27 February 2025

WISDOM -----

    जाति  प्रथा  केवल  हमारे  देश  में  ही  नहीं  है  ,  संसार  के  विभिन्न  देशों  में , विभिन्न  धर्मों  में   भेदभाव  अवश्य  है   l  इसे  कुछ  भी  नाम  दे  दिया  जाये  ,  इससे  कोई  फर्क  नहीं  पड़ता  क्योंकि  इनमें  एक  वर्ग  पीड़ित  है  और  दूसरा  उसे   भिन्न -भिन्न  तरीकों  से  सताने  वाला   l  जाति  के  नाम  पर  लोग  इतना  लाभ  कमाते  हैं  कि  धर्म  भी  उसके  आगे  फीका  पड़  जाता  है  l  एक  लोक  कथा  है  ---- एक  सेठ  था  l  अपार  संपदा  थी  उसके  पास  l  जितनी  संपदा  थी  , उससे  कई  गुना  उसे  लालच  था  l  बहुमूल्य  संपदा  को  वह  मटकों  में  भरकर  जमीन  में  गाड़  कर  रखता  था  l   इतनी  संपत्ति  एकत्रित  करने  के  लिए  वह  स्वांग  रचता  था  l  उसकी  हुकूमत  आसपास  के  आठ -दस  गांवों  तक  थी  l  उसने  गुप्त  रूप  से  अपनी  एक  सेना  बना  रखी  थी  जिसमें  कुछ  युवक , कुछ  वृद्ध   पुरुष   और   कुछ  वृद्ध  महिलाएं  भी  थी  l  ये  लोग  क्या  करते  हैं ,  उस  सेठ  की  ऐसी  कोई  सेना  है  ,  इस  बात  को  कोई  नहीं  जानता  था  l  वह  सेठ  इन  गाँवों  में    अक्सर  कोई  न  कोई  उत्सव  , प्रवचन ,  गाँव  के  लोगों  की  कलाकारी  से  संबंधित  तमाशा  कराता  रहता  था  l  जब  ये  कार्यक्रम   निश्चित  होते  तब  सेठ  के  ये  सैनिक  जो  गाँव  के  ही  विभिन्न  परिवारों  के  थे  ,  उनके  और  अधिक  हमदर्द  बनकर   लोगों  के  पास  जाते   और  कभी  प्यार  से  कभी  धमकी  देकर  लोगों  को  समझाते  कि  सेठ  जो  भी  करा  रहा  है  , उसमे  तुम्हे  जाना  है ,  गाँव  के  कल्याण  के  लिए  निश्चित  राशि  जमा  करनी  है   अन्यथा  तुम्हे  जाति  से  बहिष्कृत  कर  दिया  जायेगा , तुम्हारा  हुक्का -पानी  बंद  कर  दिया  जायेगा  l  गाँव  के  सीधे -सरल  लोग  , मरता  क्या  न  करता   अपना  पेट  तन  काटकर   इस  'आदेश ' को  मानते  l  उन्हें  भय  था  कि  जाति  से  बहिष्कृत  हो  गए  तो  अकेले  कैसे  रहेंगे , बच्चों  का  विवाह  कैसे  होगा  ?   गरीबी  और  भुखमरी  के  कारण   वहां  महामारी  फ़ैल  गई  ,   वे  गाँव  वीरान  हो  गए  ,  जो  बच  गए  वे  रातों -रात  गाँव  छोड़कर  चले  गए  l  अब  उस  वीराने  में  सेठ  अकेला  , अपनी  संपदा  के  ढेर  पर  बैठा  था  ,  और  छाती  पीट -पीट  कर  रो  रहा  था  कि   उसके  वैभव  पर  उसके  क़दमों  में  सिर  झुकाने  वाला  अब  कोई  नहीं  है  l  वह  चीख -चीख  कर  अपनी  करतूत  बता  रहा  था  लेकिन  सुनने  वाला  कोई  नहीं  था  l  उसका  परिवार  भी  महामारी  की  चपेट  में  आ   चुका  था  l  उस  गाँव  से  जब  बहुत  दिनों  तक  कोई  आवाजाही  नहीं  हुई  तो   तो  लोगों  ने  वहां  जाकर  पता  लगाना   चाहा  की  क्या  बात  हो  गई  ?  जब  लोग  वहां  पहुंचे  तो  देखा  पूरा  गाँव  वीरान  था   और  सेठ  अपने  कमरे  में   अपनी  छाती  पर   बहुमूल्य  संपदा  को  दोनों  हाथों  से  दबाए  मृत  पड़ा  था  l  

26 February 2025

WISDOM --------

 समय  परिवर्तनशील  है  l  विज्ञान    की   नवीन    खोजों  के  साथ  लोगों  की  रूचि , तौर    -तरीके  भी  बदलते  जाते  हैं   जैसे  कुछ  वर्षों  पहले  तक  लोग  पिक्चर हाल  में  फिल्म  देखने  जाया  करते  थे   l  उसके  बाद  घर  में  ही  टीवी  पर  देखना  शुरू  हुआ  तो  अनेक  पिक्चर हाल  बंद  हो  गए  ,  अब  सब  कुछ  मोबाइल  पर  ही  उपलब्ध  है  l  विज्ञानं  ने  इतनी  सुविधा  दी  है  कि  हम  अपनी  कुर्सी  पर  बैठे -बैठे   सारे  संसार  से  जुड़  सकते  हैं  l  यदि    कोई  क्षेत्र  इन  परिवर्तनों  से   बहुत  कम  प्रभावित  हुआ  है   तो  वह  है  --कथा ,   साधु -संतों  के  प्रवचन  ,  धर्म  पर  आधारित  मेले  आदि l   सभी  कथावाचकों  , संतों  के  वचन , कथाएं  मोबाइल  पर  ही  उपलब्ध  हैं  ,  कई  संतों  का  छुपा  हुआ  रूप  भी  समाज  के  सामने  है  ,  फिर  भी  लाखों  की  भीड़  इकट्ठी  हो   जाती  है  l  कई  ऐसे धार्मिक   उत्सव  हैं   जहाँ  भीड़  की  वजह  से  लोगों  का  बुरा  हाल  हो  जाता  है   लेकिन  फिर  भी  भीड़  उमड़ी  पड़ती  है   इसका  एक  कारण  है  --भेड़  चाल   और  दूसरा  सबसे  बड़ा  कारण  है  कि  लोग  धर्म  भीरु  होते  हैं   और  चालाक  और  शातिर  व्यक्ति  उनकी  इस  भीरुता  का  फायदा  उठाने  में  माहिर  होते  हैं  l    कहते  हैं  कलियुग  में  दैवी  शक्तियां  बहुत  ही  सीमित  क्षेत्र  में  होती  हैं   लेकिन  आसुरी  शक्तियां   रावण  के  साम्राज्य  की  तरह  बहुत  विशाल  होती  है  l  आसुरी  शक्तियों  के प्रमुख  अस्त्र  हैं   सम्मोहन , वशीकरण  ,  बहकाना  ,  मन  को  डांवाडोल  कर  देना   l   विभिन्न  तरीकों  से  मन  को  इतना  कमजोर  कर  देना  कि  व्यक्ति  थक -हार  जाये  ,  उस  भेड़  चाल  का  हिस्सा  बन  जाए  l  रावण  ने   सूर्पनखा  को  इसी  लिए  भेजा  था  कि  वह  अपनी  माया  से  राम , लक्ष्मण  को  अपने  वश  में  कर  ले   लेकिन  वह  भगवान  थे , उन  पर  माया  नहीं  चली  l  सामान्य  व्यक्ति  के  लिए   मायावी  विद्या  से  बचना  बहुत  मुश्किल  है  l   तंत्र  आदि  मायावी  शक्तियां   प्राचीन  काल  से   इस   पृथ्वी  पर  है  ,  विभिन्न  देशों  में   यह  सब  भिन्न  नामों  से  है  l   अब  इस  तंत्र  के  साथ  विज्ञान  मिल  गया   तो  यह  भयावह  हो  गया   l  मनुष्य    अपनी  आसीमित  कामनाओं  के  कारण  अपनी  बुद्धि  का  दुरूपयोग  करता  है  l  

