारात्मक शक्तियां अपनी भूख मिटाने के लिए लोगों के मन पर हावी होकर ऐसे ही युद्ध , हत्या आदि अमानवीय कार्यों को जन्म देती हैं l इतिहास में इसके अनेक उदाहरण भी हैं l फिर आज के इस वैज्ञानिक युग में मनुष्य की बुद्धि का और बुद्धि के साथ स्वार्थ का इतना अधिक विस्तार हो गया है कि रावण , मारीच , घटोत्कच जैसे असुरों की ' माया ' अब वैज्ञानिक तरीकों से संसार को त्रस्त कर रही है l मनुष्यों में दूसरों को अपना गुलाम बनाने की प्रवृत्ति होती है , अब वे इन नकारात्मक शक्तियों को कंट्रोल कर अपना गुलाम बनाकर उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध कराते हैं l इन सबसे पूरा वातावरण प्रदूषित हो गया है l इसलिए हमारे ऋषियों ने , आचार्य ने कहा है कि गायत्री मन्त्र और महामृत्युंजय मन्त्र से प्रकृति को पोषण मिलता है , वातावरण शुद्ध होता है l कलियुग में मानवता की रक्षा के लिए इनका जप जरुरी है l