देश को आजाद कराने के लिए त्रलोक्यनाथ चक्रवर्ती ( जन्म 1888 ) ने अपनी जिन्दगी के बेहरतीन तीस वर्ष जेल की काल कोठरियों में बिताये l उनका संघर्षशील व्यक्तित्व अन्याय , अनीति से जीवनपर्यन्त जूझने की अनूठी कहानी है l जो प्रेरक है और रोमांचक भी l
1916 में उन्हें अंडमान की काल - कोठरियों में नारकीय यंत्रणा सहने के लिए भेज दिया गया l वे इसे सजा नहीं तपस्या मानते थे और यह विश्वास करते थे कि उनकी इस तपस्या के परिणाम स्वरुप भारतवर्ष को स्वतंत्रता मिलेगी l वीर सावरकर और गुरुमुख सिंह जैसे क्रान्तिकारी उनके साथ रहे थे l इन लोगों ने वहां संगठन शक्ति के बल पर रचनात्मक कार्य किया l
वीर सावरकर के सहयोगी के रूप में उन्होंने जेल में ही हिन्दी भाषा के प्रचार का कार्य अपनाया l सावरकर से हिन्दी सीखने वाले वे पहले व्यक्ति थे l परतंत्र भारत में भी वह स्वतंत्र भारत की बातें सोचा करते थे l उन्हें विश्वास था कि अब देश स्वतंत्र हो जायेगा ---- इस विशाल देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक भाषा का होना बहुत आवश्यक है l यह भाषा हिन्दी ही हो सकती है l अत: इस भाषा के प्रचार का कार्य उन्होंने सावरकर के साथ वहीँ काले पानी की जेल में ही आरम्भ कर दिया था l उनके सम्मिलित प्रयास से २00 से भी अधिक कैदियों ने वहां हिंदी सीखी l चाहें जेल की दीवारें हों या काले पानी की कोठरियां , वहां भी मनस्वी और कर्म निष्ठ चुप नहीं बैठते l
1934 में वे जेल से फरार हो गए l जब देश आजाद हुआ तो उनकी जन्म भूमि पूर्वी पाकिस्तान के क्षेत्र में आई वहां अल्प संख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार होते थे , ऐसी स्थिति में उन्होंने वहीँ रहकर अपने अल्प संख्यक भाइयों के हितों की रक्षा के लिए अन्याय से संघर्ष करना ही अपना लक्ष्य बनाया l
पाकिस्तान सरकार ने उन्हें वर्षों तक नजरबन्द बनाये रखा l 1970 में वे तीन महीने के लिए भारत आये और 1 अगस्त 1970 को उनका देहावसान हो गया l उसके दो वर्ष बाद उस धरती से पाकिस्तान का नाम ही उठ गया l
1916 में उन्हें अंडमान की काल - कोठरियों में नारकीय यंत्रणा सहने के लिए भेज दिया गया l वे इसे सजा नहीं तपस्या मानते थे और यह विश्वास करते थे कि उनकी इस तपस्या के परिणाम स्वरुप भारतवर्ष को स्वतंत्रता मिलेगी l वीर सावरकर और गुरुमुख सिंह जैसे क्रान्तिकारी उनके साथ रहे थे l इन लोगों ने वहां संगठन शक्ति के बल पर रचनात्मक कार्य किया l
वीर सावरकर के सहयोगी के रूप में उन्होंने जेल में ही हिन्दी भाषा के प्रचार का कार्य अपनाया l सावरकर से हिन्दी सीखने वाले वे पहले व्यक्ति थे l परतंत्र भारत में भी वह स्वतंत्र भारत की बातें सोचा करते थे l उन्हें विश्वास था कि अब देश स्वतंत्र हो जायेगा ---- इस विशाल देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक भाषा का होना बहुत आवश्यक है l यह भाषा हिन्दी ही हो सकती है l अत: इस भाषा के प्रचार का कार्य उन्होंने सावरकर के साथ वहीँ काले पानी की जेल में ही आरम्भ कर दिया था l उनके सम्मिलित प्रयास से २00 से भी अधिक कैदियों ने वहां हिंदी सीखी l चाहें जेल की दीवारें हों या काले पानी की कोठरियां , वहां भी मनस्वी और कर्म निष्ठ चुप नहीं बैठते l
1934 में वे जेल से फरार हो गए l जब देश आजाद हुआ तो उनकी जन्म भूमि पूर्वी पाकिस्तान के क्षेत्र में आई वहां अल्प संख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार होते थे , ऐसी स्थिति में उन्होंने वहीँ रहकर अपने अल्प संख्यक भाइयों के हितों की रक्षा के लिए अन्याय से संघर्ष करना ही अपना लक्ष्य बनाया l
पाकिस्तान सरकार ने उन्हें वर्षों तक नजरबन्द बनाये रखा l 1970 में वे तीन महीने के लिए भारत आये और 1 अगस्त 1970 को उनका देहावसान हो गया l उसके दो वर्ष बाद उस धरती से पाकिस्तान का नाम ही उठ गया l
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