24 February 2025

WISDOM -----

 कलियुग  में  तीर्थयात्रा  भी   मनोरंजन  का   साधन  हैं   l  ऐसी  यात्रा  के  पीछे  जो  पवित्र  भाव  था  , वह  अब  नहीं  है   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ----" तीर्थयात्रा  के  पीछे  तन  को  नहीं  , मन  को  निर्मल   करने  का   विधान  होने  के  कारण  ही   उसे  पूज्य  माना  गया  है  l  यदि  यह  पुण्य  विधान  न  रहे  तो  यह  निष्प्राण  ही  रहती  है  l  मनुष्य  का  स्वभाव  और  संस्कार  इतना  जटिल  होता  है  कि  तीर्थों  पर  तन  के  स्नान  से   उसमें  कोई  भी  परिवर्तन  नहीं  होता  l  अपने  विकारों  को  दूर  करने  के  लिए  मन  के  स्नान  की  जरुरत  है  l  "     मनुष्य  शरीर  होने  के  नाते  गलतियाँ  होना  स्वाभाविक  हैं  l  लोग  सोचते  हैं  तीर्थ स्नान   कर  सस्ते  में  पाप  धुल  जाएँ  ,  लेकिन  ऐसा  संभव  नहीं  है  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ----- "  यदि  अपने  किए  पापों  का  भार  मन  पर  है  तो  यह   अपने  से  बाहर  भागने  से  नहीं  उतरता  l  सोने  को  निर्मल  होने  के  लिए  स्वयं  ही  आग  में  तपना  पड़ता  है  l  जो  पाप  किए  हैं  , उनका  प्रायश्चित  करो , पश्चाताप  करो  l  पश्चाताप  की  अग्नि  में  जलकर  ही  चेतना  निर्मल  होगी  l  एक  कथा  है  -----महाभारत  के  युद्ध  में  अपने  ही   भाई  -बंधुओं  की  हत्या  करने  के  कारण  उनके  मन  में  ग्लानि  थी , मन  में  शांति  नहीं  थी  l  तब   विदुर जी  ने  उन्हें  तीर्थयात्रा  करने  की  सलाह  दी  l  माता  कुंती  और  द्रोपदी  के  साथ  वे  तीर्थयात्रा  को  निकल  पड़े  l  मार्ग  में  प्रथम  पड़ाव  पर  वे  व्यासजी  के  आश्रम   में  रुके  l  वहां  से  चलते  समय  व्यासजी  ने  उन्हें  एक  तुम्बा  दिया   और  युधिष्ठिर  से  कहा  जब  तुम  तीर्थ स्नान  करो  तो  इस  तुम्बे  को  भी  दो -चार   डुबकी  लगवा  देना  , यह  भी  निर्विकार  हो  जायेगा  l  युधिष्ठिर  ने  ऐसा  ही  किया  सब  तीर्थों  में  अपने  साथ  तुम्बे  को  भी    स्नान  कराया  l   तीर्थयात्रा  से  लौटते  समय  वे  सब   अंतिम  पड़ाव  पर  व्यास जी  आश्रम  में  पहुंचे  और   उन्हें  वह  तुम्बा  देते  हुए  कहा   कि  हमने  इसे  हर  पवित्र  नदी  में  स्नान  कराया  है  l  व्यास जी  ने  भीम  से  कहा  ---इस  तुम्बे  को  तोड़कर  लाओ  , प्रसाद  के  रूप  में  इसे   खाकर  हम  पुण्य  लाभ  प्राप्त  करेंगे  l  उनकी  आज्ञा    से  भीम  ने  उसे  तोड़ा   और  सबके  सामने  एक -एक  टुकड़ा  रख  दिया  , शेष  व्यासजी  के  सामने  रख  दिया  l  व्यास जी  ने  एक  टुकड़ा  चखा  , वह  तो  कड़वा  था  , उन्होंने   बुरा  सा  मुँह  कर  के  उसे  थूक  दिया   और  कहा  --- इतना  तीर्थ स्नान  कर  के  भी  इसकी  कड़वाहट  नहीं  गई  , यह  मीठा  नहीं  हुआ  l '  तब  कुंती  ने  कहा  --- प्रभो  !  यह  तो  कड़वा  ही  होता  है  l  क्या  स्वभाव  भी  कभी  बदल  सकता  है  ?  प्रकृति  के  नियम  कभी  भंग  नहीं  होते   l '  तब  व्यासजी  ने  उन्हें  समझाया  --- 'प्रकृति  के  नियम  तो  सनातन  हैं  , वे  कैसे  बदल  सकते  हैं   किन्तु  स्वभाव  के  ऊपर  जो   विकृतियाँ   छा   जाती  हैं   उन्हें  तन  के  नहीं , मन  के  स्नान  से  हटाया  जा  सकता  है  l " 

23 February 2025

WISDOM ----

  एक  कथा  है  ---- महाराज  तुर्वस  ने  राजसूय  यज्ञ  किया  , उसके  समापन  के  अवसर  पर   सांस्कृतिक    समारोह  का  आयोजन  किया  l  इस   समारोह   में   महर्षि  जैमिनी   भी  सम्मलित  हुए  l  देवपूजन  के   बाद  राजकुमारी  अर्णिका  ने  भावभरी  नृत्य -नाटिका  प्रस्तुत  करनी  आरम्भ  की  l  पूरी  सभा  इस  प्रस्तुति  को  मुग्ध  होकर  देख  रही  थी  लेकिन  महर्षि  की  आँखों   से  अविरल  अश्रुधार  बह  निकली   l  राजकुमारी  ने  महर्षि  से  पूछा  ---- "क्या  मुझसे कोई  भूल  हुई  महर्षि  ?  आपकी  आँखों  से  गिरते  हुए  इन  आंसुओं  का  कारण  पूछ  सकती  हूँ  ? "  महर्षि  बोले ---- "  नहीं  पुत्री  !  तुम्हारी  प्रस्तुति  तो  त्रुटिहीन  है  l  ये  अश्रु  तो  भविष्य  की  आशंका  के  हैं  l  मुझे  दिखाई  पड़ता  है  कि  आज  जो  संगीत  शास्त्रों  पर  आधारित  है   और  मानवीय  चेतना  में  संस्कार  जाग्रत  करने  का  माध्यम  है  ,  वही  एक  दिन   कामुकता  और   अश्लीलता  भड़काने  का   साधन  बनेगा  l  कलियुग  में  ऐसा  समय  भी  आएगा  कि  जब  लोग   संगीत  को  दैवी  गुणों  के  लिए  नहीं  ,  दूषित  भावनाओं  के  विस्तार  के  लिए   उपयोग  करेंगे  l  "  राजकुमारी  अर्निका  ने  प्रश्न  किया  ---- "  क्या  कोई  उपाय  है   जिससे  संगीत  की  परंपरा   अक्षुण्ण  रहे   और  इसकी  मर्यादा   को  चोटिल  न  होना  पड़े  ? '    महर्षि  ने  उत्तर  दिया ---- "  उपाय  एक  ही  है  कि  भारतीय  चिन्तन  में   उस  वैदिक  संस्कृति  के    गुण  बीज  रूप  में  सुरक्षित  रहें  ,  जो  आज  इसे    गौरवान्वित  करने  का  आधार  बने  हैं  l  "  महर्षि  जैमिनी  की  आशंका  आज  स्पष्ट  रूप  से  सत्य  ही  दिखाई  पड़  रही  है  l  न   केवल  संगीत    बल्कि    फिल्म , साहित्य  ,  कला  में   कलाकार  अश्लीलता  के  प्रदर्शन  पर  उतारू  हैं  ,  अपनी  संस्कृति  को  भूल  गए  हैं  l  कामुक  और  भड़कीला  प्रदर्शन  समाज  की  मानसिकता  को  प्रदूषित  करता  है  l  कोई  भी  धर्म  और  संस्कृति  चिरकाल  तक  अक्षुण्ण  बनी  रहे  ,  इसके  लिए  अनिवार्य  है  ---श्रेष्ठ  चरित्र  निर्माण  l  सभी  को  जागने  की  जरुरत  है  कि  कौन  स्वेच्छा  से  अश्लीलता  का  प्रदर्शन  कर  रहा  है  और  कौन  अपनी  दमित  कामना , वासना  की  पूर्ति  के  लिए  अश्लीलता  को  बढ़ावा  दे  रहा  है  ,  लोगों  की   कमजोरियों  का  फायदा  उठाकर   उन्हें   संस्कृति  का  हनन  करने  वाले  कार्यों  को   करने  की  लिए  बाध्य  कर  रहा  है  l  चारित्रिक  पतन  के  कारण  ही  भगवान  श्रीकृष्ण  का  यादव  वंश  आपस  में  ही  लड़कर  नष्ट  हो  गया  ,  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई   l  भगवान  श्रीकृष्ण  का  संसार  को  एक  सन्देश  है  ,  उन्होंने  संसार  को  चेताया  है  कि  जब  उनकी  द्वारका  डूब  सकती  है   तो  इन  कमजोरियों , विकृतियों  को  लेकर  कोई  कैसे  बच  सकता  है  l 

22 February 2025

WISDOM -----

  प्रकृति  को  हम  जड़  समझते  हैं  ,  इस  अर्थ  में  कि   उनमें   कोई  भाव  नहीं  है   l  पुराण  की  कथाएं  बताती  हैं  कि   नदियाँ , समुद्र , पेड़ -पौधे  सब   जीवंत  हैं  ,  मनुष्यों  जैसी  भावना  उनमें  भी  है  l  कहते  हैं  एक  बार  पार्वती  जी  समुद्र  में  स्नान  करने  की  इच्छा  से  गईं  l  उनके  दिव्य  सौन्दर्य  को  देखकर   समुद्र  ने  उनसे  कहा  ---  तुम  कहाँ  गले  में  सर्पों  की  माला  लटकाए , भभूत  रमाए  ,  शमशान वासी  के  साथ  हो  !  मेरे  साथ  रहो , मेरे  पास  तो  चौदह  रत्न  हैं  ,  सुख -वैभव  से  रहो  ! "  यह  सुनकर  पार्वती जी  शीघ्रता  से  लौट  गईं  और  शिवजी  के  पास  आकर  रोने  लगीं  ,    उनसे    समुद्र  की  शिकायत  की  l  यह  सब  सुनकर  शिवजी  को  बहुत  क्रोध  आया  l  उन्होंने  विष्णु  जी  से   सब  बात  कही  और  समुद्र  के  अहंकार   को  समाप्त  करने  के  लिए  कहा   कि  इसे  अपने  चौदह  रत्नों  का  बड़ा  घमंड  है  l   तब   शिवजी  और  विष्णु जी  ने  मिलकर  समुद्र  मंथन  की  योजना  बनाई  l  यह  बहुत  विशाल  योजना  थी  , समुद्र  के  भीतर  से  चौदह  रत्न   निकाल  लिए   l  इस  प्रक्रिया  में   जब  समुद्र  मंथन  में  लक्ष्मी जी  निकलीं  तो  उन्होंने  विष्णु जी  का   वरण  किया   और  जब  हलाहल  विष  निकला   तो  संसार  के  कल्याण  के  लिए  शिवजी  ने  विषपान  किया  l इसकी  बड़ी  कथा  है  ,  यह  विष  शिवजी  के  कंठ  में  ही  रहा  और  वे  नीलकंठ   महादेव  कहलाए  l  पार्वतीजी  के  आंसू  साधारण  नहीं  थे  ,  समुद्र  का  अहंकार  समाप्त  करने  के  लिए  उन्होंने  विष  को  भी  कंठ  में  धारण  किया  l  इसलिए  कहते  हैं  कन्याएं  शिवजी  की  पूजा  करती  हैं  कि  उन्हें    शिवजी  जैसा  पति  और  सुखी  जीवन  मिले  l  

21 February 2025

WISDOM ------

   इस  युग   की  एक  कड़वी  सच्चाई  है   कि   इतने  अधिक  संत , विभिन्न  प्रकार  के   साधु , उपदेशक ,  स्वयं  को  सन्मार्गी  दिखाने  वाले  लाखों  -करोड़ों  की  संख्या  में  है  ,  इसलिए  यह  प्रश्न  उत्पन्न  होता  है  कि  इतने  अधिक  सज्जन  , ईश्वर विश्वासी  इस  धरती  पर  हैं  , तो  फिर  कलियुग  क्यों  है  ?  लोगों  के  जीवन  में  दुःख , तनाव  , बीमारियाँ  क्यों  हैं  ?  सस्ते , महंगे  , बड़े -छोटे  सब  अस्पताल  क्यों  भरे  हैं   ?  निराशा  में  लोग  आत्महत्या  कर  रहे  हैं  ?  अदालतें  विभिन्न  अपराधिक  मुकदमों  से  भरी  हुई  हैं  l  इन  सबका   एक   सबसे    बड़ा  कारण  यह  है  कि   अब  आध्यात्मिक  होने  का  ढोंग  ज्यादा  है  ,  सब  को  अपनी  दुकान  सजाए  रखने  की  चिंता  है  l  भीष्म  पितामह  और  द्रोणाचार्य  की  तरह  कोई  भी  अपने  सुख  से  समझौता  नहीं  करना  चाहता  है  l  सभी  पता  नहीं  किस  से  भयभीत  रहते  हैं  कि  कहीं  विदुर  जी  की  तरह  वनवास  न  भोगना   पड़े   ?  l   अच्छे , सच्चे  और  अध्यात्म  में  उच्च  शिखर  पर  पहुंचे   लोग  बहुत  हैं  जिनके  पुण्यों  के  बल  पर   यह  धरती  टिकी  है  लेकिन  इनके  अनुपात  में  असुरता  बहुत  ज्यादा  है  l  l   असुर  बनना  बहुत  सरल  है ,  पानी  बहुत  तेजी  से  नीचे  गिरता  है  , लेकिन  ऊपर  चढ़ाने  के  लिए  बहुत  प्रयास  करना  पड़ता  है  l  अध्यात्म  की  राह  बहुत  कठिन  है  ,  इसमें  भावनाओं  की  पवित्रता  अनिवार्य  है  l  यह  सबके  लिए   संभव   नहीं  है   इसलिए  व्यक्ति  बाहरी  रूप  से  स्वयं  को  आध्यात्मिक  दिखाता  है   लेकिन  उसके  मन  में  और  मन  से  भी  अधिक  गहराई  में  क्या  छुपा  है  इसे  तो  फिर  ईश्वर  ही  जानते  हैं   l  जैसा  कुछ  मन  में  छुपा  है  वैसे  ही  लोगों  को  व्यक्ति  आकर्षित  करता  है  इसलिए  असुरता  बढ़ती  जाती  है   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' सुगंध  की  अपेक्षा  दुर्गन्ध  का  विस्तार  अधिक  होता  है   l  एक  नशेवाला , जुआरी , दुर्व्यसनी , कुकर्मी  अनेकों  संगी साथी   बना  सकने  में  सहज  सफल  हो  जाता  है  लेकिन  आदर्शों  का , श्रेष्ठता  का  अनुकरण  करने  की  क्षमता  हलकी  होती  है  l  कुकुरमुत्तों  की  फसल  और  मक्खी -मच्छरों  का  परिवार  भी  तेजी  से  बढ़ता  है   पर  हाथी  की  वंश  वृद्धि  अत्यंत  धीमी  गति  से  होती  है  l  

20 February 2025

WISDOM ----

1 .     एक  व्यक्ति   जार्ज  बर्नार्ड  शा  से  मिलने  पहुंचा  l  उसने  उनसे  पूछा   कि  वो  उन  दिनों  कुछ  परेशान   चल  रहा  है  ,  वे  किसी  अच्छे  ज्योतिषी  को  जानते  हैं  तो   उस  व्यक्ति  का  पता  बताएं  l  जार्ज  बर्नार्ड  शा  ने   उससे  पूछा  कि  ज्योतिषी  तुम्हारा  भला  कैसे  करेगा   ?   उस  व्यक्ति  ने  कहा  कि  मैं  उससे  अपना  भविष्य   जानना  चाहता  हूँ  l  जार्ज  बर्नार्ड  शा  ने   उत्तर  दिया  कि   यदि  तुम   अपना  भविष्य  जानना  चाहते  हो   तो पहले  अपने  अतीत  को  जानो   और  उसमें  जो  भूलें  तुमसे  हुईं  हैं  ,  उन्हें  न  दोहराने  का   निर्णय  करो   तो  तुम्हारा  भविष्य  अपने  आप  संवर  जायेगा   l  उनके  समझाने  से  उस  व्यक्ति  का  चिंतन  बदल  गया   और  वो  सदैव  के  लिए  आशावादी  हो  गया   l  

2.  मनु -शतरूपा   साथ  बैठे  भगवत  चिंतन  में  निमग्न  थे  l   मनु  ने शतरूपा  से  पूछा  ---- "  मनुष्य  को  किन  कारणों  से  इतर  योनियों  में  भटकना  पड़ता  है   ? "  मनु  ने  उत्तर  दिया ---- "  शारीरिक  पापकर्मों  से   जड़  योनियों  में  जन्म  होता  है  l  वाणी  के  पाप  से   पशु -पक्षी  बनना  पड़ता  है  l  मानसिक  पाप  करने  वाले   मनुष्य  योनि  से  बहिष्कृत  हो  जाते  हैं  l  इस  जन्म  अथवा  पूर्व  जन्म  के  पापों  के  कारण   मनुष्य  जन  अपनी  स्वाभाविकता  खोकर  विद्रूप  बनते  हैं   l  "  

19 February 2025

WISDOM -----

  लघु कथा ----मुकुन्दी  नामक  एक  व्यक्ति  की   नसीर  नामक  एक  नाई  से  गहरी  मित्रता  हो  गई  l  संयोगवश  मुकुन्दी  को  उन्ही  दिनों  जुआ  खेलने  की  लत  पड़  गई  l  इसका  पता  जब  नसीर  को  लगा  तो  उसे  बहुत  दुःख  हुआ   और  वह  पांच -छह  दिन  उससे  मिलने  नहीं  गया   तो  एक  दिन  मुकुन्दी  उससे  मिलने  उसकी  दुकान  पर  गया  l  वहां  उसे  पता  चला  कि  नसीर  दरवाजे  के  पीछे  बैठा  रो  रहा  है  l  मुकुन्दी  ने  अपने  मित्र  से  उसके  रोने  का  कारण  पूछा  l  नसीर  ने  उत्तर  दिया  --- "  मित्र  !  मेरे  रोने  का  कारण  यही  है  कि  तुमने  जुआ  खेलना   आरंभ   कर  दिया  है  l  अब  लोग  तुम्हे  नहीं  , मुझे  धिक्कारेंगे  कि   एक   नाई    से  दोस्ती  होने  के  कारण  मुकुन्दी  ने  गलत  राह  पकड़  ली   l  इसलिए  या  तो  तुम  मुझसे  मित्रता  तोड़  दो   या  फिर  जुआ  खेलना  छोड़  दो  l  "  मुकुन्दी  पर  नसीर  की  बातों  का  गहरा  प्रभाव  पड़ा    और  उसने  उसी  दिन  से  जुआ  खेलना   छोड़  दिया  l   सच्चे  मित्र  का  यही  कर्तव्य  है  कि  वह  अपने  मित्र  को  सही  राह  दिखाए   और  सुख -दुःख  में  सका  साथ  दे  l  

18 February 2025

WISDOM -----

  अपने  समय  की  प्रख्यात  लेखिका  व  नारी  स्वतंत्रता  की  हिमायती   मेरी  स्टो  किशोरावस्था  में  बहुत  सुन्दर  लगती  थीं  l  उनकी  चर्चा  और  प्रशंसा  भी  बहुत  होती  थी  l  इस  पर  उन्हें  गर्व  होने  लगा  और  वे  अभिमान पूर्वक  चलने  लगीं  l  बात  उनके  पिता  को  मालूम  हुई   तो  उन्होंने  बेटी  को  बुलाकर  प्यार  से  कहा  ---  "  बेटी  !  किशोरावस्था  का  सौन्दर्य  तो  प्रकृति  की  देन  है  l  इस  अनुदान  पर  तो  उसी  की  प्रशंसा  होनी  चाहिए  l  तुम्हे  गर्व  करना  हो  तो   साठ  वर्ष  की  उम्र  में  शीशा  देखकर  करना  कि  तुम  उस  प्रकृति  की  देन  को  लंबे  समय  तक  अक्षुण्ण  रखकर   अपनी  समझदारी  का  परिचय  दे  सकीं  या  नहीं   l "   इस  शिक्षा  का  परिणाम  था  कि  अपने  अहंकार  को  गलाकर   मेरी  स्टो  एक  समाज  सेविका  के  रूप  में  विकसित  हो  सकीं  l  

16 February 2025

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा जी  के  विचार हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं  l    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- "  हमारे  मार्गदर्शन  के  लिए , दिशाबोध  के  लिए  , परेशानियों  व  कठिनाइयों  को  सहने  के  लिए   जीवन  में  कोई  न  कोई  तो  होना  चाहिए  l  यह  स्थान  यदि  भगवान  का  स्थान  हो   तो  मनुष्य  आसानी  से  कठिन  और  जटिल  परिस्थितियों   से  लड़ना  सीख  जाता  है  l  ईश्वर  से    --- माँ , पिता , भाई  , मित्र ,  बाबा , बालक ---किसी  भी  रूप  में  रिश्ता  रखा  जा  सकता  है  l  श्रद्धा  और  विश्वास से  जब  हम  उन्हें  पुकारेंगे   तो  अपनी   अंतरात्मा   से , या  कहीं  न  कहीं  से  हमें  अपनी  समस्या  का  समाधान , सकारात्मक  नजरिया  अवश्य  मिल  जाता  है  l "                  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- " विपदाएं  तो  हर  किसी  के  जीवन  में  आती  हैं  ,  यदि  इन  विपदाओं  में  हम  अकेले  होते  हैं  ,  तो  यही  विपदाएं  हमारे  लिए   समस्या  बन  जाती  हैं  ,  हमारा  जीवन  तहस -नहस  कर  देती  हैं  ,  हम  से  हमारा  बहुत  कुछ  छीन  लेती  हैं  l  परन्तु  यदि  इन  विपदाओं  में   भगवान  के  प्रति  समर्पण  का  भाव  हमारे  साथ  है  ,  तो  ये  विपदाएं  हमारे  लिए  वरदान  बन  जाती  हैं   l   भगवान  का  हमारे  साथ  होना   एक  ऐसा  विश्वास  है  ,  जो  हमें  कठिन  पलों  में  जबरदस्त  संबल  देता  है  ,  सकारात्मकता  से  जोड़ता  है  ,  जीवन  को  आशा  भरी  नजरों  से  देखने   और  इन  जटिल  पलों  में  भी   बेहतर  करने  के  लिए  प्रेरित  करता  है   l  जीवन  का  बहुत  कुछ  दांव  पर   लगे  होने  पर  भी   भगवान  के  साथ   होने  का  भाव  का  होना  ,  ऐसा  मानसिक  एहसास   देता  है  कि  भले  ही   जीवन  में  बहुत  कुछ  गंवाया  जा  रहा  है  ,  लेकिन  फिर  भी  बहुत  कुछ  हमारे  पास  है  ,  जो  बेशकीमती  है  l  "     आचार्य  श्री  के  इन  कथन  के  एक -एक  शब्द  की  सत्यता  केवल  वही  अनुभव  कर  सकता  है    जिसे  ईश्वर  पर  अटूट  श्रद्धा   और  विश्वास  हो   और   जो  ईश्वर  के  दिखाए  मार्ग  पर  चलने   के  लिए  प्रयत्नशील  हो   l  

15 February 2025

WISDOM -----

  संसार  में  मनुष्य  कर्म  करने  को  स्वतंत्र  है  l  प्रत्येक  कर्म  का  परिणाम  अवश्य  होता  है  l  जब  कोई  कर्म  इस  भाव  से  किया  जाता  है   की  उसका  किसी  को  भी  पता  न  चले  ,  वह  गुप्त  रहे  l  ऐसे  में  यदि  वह   गुप्त  रूप  से  किया  गया  कोई  दान  है  , सेवा  कार्य  है   तो  उसका  सुफल  उस  व्यक्ति  को  अवश्य  मिलता  है  l  उसके  इस  पुण्य  कार्य  को  ईश्वर  ने  देखा  है  l  इसी  तरह  जब  कोई  व्यक्ति    समाज  से , सबसे  छिपकर  कोई  अपराध  करता  है  ,  तो  वह  निश्चिन्त  रहता  है  कि  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  ,  कहीं  कोई   सबूत   नहीं  है  इसलिए  दंड  से  बच  जायेगा   l  लेकिन  उसके  दुष्कृत्य  को  ईश्वर  ने  देखा  है   l  विशेष  रूप  से   जो  लोग  तंत्र ,  आदि  नेगेटिव   एनर्जी   की  मदद  से   दूसरों  को  सताते  हैं ,  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए  उनका  गलत  इस्तेमाल  करते  हैं   तो  पीड़ित  होने  वाला  समझ  नहीं  पाता  की  उसके  जीवन  में  बार -बार  बिना  वजह  आने  वाली  ऐसी  समस्याओं  का  कारण  क्या  है  l  ऐसे  अपराध  करने  वाले  कानून  से  तो  बच  जाते  हैं   लेकिन  उन्हें  इसका  हिसाब  कहीं  न  कहीं  अवश्य  चुकाना  पड़ता  है  l  मनुष्य  जागरूक  रहकर  ही  ऐसे  अपराधियों  को  पहचानकर   उनसे  बचाव  के  उपाय  कर  सकता  है  l  ऐसे  अपराध  कलियुग  में  व्यापार  है    क्योंकि  इस  युग  में  मनुष्य   दूसरों  को  खुश  देखकर  दुःखी  है  ,  अपनी  योग्यता  से  नहीं  , दूसरों  को  धक्का  देकर , गिराकर   आगे  बढ़ना  चाहता  है  l   हर  क्षेत्र  में  शार्टकट  से  सफलता  चाहता  है  ,  मेहनत  से  धन  कमाने  में  बहुत  समय  लगेगा  , नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से   दूसरे  को  मिटाकर  व्यक्ति  सब  कुछ  हासिल  करना  चाहता  है  l  यह  सब   व्यक्ति  करता  तो  है  लेकिन  कहीं  न  कहीं  वह  स्वयं   भी  शिव  के  तृतीय  नेत्र  खुलने   से  भयभीत   रहता  है  l 

WISDOM ------

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं --- दुराचारी  से  दुराचारी  व्यक्ति  भी  यह  ठान  ले   कि  प्रभु  मेरे  हैं ,  मैं  उनका  हूँ  ,  उनका  अंश  होने  के  नाते  अब  मुझसे  कोई  गलत  कार्य  नहीं  होगा  ,  तो  फिर  वे  उसे  भी  तार  देते  हैं  l  भगवान  कहते  हैं  --विवेक  कभी  साथ  नहीं  देता  ,  संसार  का  आकर्षण  लुभाता  है  ,  गलतियाँ  हो  जाती  हैं   तो  एक  ही  मार्ग  है --हम  भगवान  का  पल्ला  पकड़  लें  l  गन्दा  नाला  भी  गंगा  में  मिलकर  पवित्र  हो  जाता  है   लेकिन  जो  दुराचार  किया  है  उसके  लिए  कष्टों  से  तो  गुजरना  ही  होगा  l  कर्मफल  तो  भुगतना  ही  होगा  , पीड़ा  को  तो  सहना  ही  होगा  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ---ईश्वर  के  दरबार  में  झूठ  और  धोखा  नहीं  चलता  l  यदि  गलती  न  करने  का  संकल्प  लिया  है  तो  उस  पर  अडिग  रहो  ,  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  l  ------ डाकू  अंगुलिमाल  अनेक  नागरिकों  की  उँगलियाँ  काटकर  उनकी  माला  पहनकर  घूमता  था  l  राजा  प्रसेनजित  की  सेना  भी  उससे  हार  मान  गईं  थीं  l  उसके  पास  चलकर  गौतम  बुद्ध  आए  l  अंगुलिमाल  ने  उनसे  कहा  --- " भिक्षु  !  मैं  तुम्हे  मार  दूंगा  l "  वह  उनसे  बार -बार  रुकने  को  कह  रहा  था  l  तब  तथागत  बोले  ---- " रुकना  तो  तुझे  है  पुत्र  !  मैं  तो  कभी  का  ठहरा  हुआ  हूँ  l  भाग  तो  तू  रहा  है  --अपनी  जिन्दगी  से , अपने   आप  से  ,  अपने  भगवान  से  l  तू  रुक  ! "  इतना  कहते -कहते  वे  उसके  नजदीक  आ  गए   और  उसे  गले  से  लगा  लिया  l  अंगुलिमाल  को  पहली  बार  सच्चा  प्यार मिला  l  बुद्ध  ने  उसे  संघ  में  शामिल  कर  लिया  l  अब  संघ  में  भगवान  बुद्ध  की  बुराई  होने  लगी  कि  उन्होंने  एक  अपराधी , खतरनाक  डाकू  को  संघ  में  शामिल  कर  लिया  l  भगवान  बुद्ध  ने  अंगुलिमाल  से  धैर्य  रखने  और  कोई  प्रतिक्रिया  न  देने  को  कहा  l  सभी  भिक्षुक  सामूहिक  रूप  से  भगवान  बुद्ध  के  पास  आए  और  कहा  --- अंगुलिमाल  के  संघ  में  शामिल  होने  के  कारण  संघ  की  बुराई  हो  रही  है  l  बुद्ध  बोले --- "  वह  पूर्व  में  डाकू  था ,  अब  भिक्षु  है  ,  ,  पर  तुम में  से  बहुत  सारे   डाकू  बनने  की  दिशा  में  चल  रहे  हो  l  उसे  मार  डालने  की  सोच  रहे  हो  l  यह  क्या  कर  रहे  हो  ? "  भगवान  बुद्ध  ने  सोचा  कि  इन  लोगों  को  जवाब  मिल  जायेगा  और  अंगुलिमाल  को  भी  निर्वाण  मिल  जायेगा  ,  यह  सोचकर  उन्होंने   अंगुलिमाल  को  उसी  क्षेत्र  में  भिक्षा  मांगने  भेजा  ,  जहाँ  वह  अपराधी  बना  था  l  लोगों  में  बहुत  क्रोध  था  ,  उसे  पत्थर  खाने  पड़े  l  चोट  खाकर  वह  मूर्छित  हो  गया  l  उसके  पास  कोई  नहीं  आया  ,  बुद्ध  भगवान  स्वयं  आए  ,  पत्थर  हटाए , उसकी  सेवा  की  l  जब  अंगुलिमाल  को  होश  आया  तो  उससे  कहा --- "  तुम  एक  घुड़की  दे  देते ,  सब  भाग  जाते  ,  क्यों  मार  खाते  रहे  ! "  अंगुलिमाल  बोला  ---- "  प्रभो  !  कल  तक  मैं  बेहोश  था  ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l "                                              गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---- " यथार्थ  निश्चय  वाले ,  संकल्प  शक्ति  से  मजबूत  व्यक्ति  का  अनन्य  भाव  से  समर्पण  उसे  न  केवल  शांति ,  वरन  एक  सुरक्षा  कवच  भी  प्रदान  करता  है  l   ईश्वर  सदा  उसके  साथ  रहते  हैं  l  कोई  उसका  कुछ  बिगाड़  नहीं  सकता  l  

12 February 2025

WISDOM ------

 कहते  हैं  संस्कार  बहुत  प्रबल  होते  हैं  ,  संस्कारों  का  परिवर्तन  बहुत  कठिन  है  l  माता -पिता  के   और   उनसे  पूर्व  की  पीढ़ियों  के  गुण -दोष  ही  संस्कारों  के  रूप  में  संतानों  में  आते  हैं  l  यहाँ  तक  कि  निकटतम  रिश्तों  के  गुण -अवगुण  भी  खानदान  की   आने  वाली   पीढ़ियों   में  संस्कार रूप  में  आते  हैं  l  कई  लोग  ऐसे  भी  होते  हैं  जो  सारी  जिन्दगी  एक  मुखौटा  पहने  रहते  हैं  ,  उनके  भीतर  की  असलियत  कोई  जान  ही  नहीं  पाता  ,  उनका  पूरा  जीवन  इसी  मुखौटे  में  गुजर  जाता  है   लेकिन  उनके  भीतर  ,  मन  से  भी  अधिक  गहराई  में   जो  अवगुण  , जो  बुराई  उनमें  होती  है  ,  वह  उनकी  संतान  के  माध्यम  से  प्रकट  होती  है ,  बच्चे  अपने  माता -पिता  का  ही  प्रतिरूप  होते  हैं  l  अर्जुन  के  अभिमन्यु  जैसा  पुत्र  तो  संभव  है   लेकिन  हिरन्यकश्यप  के  प्रह्लाद  जैसा  श्रेष्ठ  पुत्र रत्न  हो ,   यह  अपवाद  है  l  प्रह्लाद  की  माता  कयाधू  ईश्वर  भक्त  थी   और  गर्भावस्था   की  सम्पूर्ण  अवधि  में   वे  ईश्वर  के  परम  भक्त  नारद जी  के  संरक्षण  में  रही  थीं  l   दुनिया -दिखावे  के  लिए  तो  सभी  चाहते  हैं  कि  समाज  मर्यादित  हो  ,  नैतिक  मूल्य  हों  ,  सबका  यथा -योग्य  सम्मान  हो  ,  लेकिन   स्वयं  को  सुधारना  कोई  नहीं  चाहता  l   यदि  समाज  में  नैतिक  मूल्यों   को  स्थापित  करना  है  और  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  करना  है    तो   युवाओं   के  जीवन  को  तो  सही  दिशा  में  चलना  ही  चाहिए  क्योंकि  देश  का  भविष्य  उन्ही  के  हाथों  में  है  लेकिन  उन्हें  दिशा  देने  वाले  प्रौढ़  , बुजुर्ग   और  जीवन  के  आखिरी  मोड़  पर  बैठे  व्यक्तियों  को  भी   अपने  बीते  हुए  जीवन  का  एक  बार  अवलोकन  अवश्य  करना  चाहिए   कि   अपनी  संतानों  के  लिए   वे  धन -वैभव  के  अतिरिक्त   नैतिक  और  मानवीय  मूल्यों   की  ,  उनके  जीवन  को  सही  राह  देने  वाली  कौन  सी  विरासत  छोड़कर  जा  रहे  हैं  l  अश्लील  फ़िल्में  ,  निम्न  स्तर  का  साहित्य   और  धन  की  चकाचौंध  ने  विचारों  को  प्रदूषित  कर  दिया  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---- 'चिन्तन  क्षेत्र  बंजर  हो  जाने  के  कारण  कार्य  भी  नागफनी  और  बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  

WISDOM ------

   दो  मित्र    राम  और   श्याम   जंगल  में  सैर  कर  रहे  थे  l  अचानक  ही  उन्होंने  देखा  कि  एक  भालू  बड़ी  तेजी  से उनकी  ओर  आ  रहा  है  l    राम  पेड़  पर  चढ़ना  जानता  था  इसलिए  वह  शीघ्रता  से  पेड़  पर  चढ़  गया  l   श्याम  पेड़  पर  चढ़ना  नहीं  जानता  था  इसलिए  उसने  राम  से  कहा  कि  तुम  मुझे  थोडा  सहारा  दो  जिससे  मैं  भी  पेड़  की  डाल  पकड़  कर  ऊपर  चढ़  जाऊं  l  राम  ने  सोचा  कि  कहीं  ऐसा  न  हो  कि  श्याम  को  ऊपर  चढ़ाने  में  देर  हो  जाए  और  जब  तक  भालू आकर  उसका  काम -तमाम  कर  दे  l   राम  ने  श्याम  की  बात  को  अनसुना  कर दिया  और  पेड़  पर  पत्तों  की  आड़  में  छुपकर  बैठा  रहा  l  श्याम  ने  बुद्धिमत्ता  से  काम  लिया  और  पेड़  के  नीचे  सांस  रोककर  सीधा  लेट  गया  l  भालू  आया  ,  उसने  श्याम  को  सूंघा  l  श्याम  ने  सांस  रोक  रखी  थी  ,  भालू  ने  समझा  कि  वह  मरा  पड़ा  है   इसलिए  वह  चुपचाप  लौट  गया  l  भालू  के  चले  जाने  पर  राम  नीचे  उतरा   और  हँसते  हुए  श्याम  से  बोला  --- "  भालू  तुम्हारे  कान  में  क्या  कह  रहा  था  ?  "  श्याम  ने  कहा  --- "  भालू  मेरे  कान  में  कह  रहा  था  ---ऐसे  मित्र  का  कभी  विश्वास  न  करो  ,  जो  संकट  के  समय  तुम्हारा  साथ  न  दे  ,  तुम्हे  मुसीबत  में  छोड़  कर  चला  जाये  l "                                                                   कलियुग  में  कृष्ण  और  सुदामा   जैसी  और  दुर्योधन  व  कर्ण   जैसी  मित्रता  असंभव  है  l  यहाँ  तो  सब  स्वार्थ  से  जुड़े  हैं  l  इसलिए  कहते  हैं  मित्रता  और  रिश्ता  बराबर  वालों  में  होना  चाहिए  l  यदि  मित्र  बहुत  अमीर  और  शक्तिशाली  है  तो  वह  आपको  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  करेगा  और   जब  स्वार्थ  पूरा  हो  जायेगा  या  स्वार्थ  पूरा  होने  की  कोई  संभावना  नहीं  होगी  तो  वह  दूध  की  मक्खी  की  तरह  बाहर   निकाल  देगा   l   इस  युग  में  संवेदनाएं  कहीं  भी  नहीं  है  ,  सब  जगह  व्यापार  है  ' यूज़  एंड   थ्रो '   केवल  वस्तुओं  में  ही  नहीं  है  ,  मानवीय  संबंधों  में  भी  है  l  किसी  विद्वान  ने  सत्य  कहा  है  ---- ' प्रेम  सबसे  करो ,  लेकिन  विश्वास  किसी  पर  भी  न  करो  l '  

10 February 2025

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  संसार  में  वैभव  रखना ,  धनवान  होना  कोई  बुरी  बात  नहीं  ,  बुराई  तो  धन  के  अभिमान  में  है  l  वैभव  असीम  मात्रा  में  कमाया  तो  जा  सकता  है  ,  पर  उसे  एकाकी  पचाया  नहीं  जा  सकता  l  धन -संपत्ति   और  ज्ञान  में  वृद्धि  के  साथ -साथ   यदि  मनुष्य  का  ह्रदय  विकसित  हो  ,  चिन्तन  परिष्कृत  हो  ,  उसमें  ईमानदारी  , उदारता  ` सेवा  आदि  सद्गुण  हो  तभी  वह  धन  और  ज्ञान  सार्थक  होगा  l  अन्यथा  पैनी  अक्ल   और  अमीरी  विनाश  के  साधन  होंगे  l "  आध्यात्मिक  मनोवैज्ञानिक    कार्ल  जुंग  की  यह  स्पष्ट  मान्यता  थी  कि  मनुष्य  की  धर्म , न्याय , नीति  में  अभिरुचि  होनी  चाहिए   l  यदि  इस  दिशा  में   प्रगति  न  हो  पाई  तो   अंतत:  मनुष्य  टूट  जाता  है   और  उसका  जीवन  निस्सार  हो  जाता  है  l "  

9 February 2025

WISDOM ------

   सौराष्ट्र  के  राजकवि  हेमचन्द्र  सूरि   का  प्रजा  बहुत  सम्मान  करती  थी  l  स्वयं  नरेश  भी  उनकी   इच्छा पूर्ति  करने  में   अपने  जीवन  की  सार्थकता  अनुभव  करते  थे  l  ऐश्वर्य  से  घिरे  रहने  पर  भी  वे  उससे  अछूते  थे  l  एक  बार  वे  एक  गाँव  में  प्राकृतिक  सौन्दर्य  का  आनंद  लेने  निकले   l  गाँव वासियों  को  जैसे  ही  यह  ज्ञात  हुआ  कि  कविराज  आ  रहे  हैं  ,  वे  सभी  कुछ  न  कुछ  लेकर   कविराज  के  दर्शन  हेतु उमड़  पड़े  l  इसी  क्रम  में  एक  ग्रामीण  जो  स्वयं  फटेहाल  वस्त्रों  में  था  ,  उसने  एक  हस्तनिर्मित  परिधान   राजकवि  के  चरणों  में  समर्पित  किया  l   राजकवि  की  नजर  उसके  फटेहाल  वस्त्रों  पर  गई  तो  उनकी  आँखे  भर  आईं  l  वे  सोचने  लगे  "    कितनी  विषमता  है  ,   कहाँ   तो  उनके  इतने  कीमती  , बहुमूल्य  परिधानों  से  सुसज्जित  वस्त्र   और  कहाँ    इसके  टाट  जैसे  मोटे  वस्त्र  l  यह   परिश्रमी  किसान  तन  ढंकने  के  वस्त्रों  से  वंचित  है  l  सत्य  तो  यह  है  कि  हमारा  अस्तित्व   इनकी  श्रमशीलता  के  कारण  ही  है  ,  किन्तु  हम  इन्हें  ही  सुरक्षित  जीवन  प्रदान  करने  में असमर्थ  हैं  l  "   ऐसा  विचार  करते  हुए  राजकवि  ने  वह  परिधान  माथे  से  लगाया   और  धारण  कर  लिया  l   अगले  दिन  वह  उसी   परिधान  को  धारण  कर  जब  राजदरबार  में  गए   तो  महाराज  बोले  ----- "  कविवर  !  ऐसे  दरिद्र  वस्त्र  आपको  शोभा  नहीं  देते  l  आपने  ऐसे  वस्त्र  क्यों  पहने  हैं  ? कविराज  बोले  --- "  महाराज  !  हमारे  हमारे  राज्य  की  अधिकांश  प्रजा  ऐसे  ही  साधारण  वस्त्र  पहनती  है  , तो  फिर  मुझे  बहुमूल्य  वस्त्र  पहनने  का  अधिकार  किसने  दिया  ?  मैंने  निश्चय  किया  कि  अब  मैं  ऐसे  ही  वस्त्र  पहनूंगा  l  "  कविराज  की  करुणापूर्ण  बातें  महाराज  के  ह्रदय  को  छू  गईं  और  उन्होंने  निश्चय  किया  कि  अब  वे   राज्य  के  प्रत्येक  व्यक्ति  को  आवश्यक  जीवनस्तर  उपलब्ध  कराने  का  हर  संभव  प्रयास  करेंगे  और  स्वयं  भी   अनावश्यक  खर्चों  में  कटौती  कर  सामान्य  जीवन  जिएंगे  l  

7 February 2025

WISDOM -----

  इस  संसार  में  जितनी  भी  समस्याएं  हैं  उनका  मूल  कारण  ---' आर्थिक  समस्या  l '   हर  प्राणी  के  भोजन -पानी  का  प्रबंध  ईश्वर  किसी न किसी  माध्यम  से  करते  हैं  ,  कोई  भूखा  नहीं  रहता  है   लेकिन  संसार  में  रहकर  प्रत्येक  व्यक्ति  अधिक -से अधिक  सुख  सुविधाएँ  जुटाना  और  धन  एकत्रित  करना  चाहता  है  l  यह  इच्छा  बलवती   इसलिए  भी  हो  जाती  है  क्योंकि  अमीर  लोग   हर  समय  अपनी  अमीरी  का   और  अमीरी  से  हासिल  किए  प्रभुत्व  का  , ख़रीदे  हुए  सम्मान  का    दिखावा  करता  है   l  इस  कारण  अब  प्रत्येक  व्यक्ति  धन  कमाने  की  अंधी  दौड़  में  सम्मिलित  हो  गया  है  l   रोजगार   की  इतनी  व्यवस्था  नहीं  है  l  रोजगार  के  साधन  तो  बहुत  हैं  लेकिन  यदि  सबको  रोजगार  मिल  जायेगा  तो    धन , पद  और  शक्ति  के  अहंकारियों   की  सनक ,  अनुत्पादक  शौक  कैसे  पूरे  होंगे  ?    युग  के  साथ  इस  तरह  के  शौक  या  सनक  का  रूप  भी  बदल  गया  है   l  धर्म ,  जाति    के  आधार  पर  होने  वाले  दंगे , आन्दोलन , नारे  बाजी , जय-जयकारा  ,  भगदड़  ,  सामूहिक  रूप  से  विरोध  करना  , कीचड़  उछालना  ,  अपना  शक्ति  प्रदर्शन  करना  ---यह  सब  ऐसे  शौक  के  कुछ  रूप  हैं  l  अमीरों  के  पास  अपार  धन  हैं ,  उन्हें  अपने  ऐसे   अनुत्पादक    शौक  को  पूरा  करने  के  लिए  पर्याप्त   मानव -संसाधन  मिल  जाते  हैं   l  सबका  काम  चलता  जाता  है  ,  उसका  परिणाम  समाज  में  चाहे  जैसा  हो  !   अब  लोगों  ने  कर्मफल  से  डरना  छोड़  दिया  है   और  अपने  हर  गलत  कार्य  को  सही  सिद्ध  करते  हैं   l  प्रत्यक्ष  रूप  से  कोई  स्वीकार  नहीं  करता   कि यह  सब  ---- हैं   लेकिन  मन  में  तो  यही  बात  रहती  है  कि  हर  कार्य  का  पैसा  दिया  जा  रहा  है  l  और  जो  लोग  बेरोजगारी  के  कारण  यह  सब  कार्य  करते  हैं   वे  तर्क  देते  हैं  कि  आखिर  मेहनत  तो  कर  रहे  हैं   l  यह  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  है  कि   लोग  नैतिक  नियम , मर्यादा  भूलते  जा  रहे  हैं  l  सबसे  बड़ा  संकट   मानवता  पर  है  l  धर्म  का  रूप  चाहे  जो  हो  ,  सबसे  जरुरी  है  कि   मनुष्य  ' इनसान  ' बने  l   

5 February 2025

WISDOM -----

  एक  संत  नदी  में  स्नान कर  रहे  थे  ,  उन्तहोंने  देखा  कि  एक   बिच्छू    पानी  में  डूब  रहा  है  l    उन्हें   दया  आ  गई   और  उन्होंने  उसे  बचाने  के  लिए  अपनी   हथेली  में  लिया    तभी  उस    बिच्छू  ने  उन्हें   काट  लिया l  l  संत  के  हाथ  से  बिच्छू  छिटक  कर  पानी  में  जा  गिरा  l  संत  ने  उसे  बचाने  के  लिए  पुन"  हथेली  पर  लिया  ,  बिच्छू  ने  उन्हें  पुन:  काट  लिया  l  ऐसा  तीन  बार  हुआ  l  संत  उसे बचाने  की  कोशिश  करते  और  वह  बार -बार  उन्हें  काट  लेता  l  इस  घटना  से  संत  ने  अपने  शिष्यों  को  समझाया  कि   दया  और  करुणा  भी  जरुरी  है   लेकिन  हमें  होश  के  साथ  जीना  चाहिए  l  जो  दुष्ट  प्रवृत्ति  के  लोग  हैं ,  छल  , कपट , धोखा , षड्यंत्र  करते  हैं  ,  बिना  किसी  कारण  के  केवल  अहंकार  और  ईर्ष्यावश   दूसरों  को  सताते  हैं  ,  उनसे  आप  कितना  भी  प्रेम  का  व्यवहार  करोगे  ,  वे  अपनी  दुष्टता  नहीं  छोड़ेंगे  , जब  भी  मौका  मिलेगा  वे  आपका  अहित  करने  से  नहीं  चूकेंगे  l  ऐसे  लोगों  से  न  ही  मित्रता   करे  और  न  ही  बैर  रखे  l  ऐसे  दुष्ट  प्रवृत्तियों  के  व्यक्तियों  से   दूरी   बना  के  रखे   l   मनुष्य  क्योंकि  एक  बुद्धिमान  प्राणी  है   ,  वह  जब  किसी  के  साथ  धोखा  , छल , षड्यंत्र  करते  हैं   तो  इसके  मूल  में  उनका  कोई  बहुत  बड़ा स्वार्थ  और  लालच  छिपा  होता  है  l  इनसे  आप  चाहे  दूरी  बना  लो   लेकिन  अपने  स्वार्थ  और  लालचवश  वे  आपका  पीछा  नहीं  छोड़ते  l  इसलिए  ऐसे लोगों  से  बहुत  सावधान  रहने  की  जरुरत  है  l  ये  लोग  समाज में  मुखौटा  लगाकर  रहते  हैं  ताकि  इनकी  असलियत  कोई  जान  न  सके  l   इनसे  पीड़ित  किसी  व्यक्ति  को  यदि  उनकी  असलियत   का  पता  चल  जाये   तो  उसकी  खैर  नहीं  ,  अपनी  गलतियों  पर  परदा  डालने  के  लिए   वे  उस  पीड़ित  पर  ही  सारा  दोष  मढ़ने  लगते  हैं , उसे  ही  दोषी  ठहराते  हैं  l  इनसे बचने  के  लिए  जागरूकता  बहुत  जरुरी  है  l  

4 February 2025

WISDOM ----

 एक  मनुष्य  किसी  महात्मा  के  पास पहुंचा   और  कहने  लगा ---- " महाराज जी  !  जीवन  थोड़े  समय  का  है  ,  इसमें  क्या -क्या  करें  ?  बाल्यकाल  में  ज्ञान  नहीं  रहता   और   युवावस्था  में  कुटुंब  का  भरण -पोषण   की  जिम्मेदारी  और  सांसारिक  समस्याएं  रहती  हैं   और  बुढ़ापा   ऐसा  कि  नींद नहीं  आती  और  रोगों  का  उपद्रव  बना  रहता  है  ,  ऐसे  में  लोक -सेवा  कब  करें  ?  समय  ही  नहीं  मिलता  !  ऐसा  कहकर  वह  उदास  होकर  रोने  लगा  l  उसे  रोता  देख  महात्मा  भी  रोने  लगे  l  उस  व्यक्ति  ने  महात्मा  से  पूछा  ---"  आप   क्यों  रोते  हैं  ? "  महात्मा  ने  कहा --- "  क्या  करूँ  /  खाने  के  लिए  अन्न  चाहिए  ,  अन्न  उगाने  के  लिए  जमीन  चाहिए  l  भगवान  ने  जो  पृथ्वी   बनाई  उस  पर  पहाड़  हैं , समुद्र  , है , नदियाँ  हैं , जंगल  जो  थोड़ी -बहुत  शेष  है  उस  पर  भू -माफियों  का  कब्ज़ा  है , मेरे  लिए  कोई  जमीन  नहीं  है  , मैं  क्या  करूँ  ?  भूखा  न  मरूँगा  !  "  उस  व्यक्ति  ने  कहा  --- "  यह  सब  होते  हुए  भी  तुम  जिन्दा  हो , अच्छी  सेहत  है  !  फिर  रोते  क्यों  हो  ?  "  महात्मा  तुरंत  बोले  ---- "  तुम्हे  भी  तो  यह  बहुमूल्य  जीवन  मिला  l  समय  ही  जीवन  है  ,  जो  समय  का  उचित  प्रबंधन  करते  हैं  , वे  उसी  24  घंटे  में  बहुत  कुछ  हासिल  कर  लेते  हैं  l   जो  आलसी  हैं  , काम  से  जी  चुराते हैं  ,  वे  ही  ' समय  नहीं  मिलता  ' की  रट   लगाते  हैं  l "   तुम  समय  का  प्रबंधन  कर  उसका  सदुपयोग  करो  l 

2 February 2025

WISDOM ----

  प्रत्येक  मनुष्य  सुख -सुविधाओं  में  जीना  चाहता  है  l  सच्ची  मेहनत  और  ईमानदारी  से  सब  काम  तो  आसानी  से  चल  जाता  है  लेकिन  वह  भोग , विलासिता  संभव  नहीं  है  l  संसार  में    हर  युग  में  ऐसे  लोग  रहे  हैं  जो  भोग -विलासिता  का  जीवन  जीने  के  लिए   अपने  से  ताकतवर  की  , सत्ता  की  , धन-वैभव  संपन्न  लोगों  की  खुशामद  में  लगे  रहते  हैं   और  जिसकी  वे  चापलूसी  करते  हैं  उसकी हर बात  में  हाँ  -में -हाँ  मिलाते  है  ,  वह  कितनी  बड़ी  गलती  करे  , कभी  उसका  विरोध  नहीं  करते  l  अधिकाधिक  सुख -भोग  की  चाहत  रखने  वालों  और  अपनी  रोजी -रोटी  चलती  रहे  ,  ऐसी  सोच  रखने  वालों  की  संख्या  बहुत  है   , इसी  कारण  अत्याचारी , अन्यायी   और  अहंकारी  को  पोषण  मिलता  है   और  उनके  ऐसे   दुर्गुणों   का  परिणाम  संसार  को  भोगना  पड़ता  है  l  विशेष  रूप  से    भीष्म  पितामह , द्रोणाचार्य  और  कृपाचार्य  जैसे  जो  आँख  बंद  कर  के  शासक  की  हर  गलत  बात  को  स्वीकार  करते  हैं  , वे  ही  महाभारत  को  जन्म  देते  हैं  l  महाभारत  काल  में  केवल  महात्मा  विदुर  ही  ऐसे  थे   जो  दुर्योधन  का  अन्न  नहीं  खाते  थे  ,  वन  के  शाक -पात  खाकर  स्वाभिमान  से  जीवन  व्यतीत  करते  थे  l  वे  हमेशा  निडरता  से  धृतराष्ट्र  को  सही  सलाह  देते  थे  ,  लेकिन   पुत्र -मोह  के  कारण  धृतराष्ट्र  उसे  अनसुना  कर  देते  थे  , इसका  परिणाम  महाभारत  का  महायुद्ध  हुआ  l